गलत फ़ैसले का अंज़ाम
" मैंने अच्छी तरह सोच लिया है वैभव मैं यहीं अमेरिका में ही रहूंगी मुझे भारत लौटकर नहीं जाना है जाॅन कह रहा था अगर मैं चाहूं तो कम्पनी में स्थाई रूप से नौकरी कर सकती हूं। इसलिए मैंने सोचा है कि, यहां कांटेक्ट समाप्त होने के बाद भी मैं यहीं नौकरी करतीं रहूंगी ऐसा ही दूसरा कांटेक्ट कर लूं मैं तो तुमसे भी यही कहूंगी कि, तुम भी भारत लौटकर न जाओ हम लोग यहीं रह जाते हैं यहीं शादी कर लेंगे तुमने क्या सोचा है"?? दिव्या ने वैभव से कहा उसके चेहरे को देखकर लग रहा था कि, उसने अमेरिका में रहने का निर्णय कर लिया है।
" नहीं दिव्या मैं यहां नहीं रह सकता मैं वापस लौटकर अपने देश जा रहा हूं मैंने अपनी मां और अपने देश से वादा किया था कि, मैं अपने कांटेक्ट को नहीं बढ़ाऊंगा हम दोनों भारत से यहां कुछ नया सीखने आए थे और हमने यह निर्णय किया था कि हम अमेरिका में बसेंगे नहीं यहां का कांटेक्ट समाप्त कर अपने देश वापस लौट जाएंगे। परंतु यदि तुम यहां रहना चाहती हो तो मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं अगर मैंने ऐसा किया तो शायद इस समय तुम मेरी बात मान जाओ पर आगे जाकर हो सकता है कि तुम्हारे मन में यह कसक़ बनी रहें की यदि तुम मेरी बात नहीं मानती तो तुम्हारी जिंदगी और अच्छी होती अगर ऐसी सोच तुम्हारे मन में आ गई तो हमारा जीवन नर्क बन जाएगा इसलिए मैं तुम्हें भारत चलकर शादी करने के लिए नहीं कहूंगा। मैं तुमसे प्यार करता हूं और शादी भी करना चाहता हूं पर मैं अपने माता-पिता और अपने देश से भी प्यार करता हूं इसलिए मैं तुम्हारे लिए उन्हें नहीं छोड़ सकता मेरे माता-पिता ने मुझे लेकर जो सपना देखा है मैं अपनी खुशी के लिए उन्हें नहीं तोड़ सकता मैं भारत जाकर अपने माता-पिता की पसंद की लड़की से शादी भी करूंगा पर यह भी सच है कि, मैं तुम्हें भी भुला नहीं पाऊंगा।तुम भी यहां अपनी नई दुनिया बसा लेना अगर मैं कभी अमेरिका आया तो तुमसे मिलने जरूर आऊंगा हम एक अच्छे दोस्त हमेशा रहेंगे तुम कभी यदि भारत आना तो मुझसे मिलने जरूर आना। अच्छा अब मैं चलता हूं मैं चाहता हूं कि,कल शाम आखिरी बार तुम मेरे साथ काफ़ी पीने चलो उसी रेस्टोरेंट में जहां हम अकसर काफ़ी पीने जाते हैं कल शाम मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा" वैभव ने दिव्या से कहा और वहां से चला गया।
दिव्या वहीं बैठी वैभव को जाते हुए देखती रही उसके चेहरे पर वैभव से बिछड़ने का दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था पर वह अमेरिका में रहने के मोह को छोड़ नहीं पा रही थी।कुछ देर दिव्या बैठी रही फिर उसने सोचा कि,घर जाने से पहले वह जाॅन से मिलकर उसे बता दे कि,वह यहां अमेरिका में रहने का निर्णय कर चुकी है।यह सोचकर दिव्या ने अपनी कार का रूख़ जाॅन के घर की ओर मोड़ दिया।दिव्या ने गाड़ी कम्पाऊण्ड में खड़ी की और घर के दरवाजे पर पहुंची उसने दस्तक देने के लिए हाथ बढ़ाया तो दरवाजा खुल गया दिव्या अन्दर चली गई तभी उसने जाॅन के मुंह से अपना नाम सुना वह किसी से कुछ कह रहा था। दिव्या वहीं रुककर जाॅन की बातें सुनने लगी जाॅन अपने किसी अंग्रेज दोस्त से कह रहा था,
" जार्ज मैंने उस इंडियन लड़की को अपने शीशे में उतार लिया है मैं उसको पाना चाहता हूं पर जब-तक उसका इंडियन ब्वायफ़्रेंड वैभव उसके साथ है वह मेरे करीब नहीं आएगी पर वैभव के इंडिया जाने के बाद मैं दिव्या को अपने बेडरूम तक ले आऊंगा।कुछ दिनों तक उसके साथ रहने के बाद उसे छोड़ दूंगा उसने वैभव के लिए मेरा अपमान किया था इसकी सज़ा मैं उसे अपने बेडरूम तक लाकर दूंगा" जाॅन ने जहरीली हंसी हंसते हुए कहा।
" अगर उसने शादी करने के लिए कहा तो क्या करोगे" जार्ज ने हंसकर पूछा।
" शादी कभी नहीं करूंगा मुझे बंधकर रहना पसंद नहीं है तू मेरा यार है मैं तुम्हें भी मौका दूंगा उसके साथ रात बिताने के लिए वह इंडियन लड़की है उसे बातों की जाल में फंसाना मुश्किल नहीं होगा" जाॅन ने व्यंग्यात्मक शैली में कहा।
दिव्या जाॅन की बात सुनकर स्तब्ध रह गई फिर अचानक उसके चेहरे पर क्रोध दिखाई देने लगा वह अन्दर चली गई कमरे का दरवाजा भी खुला था। अचानक अपने सामने दिव्या को देखकर जाॅन और जार्ज घबरा गए।दिव्या का क्रोधित चेहरा देखकर वह दोनों समझ गए की दिव्या ने उनकी बातें सुन लीं हैं।जाॅन कुछ कहता उससे पहले दिव्या ने सिंहनी की तरह दहाड़ते हुए कहा "शाय़द तुम्हें यह नहीं पता कि,जब कोई इंडियन लड़की किसी आवारा लड़के की ताजपोशी अपनी सैंडिल से करती है तो उसका रूप कैसा होता है" इतना कहकर दिव्या ने अपनी सैंडिल निकाली और शुरू हो गई दोनों शराब के नशें में थे तो ज्यादा विरोध करने की स्थिति में भी नहीं थे दिव्या ने जमकर ताजपोशी की।
फिर दिव्या वहां से निकलकर अपने घर चली गई दूसरे दिन नियति समय पर दिव्या रेस्टोरेंट पहुंचीं आज उसने पिंक कलर की साड़ी पहनी हुई थी यह रंग वैभव को बहुत पसंद था। वैभव पहले ही वहां बैठा दिव्या का इंतज़ार कर रहा था। उसने जब दिव्या को अपनी पसंद की साड़ी में देखा तो उसके चेहरे पर दर्द भरी मुस्कुराहट फ़ैल गई।दिव्या वैभव के पास पहुंचकर कुर्सी पर बैठ गई उसके चेहरे पर उदासी और गम्भीरता स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
वैभव ने काफ़ी का आर्डर दिया दिव्या वैभव को देखती रही कहा कुछ नहीं तभी वेटर दो कप काफ़ी और सैंडविच रखकर चला गया।दिव्या बड़े ध्यान से काफ़ी के प्याले को देखती रही।
" क्या देख रही हो काफ़ी देखने की नहीं पीने की चीज है" वैभव ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी दिव्या ने अपना हाथ वैभव के हाथ पर रख दिया और दर्द भी आवाज़ में कहा " वैभव मेरा टिकट भी करा लो मुझे भी तुम्हारे साथ भारत चलना है अगर तुम यहां से चले गए तो मैं तुम्हें खो दूंगी जो मैं हरगिज़ नहीं होने देना चाहती इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ भारत चल रहीं हूं मैं एक भारतीय नारी हूं अपने पति को किसी सौतन के हाथों कैसे सौंप दूं" दिव्या ने दर्द भरी मुस्कुराहट के साथ जबाव दिया।
दिव्या की बात सुनकर वैभव के चेहरे पर खुशी की चमक दौड़ गई उसने अपना दूसरा हाथ दिव्या के हाथ पर रख दिया यह उसकी मौन स्वीकृति थी।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
19/8/2021