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एकदा नैमिषारण्ये

25 जुलाई 2022

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‘अरी मैया तेरे पायँ लागूँ मोकूँ क्षमा करदे, जाइबे दे। मेरो बड़ो अकाज ह्यै रह्यै है। नारायण तेरो अपार मंगल  करेंगे।’’ 

लेकिन हाथ में साँट लेकर खडी़ हुई हट्टीकट्टी लंबी-तड़ंगी तुलसी मैया की पुजारिन, महर्षि नारद की इस गिड़गिड़ाहट भरी चिरौरी पर पत्थर से बोल मारती हुई बोलीः ‘‘मैंने तुमसे एक बार कह दीनी म्हाराज, दस बार कह दीनी के चबड़-चबड़ अब बन्द करो अपनी, जामें कछु लाभ नायँ धरो-अरी मौड़ियों, खड़ी-खड़ी म्हौ का देखो हौ मेरो, छीनो इनकी बीना और खड़ाऊँ। और जो ये न पहरें चोली घँघरिया तो मार-मार के इनको भुरतो बनाय डारो के हाल।’’ 

पन्द्रह गोरी-साँवली कलाइयाँ हवा में कोड़े लहकाते हुए लचकने लगीं। नारदजी सबके हाथ जोड़ने लगे कहाः ‘‘अरे पहरूँ हूँ पहरूँ हूँ, मेरी मैयो, मेरी मैयो की मैयो। मोपै साँटे मती बरसैयो, मेरे रोम-रोम में नारायण वासुदेव का निवास है। विन्हें चोट लग जाएगी। मैं तिहारी सबकी हा हा खाऊँ, चिरौरी करूँ, पैयाँ परूँ।’’ 

परंतु दो-चार करारे कोड़े उनकी देह पर बरस ही गये। नारद की चिरौरियों से वे सोलहों तुलसी-वृन्दाएँ, विशेष रूप से मुख्य पुजारिन एक क्षण के लिए भी पसीजने को तैयार न थीं पिछले दो बसंत बीत गये। पुरुष उनके इलाके में आया ही न था। पुजारिन सुहाग सुख की भूखी थीं। वह नारद को मुक्त करने की  बात तक सुनने को तैयार न थी। काम वृन्दावन के इस पोखर में स्नान करती हुई नग्न वृन्दाओं को देख लेने वाले पुरुष को फिर स्त्री बनकर ही रहना पड़ता है। पहले किसी काल में वृन्दाएँ सामूहिक रूप से ऐसे पुरुष को एक वसन्त ऋतु से दूसरी वसन्त ऋतु तक पति रूप से भजती थीं। फिर उससे सन्तान पा लेने के बाद वे उसका वध कर दिया करती थीं। उनका मुंड धरती में गाड़कर उस पर तुलसी का बिरवा बो दिया करती थी। मुख्य पुजारिन ने ऋतुमती होने तक विधवाओं की तरह वे शोक के दिन बिताती थीं। तीर्थ में स्नान करने के बाद वे विधवा से फिर क्वारी हो जाया करती थीं। लेकिन अब इस प्रथा में इतना परिवर्तन अवश्य आ गया था कि वह पुरुष की पति रूप में सेवा करने की बजाय वे उससे दासवत् पूरे वर्ष भर अपनी सेवा कराती थीं। पुजारिन का उस पर विशेष अधिकार रहता था। पूर्ण पितृ-सत्तात्मक समाज से अपने इलाके में घुस जाने वाले नर को दण्डस्वरूप नारी के वेष में रखकर वे उसके अहम को अपने अंकुश में रखती थीं। अंधेरे में नारी-वृन्द पुजारिन के आदेशानुसार उस बन्दी पुरुष का उपभोग तो करता था, पर उसे नग्न देख लेना उसके लिए घोर पाप था –और उस पाप का दण्ड था मरण-स्त्री का नहीं पुरुष का। ‘‘यह पुरुरवा और उर्वशी के काल से होता चला आया है। कोई आज की रीति तो है नहीं।’’ यह उनका सीधा तर्क था।

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रचनाएँ
अमृतलाल नागर के बहुचर्चित उपन्यास
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अमृतलाल नागर हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनका जन्म '(17 अगस्त, 1916 - 23 फरवरी, 1990) उन्हें भारत सरकार द्वारा १९८१ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 1932 में निरंतर लेखन किया। अमृतलाल नागर के भाषा सहज, सरल दृश्य के अनुकूल है। भावात्मक, वर्णनात्मक, शब्द चित्रात्मक शैली का प्रयोग इनकी रचनाओं में हुआ है। मानस का हंस', 'खंजन नयन', 'नाच्यौ बहुत गोपाल', 'बूंद और समुद्र', तथा 'अमृत और विष' जैसी बहुचर्चित और पुरस्कृत-सम्मानित कृतियों की श्रृंखला में यशस्वी उपन्यासकार अमृतलाल नागर ने इस उपन्यास में 'बिखरे हैं |
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मानस का हंस

25 जुलाई 2022
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श्रावण कृष्णपक्ष की रात। मूसलाधार वर्षा, बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की कड़कन से धरती लरज-लरज उठती है। एक खण्डहर देवालय के भीतर बौछारों से बचाव करते सिमटकर बैठे हुए तीन व्यक्ति बिजली के उजाले में पलभ

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शतरंज के मोहरे भाग 1

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होशियार ! होशियार हुइ जाओ होऽजुम्मन काका ! फौजैं आवति हयिं।’’ दो फ़र्लाग दूर से गोहराते और दौड़कर आते हुए युवक का सन्देश सुनकर गढ़ी रुस्तमनगर की बाहरी बस्सी में कुहराम मच गया। उड़ती ख़बर आनन-फानन में

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शतरंज के मोहरे भाग 2

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उसके बाद तीनों कुछ दूर तक खामोश चले गये। रुस्तअली का चेहरा विचारों से भारी होकर झुक गया था। उसकी माँ ने अकसर उसकी पत्नी की बदचलनी के बारे में शिकायतें की थीं। उसके सौतले भाई फतेअली के ख़िलाफ़ उसकी माँ

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नाच्यौ बहुत गोपाल

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ऊंचे टीले पर बने मन्दिर के चबूतरे से देखा तो सारी बस्ती मुझे अपनी वर्णमाला के ‘द’ अक्षर जैसी ही लगी। शिरोरेखा की तरह सामने वाली गली के दाहिनी ओर से मैंने प्रवेश किया था। ‘द’ की कंठरेखा वाली गली सुलेख

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भूख

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 बर्मा पर जापानियों का कब्जा हो गया। हिन्दू स्तान पर महायुद्घ की परछाई पड़ने लगी।  हर शख्स के दिल से ब्रिटिश सरकार का विश्वास उठ गया। ‘कुछ होनेवाला है, -कुछ होगा !’-हर एक के दिल में यही डर समा गया। 

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बिखरे तिनके

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गुरसरन बाबू का मन ऊंचा-नीचा हो रहा है। साढ़े आठ बज रहे हैं। रघबर महाराज के यहाँ बिल्लू को भेजा है कि बुला लाए। पता नहीं...कनागत में बाम्हन और चढ़ती उमरिया में लौंडियों के नक्शे नहीं मिलते हैं।–स्साले 

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खंजन नयन

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वृन्दावन से लगभग दो कोंस पहले ही पानीगांव के पास वाले किनारे पर खड़े चार-छह लोगों ने सुरीर से आती हुई नाव को हाथ हिला-हिलाकर अपने पास बुला लिया :  ‘‘मथुरा मती जइयों। आज खून की मल्हारें गाई जा रही हैं

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ब्राह्म मुहूर्त में ही कावेरीपट्टम के नौकाघाट की ओर आज विशेष चहल-पहल बढ़ रही है। सजे-बजे सुंदर बैलोंवाले शोभनीय रथों, पालकियों और घोड़ों पर नगर के गण्यमान्य चेट्टियार, प्रौढ़ और युवक, कावेरी नदी के नौ

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चक्रतीर्थ

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‘एकदा नैमिषारण्ये’ और ‘चक्रतीर्थ’ के कथानक एवं सामाजिक संदर्भ देश-काल की दृष्टि से लगभग एक से हैं। अमृतलाल नागर ने ‘चक्रतीर्थ’ के सृजन में जैसे कौशल का प्रदर्शन किया है। उससे हिन्दी उपन्यास की श्रीवृद

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पीढ़ियां भाग 1

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युधिष्ठिर अपनी मां के साथ कार में सआदतगंज से घर लौट रहा है। लगभग एक माह से जिस समाचार ने शहर और राजनीति को अपने सच-झूठ की अफवाहों से घटाटोप ढक रखा है और जिससे एक गहरा साम्प्रदायिक तनाव इतने दिनों से क

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पीढ़ियां भाग 2

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वजीरगंज थाने से कुछ ही दूर पर बने ‘मुश्ताकविला’ के सामने हसन जावेद और युधिष्ठिर टण्डन के ‘वेस्पा’ और ‘विजयसुपर’ स्कूटर आकर रुके। गली में हरे-भरे लॉन और पेड़-फूलों सहित यह जगह युधिष्ठिर को अनोखी और आश्

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करवट

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लक्खी सराय की रसूलबांदी दो घड़ी दिन चढे़ ही घर से निकल गई थी। हैदरीखां जब घर से आए तो अज्जो ने बतलाया कि कल रात शाही महलों से उसके लिए बुलावा आया था।  हैदरीखां घबरा कर झल्ला उठेः ‘‘तो आज ही के दिन सग

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अमृत और विष भाग 1

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एकऐन कानों के पास अलार्म इतनी जोर से घनघना उठी कि कानों ही के क्या, मेरे अन्तर तक के पर्दे दर पर्दे हिल उठे। आँखें खोलते ही माया का हँसता मुखड़ा देखा, बोली :  ‘‘उठिये शिरीमान्, उमर के साठ बज गये।’’

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अमृत और विष भाग 2

25 जुलाई 2022
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गुपालदास निरुतर हो, सिर झुकाये बैठे रहे। शेखजी ने भाँपा कि अभी कुछ और शिकायत है; पूछा- ‘‘तुम्हें मेम से खास शिकायत क्या है ? वह तुम्हारा माकूल अदब नहीं करती ?’’ ‘‘जी हाँ, यही बात है।’’ गुपालदास खु

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