मैं समय के साथ बदला हूं , या समय मेरे साथ ।
जो भी हो पर अब , अंतर पहले से बहुत हो गया है ।
लाली गुम और , गाल गुठली आम हो गया है ।
उमर अभी खास नहीं मगर , लगते बुजुर्ग 60 पार हो गया है ।।
मुंह में दांत नहीं और ,पेट में आंत नहीं ।
सब खाली-खाली सा मन का अब ये, मकाम हो गया है ।।
जो भी हो पर अब , अंतर पहले से बहुत हो गया है ।
हमसे कुछ ज्यादा ही रुष्ठ अब , शायद भगवान हो गया है ।
कांपते हाथ और , लड़खड़ाते कदम ,मानो भूकंप आया हो हल्का सा जैसे ।
भय से रक्त का रगों में , तीव्र संचार हो गया है ।
जो भी हो पर अब , अंतर पहले से बहुत हो गया है।
सब खाली-खाली सा मन का अब ये, मकाम हो गया है ।
हमसे कुछ ज्यादा ही रुष्ठ अब , शायद भगवान हो गया है ।
✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी