राधा रानी की निधि
पीयूष के साथ काम कर रही निधि कब पीयूष की पसंद बन गई ,पीयूष को पता ही ना चला।
निधि अपने लक्ष्य पर हमेशा केंद्रित रहती और अपनी टीम के किसी भी साथी की काम के प्रति ढिलाई निधि को कभी मंजूर ना होती ।
निधि का काम के प्रति पूरा समर्पण पीयूष को भा गया।
पीयूष की मां राधा रानी ने पीयूष की निधि को घर की निधि बनाकर, घर के माहौल ,रिश्तो और परंपराओं को समझने का पूरा मौका दिया निधि को ।
घर के हर काम को समझाने के लिए राधा रानी बहू निधि को एक आवाज देती, निधि का मन होता आकर खड़ी होती, या आ कर चली जाती ।
राधा रानी कभी निराश ना होती
निधि एक कप अच्छी सी चाय बनाकर पिला दे बेटा ,कहकर पांच दश मिनट इंतजार कर, खुद चाय बना कर, दो कपों में चाय लेकर निधि के पास पहुंच जाती राधा रानी ,बेटा काम कर रही है ,आज मुझे अपनी बेटी की याद आ रही है सोचा तेरे साथ बैठकर चाय पी लूं।
चुप रहने वाली निधि की आंखों को ,मां आसानी से पढ़ लेती ।
सुबह नहा धोकर सूरज को जल चढ़ाते राधा रानी को देख, निधी भी अब सुबह जल्दी उठ कर नहा धोकर सूरज को जल चढ़ाने लगी ,ऐसा देख राधा रानी को अच्छा लगता है
और ऐसा करते देखना अपनी तरफ बढ़ा हुआ एक कदम लगा राधा रानी को।
सुबह शाम आरती के समय पूजाघर में आकर निधी को खड़ा होना अच्छा लगने लगा।
राधा रानी ने बहु निधी को बताया बेटा कल तेरे ससुर का श्राद्ध है ,सुबह नहा धोकर जल्दी से तैयार हो जाना पंडित जी भोजन करने आएंगे ,उनसे आशीर्वाद लेना।
जी मां कहकर निधी अपने कमरे में चली गई। सुबह उठकर देखा मां रसोई में सुबह से ही बहुत कुछ बना रही है। निधी जल्दी-जल्दी नहा कर रसोई में आ गई ,और बोली मां पंडित जी के लिए आपने बहुत चीजें बनाई है ।बहू निधी की आवाज में उत्सुकता महसूस कर ,अच्छा लगा राधा रानी को ।
हां बेटा आज मैंने तेरे ससुर जी की पसन्द की खाने की चीजें बनाई है आज पंडित जी के रूप में तेरे ससुर जी ही तो आएंगे ।
साल में एक दिन ही भोजन करने आते हैं मेरे हाथ का, इसलिए हर चीज उनकी पसंद की बनाई है। अबकी बार तो उनकी बहू भी उनसे आशीर्वाद लेगी ,तो तेरे ससुर जी बहुत प्रसन्न होगें।
निधी सब बातें ध्यान से सुनती रही , आपको तो सारी पसंद पता होगी बापूजी की ।
हां बेटा राधा रानी ने धीरे से कहा सर ढककर खाना बना रही अपनी सासू मां राधा रानी को देखकर तुरंत ही निधी ने भी चुन्नी से सर ढख लिया।
पंडित जी ने आराम से भोजन किया ,तभी निधि बोली मां पंडित जी के लिए चाय बना लाउं।
राधा रानी ने पंडित जी से पूछा चाय पीयेंगें पंडित जी।
इतने स्वादिष्ट भोजन के बाद चाय पीकर आनंद आ जाएगा, पंडित जी ने ऐसा कहा।
पंडित जी की यह बात सुनकर निधी जल्दी से चाय बनाकर ले आई ,जिसे पीकर पंडित जी ने चाय बहुत ही अच्छी बनी है ,ऐसा सुनकर राधा रानी और बहू निधी दोनों ही प्रसन्न हो गई ।
दान दक्षिणा के साथ सम्मान पूर्वक पंडित जी घर से विदा हुए।
पंडित जी के जाने के बाद रसोई में रसोई के कामों में व्यस्त राधा रानी से निधि ने पूछा क्या मां बाबूजी हर साल आते हैं श्राद्ध वाले दिन, यह आपको कैसे पता निधि का सवाल सुन राधा रानी बोली, मेरी दादी ने बताया था, जब हमारे बुजुर्ग हमसे बहुत दूर चले जाते हैं ,तब वह अपनी तिथि पर घर वालों के पास आशीर्वाद देने जरूर आते हैं ।
तेरे बाबूजी भी आते ही होंगे ,यही सोचकर मैंने उनकी पसंद का खाना बनाया ,यह सुनकर तुरंत निधि ने पूछा मेरे मम्मी पापा तो मुझे बचपन में ही छोड़ गए, मैं तो हमेशा हॉस्टल में रही तो मेरी मम्मी पापा भी श्राद्ध में आते होंगे।
निधि के सवाल को सुनकर राधारानी की आंखें डबडबा गई ,पर खुद को संभाल कर,एक गिलास निधि से ठंडा पानी पीने का मांग कर और पीकर बोली, हां बेटा तेरी मम्मी पापा भी जरूर अपनी लाडो बेटी को आशीर्वाद देने आते होंगे उनके आशीर्वाद से ही तू इतना पढ़ लिख कर इंजीनियर बन सकी है ।
निधि की हैरान आंखों में प्रश्न होठोंसे बाहर आ रहे थे ,मुझे यह बात किसी ने नहीं बताई मां। मुझे पता ही नहीं किस दिन मेरे मम्मी पापा आते होंगे, राधा रानी बोली ,श्राद्ध की अमावस्या को सभी पितर आते हैं ।
सुनते ही निधि बोली सच में मां ,क्या मैं भी मम्मी पापा के नाम से पंडित जी को भोजन कराऊं, राधा रानी ने बहू से कहा हां बेटा जरूर अपनी मम्मी पापा के नाम से भोजन बनाकर पंडित जी को खिलाओ ,सच में बेटा तेरे मम्मी पापा जी की आत्मा बहुत प्रसन्न होगी ,
निधि ने मां से पूछा, मां पंडित जी को घर पर बुलाओगी या मंदिर में भोजन देकर आना होगा । राधा रानी सहज हो बोली निधि बेटा यह तेरा घर है ,तो अपने काम तू इसी घर में करती है ,तो पंडित जी को घर में हीं बुलाना।
पर मां ,मम्मी पापा की पसंद मुझे कुछ याद नहीं ,राधा रानी ने कहा ,बेटा बच्चों की पसंद में हीं मम्मी पापा की पसन्द छुपी होती है ।अपनी पसंद तो पता है तुझे ,पर मैंने तेरी सारी पसंद धीरे-धीरे पता कर ली है ,बस वहीं बनाएंगे ,बस उस दिन जल्दी से तैयार हो जाना।
निधि के चेहरे के चिड़चिड़ेपन के छिलके नरम होकर बहने लगे ,राधारानी ने अमावस्या वाले दिन सुबह उठ कर नहा धोकर ,खीर ,दही बड़े ,पांच छह सब्जियां ,रायता बनाने की तैयारी शुरू कर दी ,तभी निधि भी तैयार होकर रसोई में पहुंच गई ,मां मैं आ गई आप बताओ मेरे लिए कुछ काम, निधि को इतना खुश देखकर राधा रानी को खुशी के कदम अपनी तरफ बढ़े मिले।
इतनी सारी चीजों की तैयारी देख निधि ने पूछा ,इतना सब कुछ बनाओगी ,हां बेटा यह सब कुछ तेरी खाने की पसंद है ।
मां आपको कैसे पता ,बेटा मैं तेरी मां हूं ,मां से कोई बात छिपती है क्या ।निधि ने आंखों के पानी में कुछ खुशी सी महसूस की ।
जल्दी जल्दी सारा भोजन बनाकर, पंडित पंडिताइन को भोजन कराकर, निधि ने दोनों पंडित पंडिताइन से आशीर्वाद लिया और सम्मान पूर्वक विदा किया ।
बहुत खुश निधि मां कहकर राधा रानी के सीने से लग गई, राधा रानी निधि को बेटा कहकरअपने सीने से लगाए रखा ।
निधि नेअपने आप को एक छोटे की बच्चे की तरह महसूस किया ।
तभी निधि ने कहा मां अब मैं आपके लिएअपने हाथ से चाय बनाकर पिलाऊंगी ,फिर आप बताना मेरे साथ आपको चाय पीना कैसा लगा ।
चाय पीते राधारानी को अपने परिवार की प्रसन्नता की चमक निधि के चेहरे पर सुरक्षित दिखाई दे रही थी ।
निधि की लगाव भरी बातों को सुनकर राधा रानी ने खुशी की चादर से अपने परिवार और परंपराओं को ढका पाया।