सुहानी बहुत ही हंस मुख बच्ची थी उम्र लगभग 10 साल वह अपनी मां के साथ रहतीं थीं मां के अतिरिक्त उसके आगे पीछे कोई नहीं था पर अपने सरल और हंसमुख स्वभाव के कारण कालोनी के सभी लोग उसे बहुत पसंद करते थे। सुहानी की मां सिलाई-कढ़ाई का काम करके अपनी और सुहानी की जरूरतों को पूरा करती थीं।
सुहानी भी घर के कामों में अपनी मां की मदद करती रहती थी।
एक दिन जब सुहानी स्कूल से लौटी तो उसकी मां बिस्तर पर लेटी हुई थी। मां को असमय बिस्तर पर लेटा हुआ देखकर सुहानी को आश्चर्य हुआ।
वह जल्दी से उनके पास जाकर पूंछने लगी मां क्या हुआ? आप इस समय क्यों लेटी हुई हैं??
उसने जब मां का बदन छूआ तो उनका शरीर बुखार से तप रहा था वह मां को पुकारने लगी पर सुहानी की मां ने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उसकी मां बेहोश थी।
अपनी मां को ऐसी स्थिति में देखकर सुहानी पहले तो घबरा गई लेकिन तुरंत उसके चेहरे पर दृढ़ता दिखाई देने लगी।
वह घर के बाहर निकली और अपने पड़ोस की आशा चाची के पास जाकर अपनी मां के बारे में बताया और उनसे कहा,"चाची आप मेरी मां के पास जाकर बैठिए मैं डाक्टर साहब को बुला कर लाती हूं"।
ठीक है बिटिया मैं तुम्हारी मां के पास जा रहीं हूं सुहानी सीधे अपनी कालोनी से निकलकर बाहर सड़क पर आ गई। सुहानी जिस कालोनी में रहती थी वह सरकार द्वारा बनवाईं गई गरीब लोगों की कालोनी थी जो शहर से बाहर थी यहां से शहर लगभग एक किलोमीटर दूर था।
इस कालोनी के आसपास कोई अच्छा डॉक्टर भी नहीं था इसलिए सुहानी को शहर जाना था।जब वह सड़क पर आईं तो वहां कोई सवारी नहीं मिली उसने एक आदमी से पूछा कि आज़ कोई सवारी क्यों नहीं दिखाई दे रही है।
तो उस आदमी ने बताया कि आज़ आटो रिक्शा चालकों ने हड़ताल किया है इसलिए आज कोई सवारी नहीं मिलेगी।यह सुनकर सुहानी परेशान हो गई अब वह शहर कैसे जाएगी।
इस समय कालोनी के आदमी लोग अपने अपने काम धंधे पर गए हुए हैं अधिकतर लोग रात तक लौटेंगे। सुहानी ने सोचा तब तक तो बहुत देर हो जायेगी मुझे पैदल ही शहर जाना पड़ेगा हो सकता है कि रास्ते में कोई मिल जाए और उसे शहर तक छोड़ दे अब शाम होने लगी थी वहां का रास्ता भी सुनसान था फिर भी सुहानी बिना किसी डर के
शहर के लिए चल पड़ी।
वह ईश्वर से अपनी मां के लिए प्रार्थना करतीं जा रही थी वह पैदल चलती हुई शहर तक पहुंच गई अब तक रात हो गई थी सुहानी थक भी बहुत गईं थीं।
उसने वहां एक आदमी से किसी डाक्टर के बारे में पूछा तो उस आदमी ने डाक्टर का पता बताया। सुहानी जब डाक्टर के क्लीनिक पहुंचीं तो वहां बहुत भीड़ थी उसने वहां बैठी नर्स ने पूछा "कि मुझे डाक्टर साहब से मिलना है"।
नर्स ने कहा" तुम अभी नहीं मिल सकती यहां लोग नम्बर से अंदर जाते हैं"।
सुहानी ने कहा" मुझे अभी मिलना है" नर्स ने गुस्से में कहा" कि तुम अभी नहीं मिल सकतीं" नर्स की बात सुनकर सुहानी ने कुछ सोचा और अन्दर चली गई।
नर्स उसे रोकती रह गई पर उसने कुछ नहीं सुना सीधे डाक्टर के पास पहुंच गईं और बिना डरे विनम्रता से बोली डाक्टर साहब आप मेरे साथ चलिए अगर देर हो गई तो मेरी मां नहीं बचेंगी।
डाक्टर सुहानी की निडरता देखकर चौंक गए और उन्होंने कुछ गम्भीर मुद्रा में जवाब दिया "इस समय मैं अपने पेसेंट देख रहा हूं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता"।
सुहानी ने फिर निडरता से लेकिन विनम्र लहज़े में कहा डाक्टर साहब इन मरीजों को आप कल भी देख सकते हैं परंतु यदि आप मेरे साथ नहीं गए तो मेरी मां नहीं बचेगी तब आप भगवान को क्या जवाब देंगे??
सुहानी की बात सुनकर डाक्टर ने पूछा" क्या तुम्हें इस बात का डर नहीं लग रहा है कि यदि तुम्हारी बात मुझे बुरी लग गई तो मैं तुम्हें यहां से बाहर निकाल दूंगा और फिर तुम्हारी मां का क्या होगा"??
"सही बात कहने में डर कैसा!! मैंने डरना उसी दिन छोड़ दिया था जब मैंने अपने पिता के खिलाफ पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई थी"सुहानी ने बिना डरे आत्मविश्वास से जवाब दिया।
डाक्टर ने आश्चर्य से सुहानी को देखा
डाक्टर के मनोभावों को सुहानी समझ गई उसने जवाब दिया," हां डाक्टर साहब मैं पहले बहुत डरती थी अपने पिता की ऊंची आवाज़ से भी डर जाती थी पर एक बार जब मेरे पिता ने मेरी मां को बहुत मारा और मां के सिर से खून निकलने लगा जिसे देखकर मैं घबरा गई"।
"उस समय मेरे पिता के सिर पर खून सवार था शायद यह आदमी मेरी मां को मार ही डालेगा जैसे ही मेरे मन में यह विचार आया मेरे मन का डर पता नहीं कहां भाग गया और मैंने आगे बढ़कर अपने पिता को धक्का दे दिया और जोर जोर से चिल्ला कर लोगों को बुला लिया। मां की हालत बहुत गंभीर थी उन्हें अस्पताल ले जाया गया और जब पुलिस ने सबसे पूछा यह सब कैसे हुआ तो लोगों ने कुछ नहीं बताया मां भी खामोश रहीं पर मैंने पुलिस को सब बता दिया और पुलिस मेरे पिता को पकड़कर ले गईं"।
"उस दिन की घटना से मैंने यह समझ लिया कि डर हमे तभी लगता है जब हम मन से कमजोर होते हैं।जिस समय हम अपने मन को मजबूत कर लेते हैं डर अपने आप भाग जाता है डर हमारे मन का एक भ्रम है हकीकत नहीं" सुहानी ने डाक्टर को जवाब दिया। डाक्टर सुहानी के मुंह से इतनी गुढ़ बात सुनकर आश्चर्य में पड़ गए और उन्होंने
सुहानी की बातों से प्रभावित होकर मुस्कुराते हुए कहा "कि तुम एक निडर और बहुत बहादुर लड़की हो जो बिना डरे हर परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार हो आज हर लड़की में ऐसी निडरता होनी चाहिए मैं तुमसे बहुत ही प्रभावित हूं चलों मैं तुम्हारे साथ चलता हूं"। यह कहकर डॉक्टर सुहानी के साथ क्लीनिक से बाहर निकल गए।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक