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बिना कुछ कहे सच जीत गया

8 फरवरी 2022

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बिना कुछ कहे सच जीत गया

  सुचिता की ससुराल में आज पहली रसोई थी अषाढ़ का महीना था आज सुबह से ही रिमझिम फुहारों ने पूरे वातावरण को सोंधी खुशबू से महका दिया था।

सुचिता की सास ने कल ही उससे कह दिया था कि,कल जल्दी तैयार होकर आ जाना तुम्हारी पहली रसोई है जो तुम आज बनाओगी उसका भोग भगवान को लगाया जाएगा।

सुचिता को रसोई के कामों में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं थी पर ऐसा भी नहीं था कि उसे खाना बनाना नहीं आता था पर वह अपनी मां के जैसा अच्छा खाना नहीं बना पाती थी।

आज सुचिता जल्दी उठकर नहाने के बाद अच्छे से तैयार होकर नीचे आ गई जब सुचिता की सास ने उसे देखा तो देखती ही रह गई।सुचिता स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही थी उसने पीले रंग की जार्जेट की साड़ी पहनी हुई थी मैरून रंग की बिंदी और लिपस्टिक लगाई हुई थी सिंदूर से भरी हुई मांग गले में हार हाथों में कंगन और चूड़ियां खनक रही थी उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में काजल उसकी आंखों को और भी सुन्दर बना रहे थे।

सुचिता को देखकर घर के सभी लोग उसकी सुन्दरता की तारीफ करने लगे अपने पति की आंखों में अपने लिए प्यार और तारीफ़ देखकर सुचिता के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई।

सुचिता ने सभी का पैर छूकर आशीर्वाद लिया तभी उसे अपनी दादी सास की आवाज सुनाई दी वह उससे कह रही थी " बहू आज तुम्हारी पहली रसोई है तुम्हें आज कुछ मीठा बनाना है लेकिन आज बरसात हो रही है मौसम बहुत ही खुशनुमा हो गया है इसलिए मौसम के अनुसार तुम मीठे के साथ में पकौड़े भी बना लेना"

सुचिता रसोई में चली गई उसकी सास ने आकर सभी सामान निकालकर उसे दिया और कहा कि,"अब तुम इत्मीनान से अपनी रसोई का काम करो"इतना कहकर सुचिता की सास रसोईघर से बाहर निकल गई।

सुचिता को रसोई का काम अच्छे से आता था पर ससुराल की पहली रसोई थी इसलिए उसको घबराहट हो रही थी। फिर भी सुचिता स्वयं को संयमित करते हुए हलवा बनाने में लग गई उसकी सूज़ी भुनकर तैयार थी उसने उसमें मेवा डाला शक्कर और दूध और थोड़ा सा पानी डालकर हलवा चलाने लगी। तभी सुचिता की जेठानी रसोई में आई उनके चेहरे पर सुचिता के लिए ईर्ष्या साफ़ दिखाई दे रही थी सुचिता के सौन्दर्य को देखकर वह पहले से ही ईर्ष्या करती  थीं, और आज तो घर के लोगों के मुंख से सुचिता की सुन्दरता की तारीफ सुनकर सुचिता की लिए उनकी ईर्ष्या और बढ़ गई थी।

उन्होंने आते ही कहा  "हलवे में ख़ुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है थोड़ा सा दो च़खकर देखती हूं अगर कोई कमी होगी तो मैं अभी बता दूंगी तुम ठीक कर लेना नहीं तो बाहर बैठीं घर की बुजुर्ग औरतों के ताने सुनने पड़ेंगे जैसा मैंने सुना था" जेठानी की बात सुनकर सुचिता ने उन्हें थोड़ा सा हलवा निकाल कर दे दिया जबकि उसकी सासू मां ने कहा था कि, सबसे पहले भगवान को भोग लगेगा पर सुचिता नई बहू थी अपनी जेठानी को मना नहीं कर सकती थी इसलिए उसने जेठानी को हलवा दे दिया।सुचिता की जेठानी ने हलवा खाया वह बहुत स्वादिष्ट था यह देखकर उसकी जेठानी मन-ही-मन और जल-भुन गई उन्होंने सोचा अगर सभी ने यह स्वादिष्ट हलवा खाया तो सुचिता की सुन्दरता के साथ साथ उसके खाने की तारीफ भी होने लगेगी यह सोचकर जेठानी ने कहा " हलवा तो बहुत अच्छा बना है पर मीठा थोड़ा कम है यहां लोग हलवा ज्यादा मीठा पसंद करते हैं इसमें शक्कर और मिला दो"

अपनी जेठानी की बात सुनकर सुचिता हलवे में शक्कर डालने लगी उसकी जेठानी ने कहा यह नहीं पीसी शक्कर डालो वह जल्दी खुल जाएगी यह रहा डिब्बा उन्होंने शक्कर की जगह सुचिता को नमक दे दिया सुचिता अपनी जेठानी की चाल समझ नहीं सकी उसने उनके कहने पर हलवे में शक्कर की जगह नमक डाल दिया।यह देखकर सुचिता की जेठानी के चेहरे पर जहरीली मुस्कुराहट फ़ैल गई उसके बाद सुचिता  पकौड़े बनाने लगी सुचिता की जेठानी ने उसकी नज़र बचाकर बेसन के खोल में थोड़ा ज्यादा मिर्ची पाउडर डाल दिया। उन्हें ऐसा करते हुए सुचिता देख नहीं सकी सुचिता ने हलवा और पकौड़े बनाकर डाइनिंग टेबल पर रख दिया।

सुचिता की सास ने भगवान को हलवे का भोग लगाया फिर घर के सभी सदस्य डाइनिंग टेबल पर आकर बैठ गए।सबसे पहले सुचिता की दादी सास ने नाश्ता करना शुरू किया उन्होंने जैसे ही हलवा मुहं में डाला वह चौंक गई उन्होंनेे गुस्से में सुचिता को  देखा सुचिता डरी सहमी सहमी खड़ी हुई थी। जबकि सुचिता की जेठानी के चेहरे पर कुटिलता भरी मुस्कुराहट साफ़ दिखाई दे रही थी सुचिता की दादी सास अपनी बड़ी बहू के ईर्ष्यालु स्वाभाव को अच्छी तरह जानती थी वह सब  समझ गई कि,यह हरकत किसकी है।

दादी सास ने सभी को नाश्ता करने से रोक दिया यह देखकर सुचिता का चेहरा डर से पीला पड़ गया वह सोच नहीं पा रही थी कि दादीजी ने सभी को हलवा खाने से रोक क्यों दिया।सुचिता की दादी सास ने एक पकौड़ी भी खाई उसमें मिर्ची की मात्रा बहुत ज्यादा थी उन्हें खांसी आने लगी सुचिता ने जल्दी से उन्हें पानी दिया।पानी पीने के बाद जब दादीजी संयमित हुई तो उन्होंने गम्भीर लहज़े में अपनी बहू सुचिता की सास से कहा   "बहू यह हलवा और पकौड़े सभी गाय को खिला दो क्योंकि यह बहुत अच्छे बने हैं बहू की पहली रसोई है । भगवान को भोग लग गया है, मैंने खा लिया है अब गौ माता को खिलाकर उनका भी आशीर्वाद लो  तुम्हारी छोटी बहू सौंदर्य की देवी के साथ-साथ साक्षात् अन्नपूर्णा भी है जिससे उस पर सभी का आशीर्वाद बना रहे और  दुष्टात्माएं बहू का कुछ न बिगाड़ सकें अब सभी के लिए दूसरा नाश्ता लेकर आओ " सुचिता की दादी सास ने गम्भीर लहज़े में कहा"

"पर मां जी आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ है" सुचिता की सास ने धीरे से डरते हुए कहा

"बहू मैं जैसा कह रही हूं वैसा करो यह मेरा आदेश है" सुचिता की दादी सास ने कठोर लहज़े में कहा दादी जी की बात सुनकर सभी चुप हो गए और जैसा उन्होंने कहा था वैसा ही किया गया। सभी ने पूरी सब्जी का नाश्ता किया। नाश्ता करने के बाद दादी सास ने एक मखमली डिब्बा सुचिता को दिया और मुस्कुराते हुए कहा " यह लो बहू  अपनी पहली रसोई का तोहफ़ा सुचिता ने डिब्बा खोलकर देखा तो उसकी आंखें चौंधिया गई क्योंकि उस डिब्बे में हीरो का बहुत ही सुन्दर गले  का सेट था हीरो का सेट देखकर सुचिता की जेठानी के चेहरे पर ईर्ष्या के साथ मायूसी भी छा गई क्योंकि उसकी चाल निष्फल हो गई थी।

" दादी आपने यह तोहफ़ा भाभी के लिए कब मंगवाया और हम लोगों को बताया भी नहीं आप तो बहुत ही छुपे रुस्तम निकलीं" सुचिता की ननद ने हंसते हुए अपनी दादी से पूछा

" बिट्टो दुखी ने हो मैंने तेरे लिए भी ऐसा एक सेट बनवाया है वह तेरी शादी में दूंगी" दादी ने अपनी पोती के कानों को प्यार से खींचते हुए मुस्कुरा कर कहा।फिर उनका चेहरा गम्भीर हो गया उन्होंने सुचिता की जेठानी की ओर देखा सुचिता की जेठानी अपनी दादी सास का गम्भीर चेहरा देखकर डर गई वह समझ गई थी कि, दादीजी को सब पता चल गया है कि मैंने रसोई में सुचिता को नीचा दिखाने के लिए क्या किया।वह मन ही मन घबरा रही थी अगर दादी जी ने घर वालों के सामने उसकी सच्चाई बता दी तो घर वालों और सुचिता की नज़रों में उसकी कोई इज़्ज़त नही रह जाएंगी।सुचिता की जेठानी अपने किए पर शर्मिंदा हो रही थी उसके चेहरे पर पश्चाताप स्पष्ट दिखाई दे रहा था पर अब वह क्या करे कैसे सबके सामने अपनी गलती स्वीकार करे यही सोच रही थी।शायद दादीजी की अनुभवी आंखों ने सुचिता की जेठानी के चेहरे के आते-आते भावों को देखकर उसकी मनोदशा को समझ लिया था।तभी उन्होंने सुचिता की जेठानी को अपने पास बुला

" बड़ी बहुरिया तुम भी मेरे पास आओ मैंने तुम्हारे लिए भी वैसा ही गले का सेट बनवाया है जैसा छोटी बहू का है। तुम्हारी शादी में मैं विदेश में थी मेरा इलाज़ चल रहा था इसलिए जब तुम्हारी पहली रसोई हुई थी तब मैं तुम्हें कोई तोहफ़ा नहीं दे पाई थी।वह तोहफ़ा आज दे रही हूं बहू मेरी एक बात हमेशा ध्यान रखना जब पहले प्यार और सम्मान दोगी तभी बदले में उससे ज्यादा प्यार और सम्मान पाओगी यही मनुष्य की प्रकृति है और प्रकृति का भी यही नियम है" अपनी दादी सास की बात सुनकर सुचिता की जेठानी सब समझ गई कि,उसकी दादी सास क्या कहना चाहती हैं।वह तुरंत उनके कदमों में झुककर उनसे माफ़ी मांगने लगी।
दादी जी की बात सुनकर और सुचिता की जेठानी को माफ़ी मांगते हुए देखकर घर के सभी सदस्यों के चेहरे पर आश्चर्य के भाव दिखाई देने लगे। सुचिता की सास ने आश्चर्यचकित होकर पूछा ,

"बड़ी बहू तुम किस बात की माफ़ी मांग रही हो"??

" वह माफ़ी इस बात की मांग रही है कि, आज उसे भी सुचिता बहू के साथ रसोई में मदद करनी चाहिए थी क्योंकि मैंने उसे भी पहली रसोई का तोहफ़ा दिया है यह तोहफ़ा उसे बिना किसी मेहनत के मिल गया इसलिए वह शर्मिंदा है कि,वह जेठानी बनकर बैठी रही जबकि उसे आज अपनी छोटी बहन की रसोई में मदद करनी चाहिए थी" सुचिता की दादी सास ने अपनी बड़ी बहू के सम्मान की रक्षा करते हुए कहा।

अपनी दादी सास की महानता को देखकर सुचिता की जेठानी शर्म से पानी-पानी हो रही थी उसे स्वयं पर शर्म आ रही थी।उसी समय उन्होंने खुद से एक वादा किया कि, मैं भी आज के बाद दादीजी की तरह घर के लोगों को कभी भी किसी के सामने शर्मिंदा नहीं होने दूंगी और अपनी देवरानी को छोटी बहन समझूंगी।

बाहर सावन झूमकर बरस रहा था प्रकृति ने चारों तरफ हरियाली के रूप में प्राकृतिक सौंदर्य बिखरा हुआ था। दादी की समझदारी के कारण घर के अंदर भी खुशियां छाई हुई थीं बिना कुछ कहे आज सच जीत गया था।

तभी दादी जी की गम्भीर आवाज सुनाई दी " तुम दोनों यहां क्यों खड़ी हो क्या बरसात के मौसम में पकौड़े मुझे बनाकर खाने पड़ेगें" यह सुनते ही सभी के चेहरों पर मुस्कान फ़ैल गई हंसते हुए सुचिता अपनी जेठानी के साथ रसोई की ओर बढ़ गई।

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
6/7/2021


काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bahut khoob likha aapne lajawab srtoy❣️❣️❣️❣️

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