" मां पंडित जी आए हैं"मीनू ने अपने मां से कहा और पंडित जी को बैठने के लिए कहकर कालेज जाने के लिए निकलने लगी। तभी पंडित जी ने कहा" बिटिया कहां जा रही हो?? तुम्हारी मां ने तुम्हारा हाथ दिखाने के लिए मुझे बुलाया है जब तुम रहोगी ही नहीं तो मैं हाथ किसका देखूंगा"??
"पंडित जी मुझे हाथ की लकीरों पर विश्वास नहीं है मैं अपने कर्म पर विश्वास करतीं हूं"मीनू ने गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।
"तुम ठीक कह रही हो बिटिया कर्म करना तो बहुत जरूरी है और बिना कर्म किए कुछ भी नहीं मिलता। परंतु हाथ की लकीरों में मनुष्य के जीवन का लेखा जोखा लिखा होता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता"पंडित जी ने दृढ़ता से अपनी बात कही।
"पंडित जी मैं हाथ की लकीरों पर भरोसा नहीं करती मैं अपने मन में कोई भ्रम नहीं पालना चाहती इसलिए मैं अपना हाथ आपको नहीं दिखाऊंगी"मीनू ने कठोर शब्दों में पंडित जी को जवाब दिया।
"तेरा दिमाग ख़राब हो गया है क्या मीनू जो तू गुरु जी से इस तरह बात कर रही है"??मीनू की मां ने वहां आते हुए गुस्से में कहा उन्होंने मीनू की बात सुन लीं थीं।
"आप जानती हैं कि मुझे यह सब चोंचले नहीं पसंद हैं तो आप यह सब मुझे करने के लिए क्यों कहती हैं"मीनू ने गुस्से में कहा और बाहर जाने लगी।
"बिटिया रूको"पंडित जी ने मीनू से कहा
मीनू रूक गई उसने सवालिया निगाहों से पंडित जी को देखा।
पंडित जी ने मीनू को अपने पास बुलाया और कहा"मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि हमें हाथ की लकीरों पर भरोसा नहीं करना चाहिए लेकिन बिटिया इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता। हाथों की लकीरों में बहुत कुछ लिखा होता है जैसे हमारी सोच, हमारी इच्छा, हमारे मन की ऊर्जा, हमारा स्वभाव लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जब हमें यह जानकारी मिल जाए की हमारे हाथों की लकीरों में अमीर बनना लिखा है तो हम कर्म करना छोड़ दें और भाग्य के भरोसे बैठ जाएं। जबकि हमारी कुंडली और हाथों की लकीरों में जो लिखा होता है।वह कर्म करने से ही मिलता है।
अगर अच्छे विद्वान गुरू मिल जाए तो हमारी लकीरों को पढ़कर यह बता सकते हैं कि हमें अपने जीवन को उन्नतशील बनाने के लिए क्या करना है।
पर वह यह कभी नहीं कहेंगे की तुम कर्म करना छोड़ दो और सिर्फ भाग्य के भरोसे बैठ जाओ। वह कहेंगे कि, रास्ता मैंने दिखाया है और अब तुम अपने कर्म से इसे मंजिल तक पहुंचाने का कार्य करो"।
"पंडित जी मैंने तो यही सुना है कि पंडित लोग लोगों को गुमराह करने का प्रयास करते हैं।वह कहते हैं यह उपाय करो वह उपया करो तुम अच्छे नम्बर से पास हो जाओगे तुम अमीर बन जाओगे आदि आदि मेरी सहेली को भी किसी पंडित ने बताया था कि वह परीक्षा में अच्छे नंबरों से पास हो जाएगी रात में कोई मंत्र जपें उसने यही किया और वह फेल हो गई"मीनू ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा
"तुम्हारी बात बिल्कुल ठीक है कुछ लालची पंडित ऐसे होते हैं। पर जो वास्तव में विद्वान पंडित होते हैं वह कभी भी कोई ऐसा वैसा उपाय नहीं बताएंगे वह तुम्हें कर्म करने की शिक्षा देंगे।
हाथ की लकीरों में जो लिखा होता है उसे बदला भी जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति यह जान जाए की मेरे हाथ की लकीरों में अमीर बनना नहीं लिखा है।
पर वह यह ठान लें कि उसे अमीर बनना ही है तो वह कठोर परिश्रम करेगा और अपने मार्ग में आने वाली सभी कठिनाइयों को पार करता हुआ अपने लक्ष्य को हासिल कर लेगा।
बेटा ज्योतिष का कार्य मार्गदर्शन करना होता है गुमराह करना नहीं ऐसा किसी भी शास्त्र में वर्णित नहीं है कि यदि हमें अपने भविष्य के विषय में कोई जानकारी मिल जाए कि, हमें बहुत धन-संपत्ति और मान सम्मान मिलेगा तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम भाग्य के भरोसे बैठ जाए। बल्कि इसका तात्पर्य यह होता कि उसे प्राप्त करने के लिए हम सच्चे मन से कठोर परिश्रम करें और उस सुख को प्राप्त करें"पंडित जी ने मीनू को समझा।
"मैं आपकी बात का मतलब समझ गई पंडित जी आपके कहने का तात्पर्य यह है कि हमें यदि अपने भविष्य के विषय में कुछ अच्छी बात पता चलें तो उसे प्राप्त करने के लिए हम कठोर परिश्रम करें और यदि कुछ ऐसी जानकारी मिले की हमारे जीवन में कठिनाइयों का आगमन होगा तो हम पहले से ही दृढ़ता से उसका सामना करने के लिए तैयार रहें। पहले से मिली जानकारी के कारण हम मानसिक रूप से तैयार रहेंगे और कठिन समय आने पर विचलित नहीं होंगे। क्यों पंडित जी मैंने ठीक कहा है"??मीनू ने हंसते कहा
"बिटिया तुमने बिल्कुल ठीक कहा यही होना चाहिए हमें कर्म के साथ साथ भाग्य को भी मानना चाहिए क्योंकि जो ईश्वर ने हमारे भाग्य में लिख दिया है उसे हम पूरी तरह बदल नहीं सकते पर यदि हमें पता रहें तो हम अपने अच्छे कर्मों के द्वारा उन परिस्थितियों में सरल बना सकते हैं"पंडित जी ने हंसते हुए कहा।
"तो फिर पंडित मेरा हाथ देखिए कि मेरी हाथ की लकीरों में क्या लिखा है"?? मीनू ने हंसते हुए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया उसकी बात सुनकर उसकी मां के चेहरे पर मुस्कान आ गई और पंडित जी मुस्कुराते हुए मीनू के हाथ की लकीरों को पढ़ने लगे।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
3/2/2021