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जब दोबारा हाथों में रची मेंहदी

15 फरवरी 2022

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  जब दोबारा हाथों में लगी मेंहदी

राघवेन्द्र जी का घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था ग़ुलाब, बेला, चम्पा और मोंगरें के फूलों से पूरा वातावरण महक रहा था उनकी इकलौती बेटी रति की शादी की रस्में चल रही थीं।

राघवेन्द्र जी बाहर की सभी व्यवस्थाएं देखने में व्यस्त थे और अंदर मेंहदी की रस्म की तैयारियां हों रहीं थीं।रति की मां मालती घर की व्यवस्था को देख रही थीं कहीं कोई कमी न रह जाए तभी उन्होंने कहा " अरे लड़कियों तुम सभी अच्छी तरह से सुन लो कोई भी लड़की और औरत बिना मेंहदी रचे हाथ के दिखाई नहीं देने चाहिए यह जिम्मेदारी तुम सभी की है"

रति के पास बैठी उसकी सहेली सुरभि मालती जी की बात सुनकर उदास हो गई उसके हाथों में तो मेंहदी लग नहीं सकती थी क्योंकि वह विधवा जो थी शादी के एक साल के अन्दर ही एक कार दुर्घटना में उसके पति की मौत हो गई थी।रति  सुरभि के चेहरे की उदासी को देखकर खुद भी उदास हो गई सुरभि उसकी बचपन की सहेली थी और उसके पड़ोस में ही रहती थी सुरभि का उदास चेहरा रति के मन को द्रवित कर गया उसने सुरभि का ध्यान बंटाने के लिए पूछा

" सुरभि तू मेरी शादी में क्या पहनेगी"

" मेरा क्या है कुछ भी पहन लूंगी मुझे कौन सा श्रृंगार करना है" सुरभि ने फीकी मुस्कान के साथ जबाव दिया पर यह कहते हुए उसकी आंखें नम थीं।रति को अच्छी तरह पता है कि, सुरभि को सजना-संवरना कितना पसंद था सावन आते ही वह अपने हाथों में मेंहदी जरूर लगाती थी।आज वही सुरभि बिना साज श्रृंगार किए उसके पास बैठी हुई थी यह समाज की कैसी रीत है कि, पति के मरते ही पत्नी से सजने-संवरने का अधिकार छीन लिया जाता है।

रति सुरभि से कुछ कहती तभी घर में शोर मच गया कि, आस्ट्रेलिया वाली मौसी जी आ गई मौसी के आने की ख़बर सुनकर रति खुशी से उछल पड़ी और दौड़कर मौसी के सामने पहुंच गई रति के पीछे पीछे सुरभि भी थी मौसी जी के साथ उनके दोनों बेटे थी थे उनके बड़े बेटे की शादी हो गई थी एक पोता भी था छोटा बेटा अभी कुंवारा ही था।मौसी ने रति को अपने गले लगाकर ख़ूब प्यार किया उसकी बलाएं उतारी तभी उनकी नज़र सुरभि पर पड़ी सुरभि की उदास आंखें और बिना श्रृंगार का चेहरा देखकर मौसी सोच में पड़ गई क्योंकि वह इससे पहले जब भी सुरभि से मिली थीं उन्होंने उसे चहकते हुए देखा था सुरभि हमेशा रंग-बिरंगे कपड़े पहनती हमेशा सजी-संवरी रहती थी उसके गोरे और खूबसूरत चेहरे पर मुस्कराहट दिखाई देती थी लेकिन आज तो सुरभि का चेहरा उदास और मुरझाया हुआ लग रहा था उसने हल्के रंग के कपड़े पहने हुए थे।

" अरे सुरभि तू वहां क्यों खड़ी हुई है मेरे पास आ" मौसी ने बहुत प्यार से सुरभि को अपने पास बुलाया सुरभि संकोच करती हुई मौसी के पास गई।

" यह कैसी सूरत बना रखी है तूने सुरभि तेरी सहेली की शादी है और तू इतनी उदास और मुरझाईं हुई क्यों लग रही है मेहंदी में यही कपड़े पहनेंगी इसमें तेरी फोटो अच्छी नहीं आएगी समझी, जा जल्दी से कपड़े बदलकर आ" मौसी जी ने प्यार से डांटते हुए कहा।

" जीजी शायद आपको पता नहीं है सुरभि अब रंगीन कपड़े नहीं पहन सकती यह अब विधवा है इसे अब सजने-संवरने का अधिकार नहीं है इसे तो यहां आना ही नहीं चाहिए था पर मेरी कोई सुनता ही नहीं एक विधवा को शुभ कार्य में नहीं आना चाहिए अपशकुन माना जाता है पर मेरी मालती जीजी और रति इन बातों को मानती ही नहीं तो मैं भी चुप हो गई" रति की चाची ने मुंह बनाते हुए कहा।

रति की चाची की बात सुनकर सुरभि की आंखों में आसूं आ गए और वह वहां से जाने लगी।

" सुरभि तुम कहां जा रही हो यहां आओ और रति के कमरे में जाकर उसका कोई सूट पहनकर नीचे आओ मैं यहां हाल तुम्हारा इंतज़ार कर रहीं हूं और लड़कियों तुम लोग खड़ी-खड़ी मुंह क्या देख रही हो मेंहदी लगवाने की तैयारी शुरू करो" मौसी ने प्यार से डांटते हुए हंसकर कहा उनके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह कुछ सोच रही हैं।
लड़कियों ने रति को मेंहदी के लिए बैठाया और मेहंदी की रस्म शुरू हो गई ढ़ोलक बज उठी और मेंहदी के गीत गाए जाने लगे घर का पूरा वातावरण संगीतमय हो गया लड़कियों ने गाने के साथ नाचना भी शुरू कर दिया था।

तभी सुरभि रति का मेंहदी रंग का सलवार सूट पहनकर नीचे हाल में दाखिल हुई उसका उदास सौंदर्य भी मनमोहक लग रहा था मौसी जी ने अपने छोटे बेटे को बुलाकर धीरे से कुछ कहा जिसे सुनकर उसके चेहरे पर शर्मिली सी मुस्कान फ़ैल गई और वह सुरभि को कनखिंयो से देखता हुआ वहां से चला गया।

जहां मेंहदी की रस्म हो रही थी वहां सुरभि की मां भी अभी-अभी आकर बैठी थीं सभी लड़कियों के चहकते चेहरे देखकर उनका मन अपनी बेटी के लिए उदास हो गया क्योंकि सुरभि के चेहरे पर मुस्कान के स्थान पर उदासी छाई हुई थी।हाल में बैठी सभी लड़कियों और औरतों को मेंहदी लगाने वाली लड़कियां मेंहदी लगा रहीं थीं एक मेंहदी लगाने वाली लड़की अभी-अभी मेंहदी लगाकर खाली हुई थी उसे देखकर मौसी जी ने कहा।

" मेंहदी वाली बिटिया तुम मेरी होने वाली छोटी बहू के हाथों में मेंहदी लगा दो बहुत ही सुन्दर मेंहदी लगाना और उसके हाथों पर मेरे बेटे का नाम लिख देना" मौसी जी ने हंसते हुए कहा।

मौसी जी की बात सुनकर सभी आश्चर्यचकित होकर उन्हें देखने लगे रति ने आश्चर्य से पूछा "आपकी होने वाली छोटी बहू कौन है मौसी जी"

" और कौन तेरी सबसे प्यारी सहेली सुरभि अब तेरी होने वाली भाभी है" मौसी जी ने हंसते हुए कहा।

अपनी मौसी की बात सुनकर रति खुशी से उछल पड़ी और खुशी से चिल्लाकर बोली "आप सच कह रहीं हैं मौसी"

" हां मैं बिल्कुल सच कह रही हूं मैं सुरभि को अपनी बहू बनाऊंगी उसके जीवन में फिर से खुशियों के फूल खिलेंगे अभी उसकी उम्र ही क्या है इस मासूम के साथ जो हुआ उसमें इसका कोई दोष नहीं है फिर इसको किस बात की सज़ा दी जा रही है लोग इसे अपशकुनी कह रहें हैं जबकि यह सभी जानते हैं कि, जिंदगी और मौत ईश्वर के हाथों में होती है तो सुरभि उसकी जिम्मेदार कैसे हुई यहां मैंने देखा है कि,लोग दूसरों के दर्द को कम करने के स्थान पर उसे और बढ़ाते हैं। ईश्वर ने हमें इंसान बनाया है तो हमें अपनी इंसानियत नहीं भूलनी चाहिए अगर हम किसी के दुःख को दूर नहीं कर सकते तो उसे बढ़ाने का काम भी न करें अगर हम इस काबिल हैं कि, किसी के जीवन में खुशियां भर सकते हैं तो हमें उसके जीवन में खुशियों की बरसात करनी चाहिए। इसलिए मैंने अपने बेटे के साथ सुरभि का विवाह करने का फैसला किया है मैं शकुन अपशकुन को नहीं मानती कोई व्यक्ति अपशकुनी नहीं होता यह तो हमारा प्रारब्ध है जो किसी न किसी रूप में हमें भोगना ही पड़ता है। हमारे इतिहास में भी विधवा विवाह का उल्लेख मिलता है जब हमारे पूर्वजों को विधवा विवाह करने में कोई आपत्ति नहीं थी तो हम लोग कौन होते हैं उनका विरोध करने वाले।कल रति के साथ ही उसी मंड़प में दोनों सखियों का विवाह एक साथ होगा क्यों सुरभि की मां आपको तो इस विवाह से कोई आपत्ति नहीं है"?? मौसी जी ने सुरभि की मां से हंसते हुए पूछा।

मौसी जी की बात सुनकर सुरभि की मां अपने दोनों हाथों को जोड़कर उनके कदमों में झुक गई और रोते हुए बोली आपने तो मेरी बेटी के जीवन को खुशियों से भर दिया मुझे क्या आपत्ति हो सकती है मैं तो अजीवन आपकी ऋणी हो गई हूं"

मौसी जी ने सुरभि की मां को उठाकर अपने गले से लगा लिया और हंसते हुए कहा " अब हम समधन हैं इसलिए कोई छोटा बड़ा नहीं है आपने बेटी दी है तो बड़ी आप हुई मैं नहीं" सुरभि की मां के आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे उन्होंने सुरभि की ओर देखा तो उसके चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई और उसने ने शरमाकर अपना चेहरा झुका लिया।

तभी रति की मां मालती जी ने ख़ुश होकर कहा लड़कियों ढ़ोलक बजाओ आज मैं भी नाचूंगी क्योंकि आज मेरी दोनों बेटियों के हाथों में शगुन की मेंहदी लगने जा रही है।

वहां उपस्थित कुछ लोगों को छोड़कर सभी के चेहरों पर मौसी जी के लिए लिए सम्मान और श्रद्धा के भाव दिखाई दे रहे थे यही तो हमारी भारतीय संस्कृति और संस्कार हैं कि,जब हम स्वार्थ को त्यागकर अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन में भी खुशियों की सौगात बांटते हैं तो हमारी परम्पराओं का मान बढ जाता है।

डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
10/8/2021


काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bahut accha likha aapne 👌👌

17 फरवरी 2022

Kanchan Shukla

Kanchan Shukla

2 मार्च 2022

बहुत बहुत आभार आपका

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