हे प्रभु !
कुछ पल के लिए ही सही , मुझे वो सकुन दे दे ।
न अहसास गम का , न खुशी का ही ।
न मैं खुद को जान सकूँ , और न किसी को पहचान सकूँ ।
सब , देख लिया है यहां ।
बदल रहा है हर कोई , मौसम की तरह ।
न मैं महसूस कर सकूँ , किसी मौसम को ।
और न मैं कभी बदल सकूँ ,मौसम की तरह ।
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी