बेज़ार नही हम तुझसे मेरे मौला !
मगर शिकवा जरूर है तुझसे ।
जिन्हें चाहते है हम जी भर कर ,
काश के उनको मेरे मुकद्दर में,
बनाया होता ।
यूँ तो जिंदगी के हर पहलुओं में ,
मुझे तुझसे शिकायत रही है मगर ।
हो जाती यलगार मेरे,
आसुओं की तुझसे अगर ।
जो तूने मुझे मेरे महबूब से,
मिलाया न होता ।
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी