माँ के हाथ की रोटी
सुनो मां के सुहाल आपकी मम्मी आ रही हैं,हमारे पास। बच्चे भी बहुत खुश हैं दादी के आने की खबर सुनकर ।
शिल्पा ने अनुज से कुछ बात करने की शुरुआत करने को कहा, बडी दबी आवाज में कहने की कोशिश की, मैं सोच रही हूं कि, आप रोज आफिस में मां के हाथ की बनी रोटी ही ले जाना ।
सुनते ही अनुज शिल्पा पर भडक गया, शिल्पा तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या, मां अभी आई नहीं, काम का बंटवारा कर दिया तुमको कुछ शर्म नहीं आई ,तुम्हारे होते हुए मां रसोई में रोटी बनाएगी, कल बरतन ,झाडू पोछा भी बोल देना, तुमको मां के आने से इतनी दिक्कत थी, तो पहले ही बता देती, तुम्हारे घर में होता होगा ऐसा ।
इतना सुनने के बाद शिल्पा बोल उठी, हां मेरे मायके में यही तो नहीं देखा मैंने, जिनके हाथों का खाना खाकर बडे हुए मेरे भाई , उनको मां के हाथ का खाना अब अच्छा नहीं लगता, मां के बढे हुए कदम रसोई की तरफ रोक देती है भाभी की आवाज़, मांजी आपको इनकी पसन्द नहीं पता, मैं आज इनकी पसन्द का खाना बनाऊंगीं।
मेरी मां की आत्मा बसती है रसोई में, छोटी सी उम्र में दुल्हन बनकर आईं थी, और दादी जी ने आते ही रसोई की जिम्मेदारी बडी बहू होने के नाते मां पर ही डाल दी, और मां ने सबकी पसंद का हमेशा ध्यान अपनी रसोई रूपी छोटी सी दुनिया में रक्खा ।
अब मेरी मां के कान तरस गए ,यह सुनने को कि मां आपके हाथ की चाय का जवाब नहीं, एक कप चाय और बना देना, साथ में कुछ अपने हाथों बनी मठ्ठी भी ले आना, ।
मां अब उदास होकर बूढी बूढी हो रही है ।
मैं नहीं चाहती, आपकी मां को उनकी दुनिया से बिलकुल दूर किया जाए, अपने बच्चे के लिए मां कभी बूढी नहीं होती ।
शाम को मां के आते ही खुशी की लहर घर में दौड गई, रात में डिनर टेबल पर अनुज मां के हाथ अपने हाथों में लेकर बोलने लगा, मां तुम्हारे हाथ की रोटी खाए बिना पेट नहीं भरता मेरे लिए अब आप एक दो रोटी बना दोगी न, हां कल मैं दिन की शुरुआत आपके हाथों बनी चाय के साथ करने वाला हूं, मां ने कहा, हां मेरे मीठे सुहाल, तभी बच्चे भी बोलने लगे ,अब हम रोज दादी के साथ पार्क घूमने जाएंगें ।
दादी को भी आज बहुत अच्छा लग रहा था ।