विदेशी बहू स्वदेशी संस्कार
रेवती जी चिंता के साथ-साथ डरी भी हुई थीं जब से उनके बेटे भारत का फोन आया था फोन पर उसने कहा कि, वह अपनी पत्नी लिजा के साथ हमेशा के लिए भारत आ रहा है अब वह उनके साथ ही रहेगा। अपने बेटे की बात सुनकर रेवती जी ख़ुश होने के स्थान पर चिंता में पड़ गई कि,वह अपनी विदेशी बहू के साथ कैसे रहेंगी जिसकी परवरिश विदेश में हुई है जो पाश्चात्य संस्कृति में रंगी होगी वह इस छोटे से शहर में भारतीय संस्कारों को मानने वाले अपने सास-ससुर के साथ कैसे रहेंगी वह तो विदेशियों के कपड़े पहनेंगी मैं अपनी बहू को ऐसे कपड़ों में कैसे देख पाऊंगी यहां के लोग क्या कहेंगे यही सब सोच-सोच कर रेवती जी की चिंता बढ़ती जा रही थी।
रेवती जी अपने घर के बाहर गार्डन में बेचैनी से टहल रही थीं तभी उनके पति सुरेश वहां आ गए उन्होंने रेवती के चेहरे की परेशानी को भांप लिया वह उनके पास आकर हंसते हुए बोले
" क्या बात है मैडम आज आप बहुत परेशान लग रही हैं"??
"जब बात परेशानी की है तो परेशान होना लाजिमी ही है" रेवती जी ने झल्लाकर जबाव दिया।
" ऐसी क्या परेशानी आ गई जिसने तुम्हें इतना परेशान कर दिया है हमें भी तो आपकी परेशानी का कारण पता चले"? सुरेश ने हंसते हुए पूछा
"आपको हंसी आ रही है और मेरी जान निकली जा रही है" रेवती जी ने गुस्से में कहा।
" अच्छा चलो अब मैं गम्भीर हो गया अब बताओ क्या बात है जो तुम इतनी चिंता कर रही हो"? सुरेश ने गम्भीर लहज़े में पूछा।
" भारत अपनी विदेशी पत्नी के साथ यहां आ रहा है" रेवती जी ने चिंतित स्वर में कहा।
" अरे तुम्हारा लाडला बेटा तुम्हारे पास आ रहा है और तुम खुश होने के स्थान पर परेशान हो रही हो तुम तो उसकी याद में आसूं बहाती रहती हो अब जब वह तुम्हारे पास आ रहा है तो तुम्हें परेशानी हो रही है कैसी मां हो जो अपने बेटे के आने पर ख़ुश नहीं दुखी हो रही हो" सुरेश जी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा
" आप मेरी चिंता का कारण समझ ही नहीं रहें हैं" रेवती जी ने झल्लाकर कहा।
" जब तुम कुछ बताओगी तभी तो मैं समझूंगा" सुरेश जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
" भारत हमेशा के लिए अपनी पत्नी के साथ हमारे पास रहने आ रहा है मैं कैसे एक विदेशी बहू के साथ रह पाऊंगी कहां वह इतनी पढ़ी-लिखी बड़ी कम्पनी में कार्यरत है और विदेशी माहौल में पली-बढ़ी है वह मेरे जैसी कम पढ़ी-लिखी सास के साथ कैसे रह पाएगी जो मुझे पसंद होगा वह उसे पसंद नहीं होगा और जो उसे पसंद होगा वह मैं पसंद नहीं करूंगी इस तरह तो हमारा घर कुरूक्षेत्र का मैदान बन जाएगा। इसमें बेचारा हमारा बेटा दो लोगों के बीच में पिसकर रह जाएगा यही सोच-सोच कर मैं चिंता कर रहीं हूं और मेरा मन भी डर रहा है" रेवती जी ने चिंतित स्वर में अपने मन की परेशानी को व्यक्त किया।
" हो सकता है कि, जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ न हो बहू हमारे भारतीय संस्कृति और संस्कारों को मानने वाली हो वह तुम्हारे साथ एक भारतीय बहू की तरह रहे" सुरेश जी ने गम्भीरता से कहा।
" आप भी कैसी बातें कर रहे हैं मुझे नहीं लगता कि,वह भारतीय संस्कारों को मानने वाली होगी ईश्वर न करे अगर वह कहीं विदेशी रंग में ही रंगी रही तो हमारा बूढ़ापा बर्बाद हो जाएगा हम तो कहीं के भी रहेंगे लोगों के ताने अलग से सुनना पड़ेगा लोग क्या कहेंगे कि, मैं दूसरो को संस्कारों की शिक्षा देती थी आज हमारे अपने बेटे के कारण हमें दूसरों के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा और हम कुछ कर भी नहीं सकते" रेवती जी ने गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।
तभी कम्पाऊण्ड में एक टैक्सी आकर रुकी रेवती जी और सुरेश ने चौंककर उधर देखा तभी कार का दरवाजा खुला भारत कार से बाहर आया और उसने दूसरी तरफ़ के दरवाजे को खोला रेवती जी सांस रोके उतरने वाले को देख रही थीं।तभी रेवती ने देखा कि,कार में से एक बहुत ही सुन्दर औरत साड़ी पहने मांग में सिंदूर सजाए साड़ी का पल्लू अपने सिर पर रखे बाहर आई रेवती जी उस सौंदर्य की मूर्ति को देखती रह गई वह तो पूरी तरह एक भारतीय बहू की साज-सज्जा किए हुए थी।तभी भारत ने उसे इशारे से कुछ बताया तब वह धीरे-धीरे चलते हुए रेवती जी के पास आई और उनके कदमों में बैठ गई और बहुत ही श्रद्धा से अपने दोनों हाथों से उनके पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया।
रेवती जी यह सब देखकर स्तब्ध मुद्रा में खड़ी रह गई उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि, उनके सामने जो लड़की खड़ी है वह कोई विदेशी लड़की है वह तो पूरी की पूरी भारतीय संस्कारों से युक्त एक भारतीय बहू लग रही थी।
" रेवती कहां खो गई बहू को आशीर्वाद नहीं दोगी" सुरेश जी की आवाज़ सुनकर रेवती जी चौंककर संभल गई और उन्होंने झुकाकर बहुत प्यार से अपनी बहू को उठाकर अपने गले से लगा लिया उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे लेकिन यह खुशी के आंसू थे।
" अब यहीं खड़े रहने का इरादा है कि,बहू को गृहप्रवेश भी करोओगी" सुरेश जी ने हंसते हुए कहा।
रेवती जी ने जल्दी से अपने आंसू पोंछे और कहा,
" बहू तुम यहीं खड़ी रहो मैं आरती का थाल लेकर आती हूं" इतना कहकर वह अंदर चली गई थोड़ी देर बाद जब वह आई तो उनके हाथ में आरती का थाल था उन्होंने लिजा की आरती उतारी और अपने हाथों में पहने हुए सोने के कंगन उतारकर लिजा के हाथों में पहना दिया और उसको पकड़कर घर के अंदर ले गई।
तभी घर में काम करने वाली माला मिठाई लेकर वहां आ गई रेवती ने लिजा का मुंह मीठा कराया और उसकी बलाएं लेने लगी उन्होंने लिजा के सिर से पैसे वार कर माला को दे दिया।रेवती जी की खुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि जो वह सोच रही थी वैसा कुछ भी नहीं था। तभी उनके बेटे भारत ने बताना शुरू किया, "लिजा को भारत और भारतीय संस्कृति और संस्कारों से बहुत प्यार और लगाव है उसने मुझसे शादी भी इसी शर्त पर की थी कि, मैं अमेरिका में नहीं बसूंगा अपने देश भारत में रहूंगा।अभी एक सप्ताह पहले ही मेरा अमेरिका की कम्पनी से कांटेक्ट समाप्त हुआ तो लिजा ने कहा कि,अब हम अमेरिका में नहीं भारत चलकर अपने परिवार के साथ रहेंगे और हम लोग हमेशा के लिए आप लोगों के पास चले आए मां आप मुझे माफ़ कर दीजिए मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है मैंने बिना आप लोगों की इजाजत लिए शादी कर ली और अमेरिका में बसने का फैसला कर लिया था इसके लिए मैं बहुत शर्मिन्दा हूं" भारत ने रेवती जी के पैरों के पास जमीन में बैठते हुए कहा और उनकी गोद में सिर रख दिया।
" भारत मैंने तुझे माफ़ कर दिया क्योंकि तूने मुझे लिजा जैसी बहू लाकर दी है मैं शायद इतनी अच्छी बहू अपने लिए नहीं ढूंढ पाती" रेवती जी ने हंसते हुए कहा।
"मां आप मेरा कोई दूसरा नाम रख दीजिए जो आपको पसंद हो" लिजा ने धीरे से कहा।
" मेरी बहू गायत्री मंत्र की तरह पवित्र, निर्मल और भारतीय गुणों से परिपूर्ण है इसलिए मैं आज से तुम्हें गायत्री कहूंगी" रेवती मुस्कुराते हुए लिजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा लिजा भी भारत के साथ ही जमीन में रेवती के कदमों में बैठी हुई थी। अपने दोनों बच्चों के प्यार, अपनेपन और संस्कार को देखकर रेवती की चिंता ख़त्म हो गई उनके दिल का डर भी गायब हो गया था। उनके चेहरे पर स्वाभिमान की चमक साफ़ दिखाई दे रही थी आज उन्हें अपने दिए हुए संस्कार पर गर्व का अनुभव हो रहा था। वैसे भी भारतीय संस्कार पूरे विश्व में अपनी एक अलग गरिमा बनाए हुए है यह भारतीय संस्कार की शक्ति ही थी जिसने लिजा जैसी विदेशी लड़की को भारतीय संस्कार से ओत-प्रोत कर दिया और वह अपने देश को छोड़कर भारत में अपने पति भारत के साथ रहने आ गई।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
5/8/2021