भूली दास्तां फिर याद आ गई
दस दिनों से लगातार बरसता हो रही थी आज जाकर सूर्यदेव ने दर्शन दिए गायत्री जी ने अपने घर काम करने वाली दुलारी की बेटी रानी जो अपनी मां के साथ अकसर गायत्री जी के घर आती थी उससे कहा " रानी आज तुम काम करने के बाद जाना नहीं रूक जाना मुझे स्टोररूम की सफाई करनी है उसमें तुम मेरी मदद कर देना। मुझसे अब अकेले काम नहीं हो पाता बरसात की नमी से कुछ चीजें ख़राब होने लगी होगी उन्हें देख लूंगी और जो बेकार का सामना होगा उसे बाहर निकाल दूंगी जो तुम्हारे काम की चीजें होंगी तुम लेती जाना कुछ कपड़े और बर्तन भी पड़े हुए हैं जिन्हें मैं इस्तेमाल नहीं करती तुम ले जाना वह मेरे लिए बेकार हैं तुम्हारे काम आ जाएंगे"
गायत्री जी की बात सुनकर दुलारी ने ख़ुश होकर कहा " ठीक है भाभी रानी को आप जब-तक चाहें रोक लें मैं आज और घरों में अकेले ही काम निपटा लूंगी"
क्योंकि दुलारी जानती थी कि, गायत्री जी के घर से उसे आज बहुत सी चीजें मिलेंगी वह वैसे भी सभी की अपेक्षा ज्यादा ही लेना देना करतीं हैं।
गायत्री जी स्टोररूम को व्यवस्थित करने में लग गईं रानी उनकी मदद कर रही थी तभी पुराने सामान में उसे एक पुराना एल्बम मिला वह उसको खोलकर देखने लगी एल्बम देखते हुए उसने हंसते हुए कहा " दादी जी इसमें यह बच्चा कौन है क्या यह विदेश वाले भैया का बेटा है"?रानी की बात सुनकर गायत्री जी ने चौंककर उसकी तरफ़ देखा तो उसके हाथ में वही एल्बम था जिसको वह ढूंढ रही थी और उसे मिल नहीं रहा था।
गायत्री जी ने एल्बम रानी के हाथ से ले लिया और उसकी फोटो देखते हुए बोली "नहीं रे यह तो तेरे अभय भैया की बचपन की तस्वीर है यह एल्बम यहां कैसे आया मुझे याद ही नहीं है"
" यह मैंने यहां रखा था क्योंकि मैं नहीं चाहता कि,तुम उस नालायक को देख-देख कर रोती रहो पर तुम्हें यह फिर से मिल गया इसे मुझे दो आज मैं इसे जलाकर राख कर दूंगा" गायत्री जी के पति ने गुस्से में एल्बम उनके हाथ से छिनते हुए कहा उनकी कड़कदार आवाज के साथ ही बाहर बिजली कड़कने लगी जैसे वह भी गुस्से में गायत्री जी से कह रही हो की तुम अब अपनी पुरानी यादों को जलाकर भस्म कर दो नहीं तो जीना मुश्किल हो जाएगा।
" नहीं आप ऐसा नहीं कर सकते आप का कलेजा पत्थर का हो सकता है पर मैं एक मां हूं मैं आप जैसा कठोर दिल कहां से लाऊं हमारे बेटे ने हमें भूला दिया पर मैं उसे कैसे भूल जाऊं मैंने उसे नौ महीने अपनी कोख में रखा था। मुझे विश्वास है कि,एक न एक दिन वह लौटकर मेरे पास अपनी मां के पास आएगा" गायत्री जी ने एल्बम अपने पति से लेकर उस को अपने सीने से लगाकर रोते हुए कहा।
" वह कभी नहीं आएगा वह तो तुम्हारी अर्थी को कंधा देने भी नहीं आएगा उसने एक विदेशी लड़की के लिए हमारे प्यार को अपने देश को भूला दिया उससे तुम वापस लौटने की आस कैसे लगा सकती हो। अगर उसे हम से प्यार होता तो वह हमें छोड़कर कभी नहीं जाता तुम कब तक उसकी यादों को अपने सीने से लगाए रहोगी सच को स्वीकार करो अब तुम्हारा बेटा अभय कभी वापस नहीं आएगा" गायत्री जी के पति ने झल्लाकर कहा।
" वह आएगा यह एक मां का विश्वास है तुम देखना तब तुमसे पूछूंगी की आप जीते या मेरा विश्वास" गायत्री जी ने दृढ़ता से कहा और एल्बम में अपने बेटे की बचपन की तस्वीर को प्यार से निहारते हुए उस पर हाथ फेरने लगी।
" आपका विश्वास जीत गया मां मैं आपके पास लौट आया" तभी दरवाज़े के पास से गायत्री जी को अपने बेटे अभय की आवाज सुनाई दी गायत्री जी और उनके पति ने चौंककर पीछे मुड़कर देखा तो स्टोररूम के दरवाजे पर उनका बेटा अभय खड़ा हुआ था।बाहर अभी भी बिजली कड़क रही थी साथ में बादल भी झूमकर बरस रहें थे।
अभय दौड़कर अपनी मां के पैरों में बैठ गया उसकी आंखों से आंसूओं की बरसात हो रही थी गायत्री जी और उनके पति की आंखों से भी आंसूओं की धारा बह रही थी बाहर की बरसात उनकी आंखों की बरसात के आगे धीमी लग रही थी आज एक मां के विश्वास की जीत हुई थी इसलिए सावन भी उनकी खुशियों में शामिल होकर अपना योगदान दे रहा था।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
27/7/2021