अपना गांव अपना देश
" तुम भारत क्यों जाना चाहती हो उस देश में क्या रखा है स्वार्थ, बेईमानी,लालच, विश्वासघात के अलावा वहां कुछ नहीं है वहां आज भी लड़कियों को उतनी स्वतंत्रता नहीं मिली है जितनी यहां अमेरिका में हमने तुम्हें दी है।अब तुम्हें रहना तो अमेरिका में ही है तो भारत क्यों जाने की ज़िद्द कर रही हो ईशानी"?? मोनिका ने अपनी बेटी को आश्चर्य से देखते हुए कहा जो कुछ दिनों के लिए भारत जाने की ज़िद्द कर रही थी।
" मोना अगर ईशानी भारत जाना चाहती है तो उसे जाने दो वहां जाकर वह अपने दादा-दादी से भी मिल लेगी घर के दूसरे सदस्यों से मिलकर उसे अच्छा लगेगा" ईशानी के पिता सुरेश ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा।
" लेकिन ईशानी भारत जाना ही क्यों चाहती है वहां क्या रखा हुआ है आप जिस रिश्ते की दुहाई दे रहें हैं वह कितने खोखले हैं यह आप भी जानते हैं आप जब मुझे अपने माता-पिता और भाई के पास छोड़कर यहां अमेरिका तीन साल के लिए आ गए थे तो आप के घर वालों ने मेरे और आपके बच्चों के साथ कितना बुरा व्यवहार किया था आप यहां से जो पैसे भेजते थे आपके माता-पिता उसे अपने पास रख लेते थे और मुझसे कहते थे कि, हमारे पास तुम्हारी परवरिश के लिए पैसे नहीं अपने मायके से अपना खर्चा मांगाओ मेरा और मेरे बच्चों का ख़र्चा मेरे माता-पिता देते थे। आपका भेजा हुआ पैसा आपकी मां आपके छोटे भाई के व्यापार के लिए इकट्ठा कर रहीं थीं जब आप अचानक भारत आए थे तो आपने स्वयं अपनी आंखों से हम लोगों की दुर्दशा देखी थी फ़िर भी आप उन रिश्तों की बात कर रहें हैं मैं अब उन लोगों से कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहती न अपने बच्चों को रखने दूंगी आपको अच्छा लगे या बुरा लगे ईशानी भारत नहीं जाएगी पर यह जाना ही क्यों चाहती है" मोना ने गुस्से में झल्लाकर कहा।
" मम्मा दीदी फोटोग्राफी प्रतियोगिता में भाग ले रही है यह प्रतियोगिता विश्व स्तर की है इसमें ज्यादातर देश भाग लें रहें हैं दीदी इसी सिलसिले में भारत जाना चाहती है वहां के स्वाभाविक प्राकृतिक सौंदर्य की तस्वीरें लेने अब आप समझ गई होगी" ईशानी की छोटी बहन पीहू ने हंसते हुए कहा।
" क्यों यहां अमेरिका और अन्य देशों में उसे प्राकृतिक सौंदर्य की तस्वीरें नहीं मिलेगी जो उसके लिए भारत जाना जरूरी है" मोना ने गुस्से में कहा।
" मम्मा मुझे जो तस्वीरें चाहिए वह मुझे भारत में ही मिल सकती है मैं भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहती मुझे कुछ अलग तरह की तस्वीरों को इकट्ठा करना है वह सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत में ही मिल सकती है मां मैं मानती हूं कि, रिश्तों ने आपको बहुत आहत किया है आपने रिश्तों से धोखें भी खाएं हैं पर मां आप ही कहतीं हैं कि, आपको कुछ अच्छे रिश्ते भी मिले हैं नाना-नानी, मौसी आपकी सहेली विनीता मौसी, पड़ोस वाली चाची जी, और पड़ोस वाली रानी बुआ आप इन्हें कैसे भूल रहीं हैं वह भी तो रिश्ते ही हैं उनमें कुछ के साथ खून का रिश्ता है और कुछ के साथ प्यार का मम्मा मैं भारत घूमने जा रहीं हूं बसने नहीं मैं दादा-दादी से मिलने जरूर जाऊंगी दादी हम दोनों बहनों को पसंद नहीं करतीं थीं क्योंकि हम लड़कियां थीं उन्हें लड़का चाहिए था मैं उन्हें दिखाऊंगी की हम लड़कियां भी लड़कों से कम नहीं हैं। लेकिन मम्मा अब मैंने सुना है कि,भारत बदल रहा है अब पहले जैसी स्थिति नहीं है आपको यहां आए 20 साल हो गए हैं इतने दिनों में बहुत कुछ बदल गया होगा।आप मुझे खुशी खुशी जाने की इजाजत दीजिए वरना मैं आपकी नाराज़गी के साथ ख़ुश नहीं रह पाऊंगी" ईशानी ने मोनिका से लिपटे हुए कहा।
" ठीक है जाओ पर अपना ख्याल रखना मुझे रोज़ फ़ोन करना" मोना ने उदास लहज़े में कहा।
उसके बाद ईशानी भारत के लिए रवाना हो गई भारत पहुंचने के बाद ईशानी भारत के गांवों, जंगलों और पहाड़ों पर भ्रमण करने लगी उसके गले में कैमरा लटका रहता और होंठों पर मुस्कराहट के साथ गीत होता ईशानी को भारत का प्राकृतिक सौंदर्य भा गया था।
ईशानी जब फोटोग्राफी करती तो नेचर के साथ वहां के लोगों की तस्वीरें भी खींच लेती थी एक दिन एक औरत अपनी छोटी बच्ची के साथ नदी के किनारे बैठी हुई कुछ लिख रही थी बच्ची शैतानी कर रही थी मां ने कहा भी कि,वह चुपचाप बैठे पर बच्ची मां को लिखने नहीं दे रही थी। तभी अचानक बच्ची का पैर फिसला और वह नदी में गिर गई मां ने ना आव देखा न ताव वह भी बच्ची को बचाने के लिए नदी में कूद गई जबकि मां को तैरना नहीं आता था जब मां बेटी डूबने लगी तो आस-पास के लोगों ने उन्हें बचाया यह देखकर ईशानी भारतीय मां की ममता की गहराई को समझ गई कि,एक मां अपने बच्चे को कभी भी कष्ट में नहीं देख सकती। ईशानी की मां भी अपनी सास से इसलिए नाराज़ है कि, उन्होंने उसकी बच्चियों को कष्ट दिया था।
ईशानी को भारत आए लगभग 6 महीने हो गए थे इस बीच ईशानी को भारत से लगाव है गया वह अपनी दादी के पास गई वहां जाकर उसे पता चला कि, उसके चाचा चाची उसके दादा-दादी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते वह दोनों बहुत बीमार भी हैं उनका इलाज़ भी ठीक से नहीं हो रहा है ईशानी से यह सब देखा नहीं गया उसने अपने दादा-दादी को अस्पताल में भर्ती कराया उनकी सेवा की जब वह लोग ठीक हो गए तो उसने कहा
" क्या आप लोग मेरे साथ अमेरिका चलेंगे" ईशानी ने पूछा तब उसके दादा-दादी ने कहा कि,
" हम लोग अपनी जन्मभूमि छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे वह अपनी अंतिम सांस अपने देश में ही लेना चाहते हैं लेकिन एक बार वह अपनी बहू मोनिका से मिलकर माफ़ी मांगना चाहते हैं"
अपने दादा-दादी की बात सुनकर ईशानी ने अपनी मां से प्रार्थना की कि,वह एक बार भारत आ जाए ईशानी के ज्यादा जोर देने पर मोनिका अपने पति और छोटी बेटी के साथ भारत आ गई।
यहां अपने सास-ससुर का बदला हुआ व्यवहार देखकर उसका गुस्सा भी खत्म हो गया क्योंकि भारतीय संस्कार की यह खासियत है कि,हम चाहे जितना किसी से नाराज़ रहें अगर सामने वाला अपनी गलती मान लेता है तो हमारा गुस्सा छूमंतर हो जाता है यही मोना के साथ हुआ।मोनिका ने जब देखा की उसके सास-ससुर बुजुर्ग हो गए हैं इनकी देखभाल करने वाला भी यहां कोई नहीं है यह लोग अमेरिका जाना नहीं चाहते तो मोनिका ने ही फ़ैसला किया कि,वह अब यही भारत में रहकर अपने सास-ससुर की सेवा करेगी।
जब अपनी मां के फैसले के विषय में ईशानी को पता चला तो उसके हंसते हुए कहा," मुझे पता था आप चाहें जितना नाराज़ हों लेकिन दादा-दादी की तकलीफ़ आप देख नहीं पाएंगी और अपना फ़ैसला बदल देगी यही तो भारतीय नारी के संस्कार हैं वह अपने सुख से पहले अपने परिवार के सुख-दुख के विषय में सोचती हैं मुझे अपनी मम्मा पर गर्व है वह ऊपर से सख्त और अंदर से नरम हैं बिल्कुल नारियल की तरह" ईशानी ने हंसते हुए कहा ईशानी की बातें सुनकर सभी के चेहरों पर मुस्कान फ़ैल गई।
मोनिका ने अपनी बेटी को बहुत प्यार से देखते हुए कहा " मेरी ईशानी बहुत ही समझदार हो गई है इसमें भारतीय संस्कारों की छलक साफ़ दिखाई दे रही है आज मैं बहुत खुश हूं कि, मैंने अपने बच्चों को विदेश में रहकर पाला फिर भी उनमें भारतीय संस्कारों की छलक साफ़ दिखाई दे रही है यही मेरी परवरिश की जीत है।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
16/8/2021