कू-कू कोयल राग प्यार का ,
गीत मधुर यह गाती है ।
बैठी है दूर डाल पर ,
सबके मन को भाती है ।
नही बैर इसको किसी से ,
मस्ती में यह रहती है ।
कू-कू कोयल राग प्यार का,
गीत मधुर यह गाती है ।
बसंत अलबेला देखो आया ,
मस्त फूलों की हर डाली है ।
चहक रहे पंछी सारे ,
उत्सव बड़ा निराला है ।
जंगल में है आज मंगल,
कोयल रानी आयी है ,
हुए सब "मंत्रमुग्ध"
कू -कू ने ऐसा ,
गीत प्यार का गया है ।
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी