ऐ जिंदगी बना हूँ, मैं तेरा दीवाना ।
और तू है कि , चली जा रही है ।
कभी खामोश सी और , कभी मुस्कुरा रही है ।
जरा ठहर तो सही , आ पास बैठ ।
कुछ तू अपनी कह, कुछ हम अपनी सुनाएं ।
आ चल कहीं दूर , हम इक दूजे में खो जाएं ।
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी