मन में दबी अधूरी ख्वाहिश
नीरा अपनी अधूरी ख्वाहिश को पूरा करना चाहती थी लेकिन वह जानती थी कि, उसके माता-पिता उसकी उस अधूरी ख्वाहिश को कभी पूरा नहीं होने देंगे नीरा अपने मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में बैठी यही सोच रही थी।
तभी नीरा की सहपाठी मार्था वहां आ गई मार्था विदेशी वातावरण में पली-बढ़ी थी लेकिन उसे भारतीय संस्कार बहुत पसंद थे इसलिए उसकी नीरा के साथ अच्छी दोस्ती हो गई क्योंकि नीरा भी भारतीय परम्पराओं को बहुत महत्व देती थी अमेरिका में रहते हुए भी नीरा पर पाश्चात्य सभ्यता का रंग नहीं चढ़ा था नीरा तो अमेरिका में रहना ही नहीं चाहती थी पर वह अपने माता-पिता के आगे मज़बूर थी।
" नीरा तू यहां अकेली कमरे में बैठी हुई क्या सोच रही है चल कहीं घूमकर आते हैं आज तो छुट्टी का दिन है" मार्था ने कहा।
" नहीं मार्था मेरा मन कहीं जाने का नहीं है" नीरा ने उदास लहज़े में जवाब दिया।
" नीरू क्या हुआ तू इतनी उदास क्यों है"? मार्था ने घबराकर पूछा।
" मार्था मुझे लगता है कि,मेरी अधूरी ख्वाहिश कभी पूरी नहीं होगी" नीरा ने दर्द भरी आवाज में कहा।
" तेरी अधूरी ख्वाहिश!! तुम्हारी ऐसी कौन-सी ख्वाहिश थी जो अधूरी रह गई अभी तो तुमने अपनी डाक्टरी की पढ़ाई भी पूरी नहीं की है तुम्हारे डाक्टर बनने में 6 महीने बाकी हैं तुमने इतनी कम उम्र में कौनसा सपना देख लिया जो अधूरा रह गया कहीं कोई प्यार वार का चक्कर तो नहीं है मैडम"?? मार्था ने आश्चर्यचकित होकर मुस्कुराते हुए पूछा
" हां तू उसे प्यार का नाम दे सकती है पर वह मेरे लिए प्यार से ज्यादा किसी से किया गया वादा था जो शायद मैं कभी पूरा नहीं कर पाऊंगी" नीरा ने फीकी मुस्कान के साथ कहा।
" तू साफ-साफ बता कहना क्या चाहती है" मार्था ने संभलकर बैठते हुए कहा।
" मार्था यह आज से 10-12 साल पहले की बात है जब मैं अपने मम्मी पापा के साथ भारत में रहती थी मेरे पापा वहां के सरकारी अस्पताल में डॉक्टर थे मेरी दादी गांव में रहतीं थीं गांव में कोई अच्छा अस्पताल नहीं था दादी चाहती थीं कि, मेरे पापा गांव में अस्पताल खोलें पर मेरे मम्मी-पापा को गांव पसंद नहीं था वह यहां अमेरिका में रहना चाहते थे। एक बार मेरी दादी हमारे पास शहर आई हुई थी हमारे पड़ोस में एक और डाक्टर परिवार रहता था पाठक अंकल का उनका एक बेटा था दिग्विजय वह मुझसे 2 साल बड़ा था एक शाम मैं और दिग्विजय दादी जी से कहानी सुन रहे थे क्योंकि हमारे मम्मी-पापा पार्टी में गए हुए थे तब दादी ने अपने मन की ख्वाहिश हम लोगों से बताई की वह चाहतीं थीं की उनका बेटा यानिकि मेरे पापा गांव में अस्पताल खोलें और गरीबों का इलाज करें जब मैंने दादीजी से यह सुना तो मैंने और दिग्विजय ने एक साथ दादीजी से कहा
" दादी मैं बड़ी होकर डाक्टर बनूंगी और गांव में अस्पताल खोलूंगी और आपका सपना पूरा करूंगी मेरे साथ दिग्विजय ने भी मुझसे कहा था कि,वह डाक्टर बनकर गांव में अस्पताल खोलेगा लेकिन उसी रात जब मेरे मम्मी-पापा पार्टी से वापस आए तो उन्होंने मुझसे कहा कि,हम लोग जल्दी ही भारत छोड़कर अमेरिका चले जाएंगे यह सुनकर मैं बहुत दुखी हुई मैंने अपने माता-पिता से कहा भी कि, मुझे आपके साथ अमेरिका नहीं जाना है पर उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी और मुझे जबरदस्ती अपने साथ अमेरिका लेकर आ गए। मार्था मुझे आज भी अपनी दादी और दिग्विजय से किया वादा याद है मैं डाक्टर बनने के बाद यहां अमेरिका में नहीं रहना चाहती अपने देश वापस जाना चाहतीं हूं अपनी दादी और अपनी अधूरी ख्वाहिश को पूरा करने लेकिन मैं जानती हूं मेरे मम्मी-पापा मुझे ऐसा नहीं करने देंगे" नीरा ने उदास लहज़े में अपने मन की बात बताई।
नीरा की बात सुनकर मार्था भी गम्भीर हो गई कुछ सोचते हुए उसने कहा " नीरा तू अपनी अधूरी ख्वाहिश पूरी कर सकती है पर इसके लिए तुम्हें थोड़ा इंतजार करना होगा जब तुम डाक्टर बन जाना तो भारत अपनी दादी के पास चली जाना और वहां रहकर अपनी अधूरी ख्वाहिश को पूरा करना तुम कोई ग़लत काम नहीं करोगी यह तो तुम्हारा देशप्रेम और अपनी दादी के लिए तुम्हारा प्यार है जो तुम करोगी मुझे तुम पर गर्व है नीरू की तुम में आज भी अपने देश, अपने देशवासियों और अपनो के लिए प्यार और अपनापन है मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगी कि,वह तुम्हारी अधूरी ख्वाहिश को पूरा करने में तुम्हारी मदद करें जिससे तुम अपनी दादी और अपनी अधूरी ख्वाहिश को पूरा कर सको
"नीरा के मन में भी मार्था की बात सुनकर आशा की किरण जागी और उसके चेहरे पर दृढ़ता के साथ साथ आत्मविश्वास की चमक दिखाई देने लगी वह खुश होकर मार्था से लिपट गई आज नीरा के मन से एक बोझ उतर गया था। क्योंकि उसके मन से निराशा के बादल छंट गए थे वहां उम्मीद की रोशनी ने अपना घर बना लिया था अब बहुत जल्दी नीरा की अधूरी ख्वाहिश को पूरा करने का समय आने वाला था जब वह अपने देश लौटकर अपने अधूरे ख्वाब को हकीकत का जामा पहनाने वाली थी इसके लिए अगर उसे अपने माता-पिता का विरोध करना पड़ा तो भी वह पीछे नहीं हटेगी।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
9/8/2021