तेरी इस अंजुमन में , आ तो गए हम ।
अब मुझको तुम , संभाल लेना ।
मुद्दतों से खुश्क ही रहा है ये दिल,
इक़ घुट ही काफी है ।
तेरे मयकदे से छलके है जाम ,
और ज़ियादा ।
पी जाएं कुछ ज़ियादा हम ,
"जाम ए हुश्न"
तेरे होंठों के प्यालों से ।
चढ़ जाए अगर कहीं ज़ियादा ,
तो उतार कर लेना।
होंगे कई और भी मेहमाँ ,
तेरी इस महफ़िल में ।
कहीं हम बहक न जाए ,
तेरी इस महफ़िल में ।
अपना करम मुझ पर, बनाये रखना ।
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी