कुछ बहुत गम्भीर अपराधों के लिए ही भारत में मौत की सज़ा दी जाती है। 1995 के बाद भारत में 5 ही ऐसी घटनाएं घटित हुई है जिसमें भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सज़ा सुनाई है।
दुनिया में हर अपराध के लिए कोई न कोई सज़ा मौजूद है। पर सबसे बड़ी जो सज़ा होती है वो होती है “सज़ा-ए-मौत” की सज़ा। तो आइये जानते हैं भारत में मौत की सज़ा से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।
भारत में फांसी का फंदा बिहार की बक्सर जेल में तैयार होता है। क्योंकि वहां के कैदियों को फांसी का फंदा तैयार करने के लिये माहिर माना जाता है। भारत में जहां कहीं भी फांसी की सज़ा दी जाती है वहां पर फंदा बिहार से ही मंगवाया जाता है।भारत में मौत की सज़ा बहुत ही गम्भीर या फिर कह सकते हैं बहुत ही दुर्लभतम मामलों में ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाई जाती है। और सज़ा सुनाने पर अदालत को ये लिखना पड़ता है कि आखिर मामले को दुर्लभतम क्यों माना गया है।जिस किसी कैदी को फाँसी की सज़ा सुनाई जाती है उसके लिए फाँसी का फंदा कहीं बाहर से नहीं मंगवाया जाता है बल्कि उसके लिए फाँसी का फंदा जेल में ही सज़ा काट रहा कोई कैदी ही तैयार करता है। और ऐसी व्यवस्था अंग्रेजों के समय से ही भारत में चली आ रही है।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जिन कैदियों को “सज़ा-ए-मौत” दी जाती है उनके घर परिवार को 15 दिन पहले ही इस बात की खबर मिल जानी चाहिए जिससे वो आकर उनसे मिल सकें।भारत में फांसी देने के लिए पूरे देश में केवल दो ही जल्लाद हैं। और ये जल्लाद जिन राज्यों में रहते हैं उन राज्यों की सरकार द्वारा इन जल्लादों को 3000रु महीने का दिया जाता है। और किसी को फांसी देने पर इन्हें अलग से फीस मिलती है। और वहीं जब आतंकवादी संगठनों के सदस्यों को फांसी दी जाती है तो जल्लादों को मोटी रकम दी जाती है। जैसे कि इंदिरा गांधी के हत्यारों को फांसी देने पर जल्लाद को 25000 रुपए दिए गए थे।फांसी के फंदे की मोटाई को लेकर भी मापदण्ड तय किया गया है। और लम्बाई भी तय की गई है। फंदे की रस्सी को डेढ़ इंच से ज्यादा मोटी रखने का निर्देश है।
फांसी से पहले मुजरिम के चेहरे को काले सूती कपड़े से ढंक दिया जाता है और फिर 10 मिनट तक उसे फंदे पर लटका दिया जाता है। फिर डॉक्टर फंदे पे लटके हुए कैदी का चेकअप करके बताता है कि वो जीवित है या मृत।भारत में फांसी देने से पहले जल्लाद बोलता है कि, “मुझे माफ़ कर दो। हिंदू भाइयों को रामराम, मुस्लिम को सलाम, हम क्या कर सकते हैं हम तो हैं हुकुम के ग़ुलाम।“मुजरिम को फांसी देते वक्त कुछ ही लोग वहां पर मौजूद रहते हैं। इनमे से वहां पर जेल अधीक्षक, एग्जेक्यूटिव मजिस्ट्रेट, जल्लाद और डॉक्टर मौजूद होते हैं।
इन लोगों के बिना मुजरिम को फांसी नहीं दी जा सकती है।भारत में फांसी की सज़ा को सबसे बड़ी सज़ा माना गया है और इसको सुनाने के बाद जज पेन की निब को तोड़ देते हैं क्योंकि उस पेन से किसी का जीवन खत्म होता है इसलिए उसका प्रयोग दोबारा नहीं होना चाहिए। और दूसरा कारण ये भी है कि निब तोड़ दिए जाने के बाद खुद जज का भी ये अधिकार नहीं होता है कि जज अपना फैसला बदल सके या फिर पुनर्विचार की कोशिश कर सके।भारत में जिस दिन कैदी को फांसी दी जानी होती है उस दिन उसे 3 बजे सुबह जगा दिया जाता है और फिर उसे ठंडा गर्म दोनों तरह का पानी दिया जाता है ताकि कैदी का जिस पानी से नहाने का मन हो वो उससे नहा सके। कैदी को उसके धर्म से जुड़ी किताबें दी जाती हैं। जिससे वो अंतिम समय में प्रार्थना कर सके।भारत में फांसी हमेशा अंधेरे में ही दी जाती है क्योंकि सूर्योदय के बाद जेल के काम शुरू हो जाते हैं और फांसी की वजह से किसी कैदी पर बुरा प्रभाव ना पड़े इसी के चलते फांसी को जल्द से जल्द सूर्योदय से पहले ही निपटा दिया जाता है।