बर्मा पर जापानियों का कब्जा हो गया। हिन्दू स्तान पर महायुद्घ की परछाई पड़ने लगी।
हर शख्स के दिल से ब्रिटिश सरकार का विश्वास उठ गया। ‘कुछ होनेवाला है, -कुछ होगा !’-हर एक के दिल में यही डर समा गया।
यथाशक्ति लोगों ने चावल ज़मा करना शुरू किया। रईसों ने बरसों के खाने का इन्तज़ाम कर लिया। मध्यवर्गीय नौकरीपेशा गृहस्थों ने अपनी शक्ति के अनुसार दो-तीन महीने में लगाकर छः महीने तक की खुराक जमा कर ली। खेतिहर भूख से लड़ने लगा।
व्यापारियों ने लोगों को कम चावल देना शुरू किया।
हिन्दू और मुसलमान, व्यापारी और धनिक वर्ग, अपनी-अपनी कौमों को थोड़ा-बहुत चावल देते रहे।
खेतिहार मजदूर भीख मांगने पर मजबूर हुआ। शुरू में भीख दे देते थे; फिर अपनी हीन कमी का रोना रोने लगे। दया-दान की भावना मरने लगी।
भूख ने मेहनत मजदूरी करने वाले ईमानदार इन्सानों को खूंख्वार लुटेरा बना दिया।
भूख ने सतियों को वेश्या बनने पर मजबूर किया।
मौत का डर बढ़ने लगा।
मौत का डर आदमियों को परेशान करने लगा, पागल बनाने लगा।
और एक दिन चिर आशंकित, चिर प्रत्याशित मृत्यु, भूख को दूर करने के समस्त साधनों के रहते हुए भी, भूखे मानव को अपना आहार बनाने लगी।
तब आशावादी मानव कठोर होकर मृत्यु से लड़ने लगा। उपन्यास का प्रारम्भ यहीं से होता है।
अमृत लाल नागर की अन्य किताबें
अमृतलाल नागर जी का जन्म 17 अगस्त 1916 ई को गोकुलपुरा, आगरा में एक गुजराती ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम राजाराम नागर था। आपके पितामह पं. शिवराम नागर 1895 से लखनऊ आकर बस गए थे। आपकी पढ़ाई हाईस्कूल तक ही हुई। फिर स्वाध्याय द्वारा साहित्य, इतिहास, पुराण, पुरातत्व व समाजशास्त्र का अध्ययन किया। बाद में हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला, अंग्रेजी पर अधिकार रखा। पहले नौकरी करते रहे, फिर स्वतंत्र लेखन, फिल्म लेखन काम शुरू किया। नागर जी आकाशवाणी, लखनऊ में ड्रामा प्रोड्यूसर भी रहें। 1932 में निरंतर लेखन किया। शुरूआत में मेघराज इंद्र के नाम से कविताएं लिखीं। 'तस्लीम लखनवी' नाम से व्यंग्यपूर्ण स्केच व निबंध लिखे तो कहानियों के लिए अमृतलाल नागर मूल नाम रखा। अमृत के भाषा सहज, सरल दृश्य के अनुकूल है। मुहावरों, लोकोक्तियों, विदेशी तथा देशज शब्दों का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया गया है। भावात्मक, वर्णनात्मक, शब्द चित्रात्मक शैली का प्रयोग इनकी रचनाओं में हुआ है। अमृतलाल नागर हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। उन्हें भारत सरकार द्वारा १९८१ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। अमृतलाल नागर जी का जन्म 17 अगस्त 1916 ई को गोकुलपुरा, आगरा में एक गुजराती ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम राजाराम नागर था। आपके पितामह पं. शिवराम नागर 1895 से लखनऊ आकर बस गए थे। आपकी पढ़ाई हाईस्कूल तक ही हुई। उन्होंने 31 जनवरी 1932 को प्रतिभा से शादी की। प्रतिभा का वास्तविक नाम सावित्री देवी उर्फ बिट्टो था। उनके चार बच्चे थे उनके नाम कुमुद नगर, शरद नगर, डॉ. अचला नागर और श्रीमती आरती पंड्या है।
अमृतलाल नागर ने हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त की। लेकिन निरन्तर स्वाध्याय द्वारा उन्होंने साहित्य, इतिहास, पुराण, पुरातत्व, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान आदि विषयों पर तथा हिन्दी, गुजराती, मराठी, बांग्ला एवं अंग्रेज़ी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला, अंग्रेजी पर अधिकार रखा।
अमृतलाल नागर हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकारों में से एक थे। उन्होंने एक लेखक और पत्रकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन वे 7 साल तक भारतीय फिल्म उद्योग में एक सक्रिय लेखक बने रहे। उन्होंने दिसंबर 1953 और मई 1956 के बीच ऑल इंडिया रेडियो में एक ड्रामा प्रोड्यूसर के रूप में काम किया। उन्होंने नाटक, रेडियोनाटक, रिपोर्ताज, निबन्ध, संस्मरण, अनुवाद, बाल साहित्य आदि के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्हें साहित्य जगत् में उपन्यासकार के रूप में सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई तदापि उनका हास्य-व्यंग्य लेखन कम महत्वपूर्ण नहीं है।D