बहू की माँ भी मां ही होती है
मशहूर बिजनेसमैन अवनीश की बेटी की शादी को एक हफ्ता ही तो बचा है ,अवनीश अपनी बेटी की शादी को यादगार शादी बनाने के लिए पानी की तरह पैसा बहाने में व्यस्त हैं।
शहर के बड़े से बड़े अनजान लोगों को भी अपने वैभव से सराबोर करना उनकी सबसे बड़ी इच्छा है ।
अवनीश की पत्नी मनोरमा की परवरिश एक सामान्य घर पर होने के कारण घर सहेजना उसके लिए हर परिस्थिति में आसान ही रहा ।किसी भी और असामान्य स्थिति में भी अपने आप को सांचे में ढाल चेहरे पर मुस्कुराहट रखना उसके लिए सहज ही था ।
बड़े बेटे मुदित ने 2 साल पहले अपनी पसंद से शादी कर ली ,नाखुश होते हुए भी समाज में अपनी प्रतिष्ठा देख, बहुत बड़े होटल में अवनीश ने रिसेप्शन दिया था ।
मुदित और बहू रश्मि दोनों बैंगलोर में कार्यरत हैं ,पहले ही अवनीश ने मुदित और रश्मि को दामिनी की शादी के लिए छुट्टियों की व्यवस्था करने को कह रखा है ।
आधुनिक विचारों वाली बहू को मनोरमा ने अपनी रीत रिवाजों की वेडियो में कभी नहीं बांधा, पर मनोरमा अपने आपको नए परिवेश में कभी ना ढाल पाई या यूं कहें कभी उसने कोशिश ही ना की।
रश्मि भी ननद की शादी के लिए उत्साहित थी, हर उत्सव के लिए अलग-अलग ड्रेस पहले ही आकर खरीदकर और हर ड्रेस के साथ चूड़ियां और ज्वेलरी सेट खरीद करके रख कर गई थी।
शादी की तैयारियों के बीच ही अचानक अवनीश के फोन पर मुदित का फोन आया, कि रश्मि नहीं आ सकती ,क्योंकि उसकी मां बीमार है ,और उसके भाई भाभी अकेले हैं। इसलिए वह वहां जा रही है ,अवनीश ने यह बात सुनते ही बोलना शुरू कर दिया ,ऐसे कैसे हो सकता है ,ननद की शादी में भाभी ना आए ।
एक ही तो बहू है ,कभी सोचा है हमारे दिल पर क्या बीतेगी बहू का भाई देखे अपनी मां को, उसके भाई की जिम्मेदारी है ।
बहू को यहां आना ही पड़ेगा, समाज में मेरी क्या इज्जत रह जाएगी ,किस किस को जवाब दूंगा ,लड़की की ससुराल वालों से क्या कहूंगा ।
अवनीश फोन पर बोले जा रहे थे ,पर उधर मौन था ,मनोरमा ने स्थिति को देखकर अवनीश के हाथ से फोन लेकर कहा, बेटा ठीक है ,इस समय बहू रश्मि को अपनी मां के पास होना बहुत जरूरी है ,क्योंकि मां मां होती है ,किसी की जिम्मेदारी नहीं ।
समाज को मैं देख लूंगी ,तुम बिल्कुल मत घबराना ,और बहू को तसल्ली देना ,सब ठीक हो जाएगा ।
मनोरमा के इस तरह कहने पर अवनीश की नाराजगी और बढ़ गई ।
अचानक मनोरमा को अपने भाई की शादी का समय याद आ गया ,एक संयुक्त परिवार में होने पर भी अवनीश ने अपनी मां की बीमारी का बहाना करके उसके भाई की शादी में नहीं गये थे।
कितना मुश्किल था उसके परिवार वालों को अपने समाज में हर किसी को जवाब देना, कि दामाद क्यों नहीं आया ,मन की यात्रा के रास्ते मनोरमा को अपनी पुरानी यादों में पहुंचकर आज भी उन यादों को याद करना मुश्किल हो रहा था ,हर पल अपने आंसुओं को छुपा कर होठों पर हंसी भी बिखेरना ,और लोगों से नजरे मिलाना आसान न था इकलौती बेटी वह भी थी, किसी के जज्बातों से खेलना अवनीश के लिए एक खेल ही था ।हर किसी को अहसास करवाने की पीड़ा देने वाले अवनीश के अहसास आज खुद प्रताड़ित कर रहे थे
आज उसका मन अवनीश की पीड़ा को कम करने का बिल्कुल भी नहीं था, ऐसा नहीं था की बहू के ना आने पर और अवनीश की बेचैनी देखकर वह खुश थी ,पर फिर भी वह चाहती थी कि उसकी बहू अपनी मां को मां समझे, क्योंकि मां मां होती है ,बेटे बेटी की जिम्मेदारी नहीं ।
मां और संतान के बीच लगाव का रिश्ता होता है ,न कि जिम्मेदारी का ।
जया शर्मा( प्रियंवदा)