मधु की बेटी का नाम अखबार के मुख्य पृष्ठ पर देख, सुबह से ही बधाई भरे फोन आ रहे थे।
निहारिका ने सीए की परीक्षा में प्रदेश में दशवां ,और अपने जिले में पहला नंबर लिया था ।
मोहल्ले वाले तो मिठाई का डब्बा लेकर ,सुबह से ही निहारिका का मुंह मीठा कराने के लिए ,और बधाई देने आ रहे थे ।
निहारिका के पापा की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था, सुबह से पचास बार बोल चुके थे, आखिर बेटी किसकी है, गर्व से आज सीना चौड़ा हुआ जा रहा था मि संजय का , सबका अपने हाथ से मुंह मीठा करा रहे थे ,पूरी रिश्तेदारी में निहारिका की सफलता, हवा में खुशबू की तरह फैल चुकी थी ।
शाम को ही निहारिका की दादी ने सत्यनारायण की पूजा रक्खी थी और मोहल्ले पड़ोस में सब को आमंत्रित करने के लिए अपने आप ही गई थी, और सबको पोती की सफलता के बारे में रुक-रुक कर बताते हुए ,कथा के लिए आमंत्रित कर रही थी ,और मिस्टर संजय ने कथा के बाद सबके लिए रात्रि भोज की भी व्यवस्था जल्दी-जल्दी कर ली ।
पापा, दादी के कदम खुशी के मारे धरती पर नहीं थे।
यहां तक कि बड़े भाई दीपक ने सबसे पहले फोन पर रिजल्ट देख कर ,उत्साह के मारे आधी रात में ही शोर मचाना शुरू कर दिया ।
भैया की लाडली बहन प्यारी निहारिका को शरारती अंदाज में परेशान करने का हक केवल भैय्या को ही है ,घर में भैय्या के सामने भैय्या की लाडली निहारिका को कुछ कोई कुछ कह नहीं सकता ।
रूठी हुई निहारिका को मनाने की कला केवल भैय्या के पास ही है ,,निहारिका को खुश करने के लिए अपने सारे फेवरेट सामान निहारिका को देने के लिए, तैयार हो जाता है ।
बचपन से ही पापा ने सर चढ़ा रखा है निहारिका को ,आधी रात को भी बिटिया की इच्छा आइसक्रीम खाने की हो जाए, तो लाने को तैयार हो जाते हैं ।
मधु भी खुश है ,पर आज की खुशी उसको अतीत में ले जा रही है,सबका निहारिका के साथ लगाव देखकर और निहारिका को सबके बीच प्रसन्न देखकर अतीत का दरवाजा खटखटाती है ।
यह वही निहारिका है ,जो अपनीे चंचलता से कब पापा दादी की प्यारी बन गई ,पता ही ना चला। निहारिका के जन्म से पहले लड़की होने की खबर दादी ने डॉक्टर से ले ली थी, निहारिका की दादी और पापा ने कितना परेशान किया था ,उस अनजान छोटी सी जान की हत्या करने के लिए, हमको दूसरे बच्चे की जरूरत ही नहीं ,और लड़की पालना आसान काम नहीं होता ।
दिन में कदम कदम पर , दादी के मुंह से ऐसी बातें गूंजती रहती थी ।ताई का भी कहना था ,कि पता होने पर लड़की को कौन जन्म देता है ?ऐसे तो मेरे आगे भी लड़कियों की लाइन लग जाती।
मधु ने इस काम को एक हत्या करने का काम ही समझा। घर परिवार से भिडकर और सब की नाराजगी झेल कर उसने उस पुत्री को जन्म दिया ।
लड़की के प्रति कुंठित मानसिकता का उसने डटकर सामना किया ।
लड़की के जन्म पर ,बात बात पर ताने देना, जिंदगी का रोजमर्रा का हिस्सा बन गया था ।
मधु की जीत के आगे कुंठित मानसिकता हार गई ,बेटी के लिए वह हमेशा ढाल बनी रही।
बेटी जन्म से ,पहले से ही अपनी मां के प्रति बहुत ज्यादा लगाव रखती थी ,आज भी मधु को उस दृश्य को याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं ,कि जमीन पर लेटी हुई बिटिया का सर छह इंच ऊंचे बेड के नीचे चला गया ,और रोती हुई बिटिया को गोद में लेने को बढी मधु से, मां जी ने कहा पहले घर का काम ,और बर्तन धोने के बाद बिटिया को गोदी लेना है ,ज्यादा गोदी का लाड नहीं दिखाना है ,नहीं तो वह काम नहीं करने देगी ।
ऐसी निष्ठुरता के बीच बडी होती निहारिका, कब पापा, दादी की लाडली बन गई ,पता ही ना चला ।अनचाही बिटिया आज पापा और दादी को असीम सुख और गर्व का अहसास दिलाने वाली बन गई पता ही न चला ।
मधु को अपनी बेटी की सफलता के साथ अपने बेटी को जन्म देने के फैसले पर गर्व है, वह ईश्वर के प्रति नतमस्तक है कि उसने दबाबों के दबाव को नकार एक सफलता को जन्म दिया ।