कभी घबराया तो , कभी शरमाया हूं मैं ।
कभी चिलमन को हटाया तो ,
कभी खुद को उसमें छुपाया हूं मैं ।
दिल में हुआ था कुछ कुछ , देख कर उन्हें मेरे ।
शायद रहा हो वो "इश्क"
जिसे जमाने से अब तक ,छुपाया हूं मैं ।
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी