बड़े घर की बहू बन कर आई सुनीता शुरू में बहुत खुश रहकर ,सब को खुश रखने की कोशिश करतीे ।
पर घर की औरतों को पता था ,बहू को कैसे रखा जाता है, भूरी बुआ का कहना रहती, बहू को जरा़ शुरू से ही मुट्ठी में रखो, जरा सी ढील देने पर सर पर चढ़ जाती है ।
सुनीता प्रतिदिन रसोई में परीक्षा देती, सबकी पसंद की सब्जी बन जाए ,तो सब्जी कम पड़ जाती सुनीता के लिए, और कुछ कमी हो तो भरा पतीला होता सुनीता के लिए। साथ में रस भरी बातों का पुलिंदा भी होता ,बहू इतनी मिर्च सब्जी में ,एक एक चम्मच भरकर रख देती प्लेट में , सब्जी के कम पड़ने पर सास की मिठास घुल जाती, अंदाजा नहीं है घर में लोगों को कितना खाना खाना होता है ,
इस हिसाब रसोई संभाली है, तो अंदाजा भी होना चाहिए यह सब सुनकर सुनीता अगर चुप रहती ,तो सास की मिठास घुल जाती ,मुंह में जबान नहीं है ।
कुछ बोले तो बड़ी बुआ बोल पड़ती ,जवान तो देखो 36गज की कैसे पटर पटर चल रही है ।
सुनीता एक रात अपने कमरे में कपड़ों पर प्रेस कर रही थी ,सासू मां अपने सारे कपड़े रक्ख गईं उसके आगे प्रेस करने के लिए, लेकिन सुनीता से सासू मां की साड़ी प्रेस से जल गई ,जबरदस्त फटकार के साथ सासु मां ने नसीहत दे डाली ,जानबूझ कर जलाई है मेरी साडी, पता है मुझे दुनिया देखी है मैंने ,कोई जरूरत नहीं है मेरे कपडे प्रेस करने की, अगली बार सुनीता ने प्रेस करते हुए सासु मां के कपडे प्रेस करने के लिए न लिए तो बिना बिजली से चलने वाला नॉनस्टॉप म्यूजिक चालू हो गया, मेरे कपड़े प्रेस करने के लिए क्यों नहीं लिए, सुनीता ने दबी आवाज में कहा, आपने ही तो मना किया था, मेरे कपड़े प्रेस न करना। सुनते ही ,ओ हो देखो तो आज्ञाकारी बहू जैसे मेरा कहा ही करती हो।
किसी रंग ढंग में दिन कटते जा रहे थे, सुनीता के देवर की शादी उसके मामा की लड़की के साथ तय हो गई सासु मां इस रिश्ते से खुश न थीं,उनका कहना था कि एक अनपढ़ वहू कम थी ,अब उसी घर की एक और बहू ले आओ,वह भी इसकी बहन को ।
एक ने ही नाक में दम कर रखा है ,दोनों मिलकर छाती पर मुंह दलेंगीं मेरे। पर मिथलेश रानी अपने छोटे बेटे की पसंद को साफ मना नहीं कर सकीं ,देवर ने पहले से ही चेतावनी दे दी ,अगर आप तैयार नहीं हो रहे तो मैं अकेले ही जाकर ज्योति को शादी करके ले आऊंगा। फिर बेटे के दूर होने की सोच,, मिथलेश रानी को हंसते-हंसते रिश्ते को मंजूरी देनी पड़ी ।
ज्योति की गोद भराई की रस्म में मिथलेश रानी गईं, तो सुनीता को बहुत जेवर से लादकर ,महंगी सी साड़ी पहना कर लेकर गईं,पर मायके में भी सुनीता की परछाई बनी रहीं,जैसे ही सुनीता अपने किसी मायके वाले रिश्तेदार से बात करने की सोचती, वैसे ही मिथलेश रानी को सुनीता से कोई काम याद आ जाता ।
कितनी प्रशंसा कर रही थीं मिथिलेश रानी अपनी बहू की ।जी मैंने तो ,बहू और बेटी में कभी अंतर ही नहीं किया ,हर तरीके से छूट दे रक्खी है, कुछ भी पहनो कुछ भी खाओ,यही तो उम्र है, खाने-पीने, पहनने ,ओढने की, बोलने की सुनीता की चाची ने भी हां में हां मिलाई ।
हमारी लाडली बेटी वैसे भी बहुत सीधी सी है, अच्छी किस्मत है हमारी बेटियों की मां की तरह प्यार करने वाली आप जैसी सासू मां मिली है ।
शहर के कॉलेज में बीए पास करके आई, आधुनिक विचारो वाली ज्योति, रस्मो रिवाज के साथ अपनी प्यारी दीदी की देवरानी बनकर मिथलेश रानी के घर आ गई।
कुछ दिनों तक तो नई नवेली ज्योति बहु नई नवेली बनी रही ,और घर के कामकाज को और सब की जिम्मेदारियों को आंखों से पढ और समझती रही ।
कुछ काम करने को ज्योति कहती तो, मिथलेेश रानी कह देतीं, रहने दे बेटा अभी नई नई है ,सारी उम्र काम ही करना है ।
सुनीता है न सारा काम संभाल लेगी इस बीच मिथलेश रानी का मुख्य काम यह होता,कि सुनीता और ज्योति को दूर रखा जाए ,इस चक्कर में बाहर जाना भी कम हो गया था आजकल मिथिलेश रानी का ।
रसोई के सारे काम अकेली सुनीता को करते देख ज्योति हैरान रह जाती ,।मिथिलेश रानी ने घर में व्यवस्था बना रक्खी थी, कि घर के पुरूष और बच्चे सबसे पहले खाएंगें और सबकी थाली में ,ताजी और गरम गरम सब्जी और रोटी होनी चाहिए ,इस चक्कर में बहूजी की तो रोटियां अपने आप बन जाती ।
सब लोगों को खाना खिलाने के बाद ही सुनीता खाना खाने बैठती, की रसोई को समेटकर खाना खाने बैठ कर कुछ कुछ समझने लगी कि ज्योति घर के क्रियाकलाप को एक रात सब लोगों के साथ खाना पीना करने के बाद ज़्योति किचन में गई और सुनीता दीदी सी बोली दीदी कुछ भूख लगी है ,चलो हम दोनों मिलकर आज कुछ खाते हैं, ज्योति में देखा दीदी की थाली में केवल बची हुई रोटियां ही थी ,सब्जी तो ज्यादा ही स्वादिष्ट बन गई थी ज्योति हैरान थी उसने कह् दीदी सब्जी यह तो मैं रोज ही ऐसे ही होता ।
ज्योति ने उसी दिन फैसला कर लिया, आज से हम दौनो देवरानी जिठानी भी परिवार वालों के साथ ही खाना खाएंगे। रसोई की चालू व्यवस्था ज्योति के अनुसार कुछ परिवर्तन मांगती थी ।ज्योति ने कहा दीदी हम भी कुछ आज स्पेशल खाते हैं सबको स्पेशल खिलाने वाली दीदी को मैं आज कुछ स्पेशल ही बनाकर खिलाऊंगी ।
दीदी कल से खाना आप बनाओगी, और खिलाऊंगी मैं, दूसरे दिन सभी के साथ ज्योति ने अपनी दीदी की भी थाली लगाई,और दीदी की ना नुकुर को अनसुना कर दिया, मिथिलेश रानी को अपनी हुकूमत में सुराख दिखने लगा, न चाहते हुए भी ज्योति के तेवर और छोटे बेटे की दूरी का एहसास महसूस कर ज्योति की व्यवस्था को बुझे मन से स्वक्रिति देनी पड़ी ।