लाहौर वाली चाई जी
बूढ़ी हो चुकी चाईजी अभी भी बातों बातों में अपने बचपन में पहुंच जाती हैं ।पूरी जिंदगी जिम्मेदारियों को पूरी करते करते ,कभी भी बचपन की यादों को अलग न कर पाई ।
छोटी सी उम्र में नए नए कपड़े पहनने के शौक के कारण शादी के लिए अपनी बीजी से कहती
अपनी मां को बहुत सारा जेवर पहने देखकर खुद भी पहनने को जिद्द करती तब बीजी कहती, तेरी शादी में देंगे तो चुलबुली चाई जी ने जल्दी-जल्दी ब्याह कराने की जिद पकड़ ली, और चाई जी से शादी करने एक मुंडा आया था अपने पूरे गांव को लेकर।
बहुत सारे बाराती आएं ,चाई जी अपनी शादी में बहुत खुश थीं ।
चाई जी को बारातियों के लिए बने खाने के लिए, खेलते हुए बच्चों के साथ खाने की जिद करता देख मां ने बहुत प्यार से शांत कराया था ।
दूल्हे को भी साथ खिलाने के लिए अपने भाई-बहनों को मना रही थी।
मां ने समझाया था जब उसके घर जाना ,तब खेलना दूल्हे के साथ ,छोटे बच्चों की तरह चाई जी और उनके दूल्हे को पकड पकड कर शादी की हर रस्मकरवाई जा रही थी। 3 दिन बारात रूकी थी ,3 दिन तक साथ रहने पर उनका दूल्हा उनकी बच्चा मंडली का लीडर हो गया ।
तीन दिन बाद बारात जब वापस आने लगी ,तो वह चाई जी को भी साथ ले जाना चाहता था ,उसे समझाया कि थोड़े दिनों बाद यह हमारे साथ ही रहेगी ।
दूल्हा परिवार के साथ वापस अपने गांव चला गया, फिर कभी नहीं आया। चाई जी पूरी जिन्दगी भर उस दूल्हे की शक्ल को अपने से दूर नहीं कर पाई है ।
बंटवारे की टीस कभी भी उनको कुरेदने लगती है ,लाहौर के मशहूर लेडीज टेलर थे चाई जी के पिताजी ।अचानक सब कुछ अपनी शादी में बने नए नए कपड़े छोड़कर, पूरे परिवार के साथ रात में ही सब अपना सब कुछ छोडकर भाग रहे थे ।चाईजी को उनके पिताजी बिस्तरों में छुपा कर लाए थे, भागते भागते चाई जी का परिवार जगह जगह कैम्पों में रुकते रुकते दिल्ली में बनी कालोनी पंजाबी बाग में ही अपने कुछ लोगों के बीच रहने लगे ।
मेहनत से घर बना लिया पर जिंदगी भर रिफ्यूजी होने का दर्द अपने से अलग ना कर पाए ।
चाई जी का परिवार गुरुद्वारा में रोज जाकर मन की शान्ति तलाशता ।
गुरुद्वारे में चाई जी लंगर के लिए बन रहे कडा प्रसाद बनाने में लग कर आनन्द की अनुभूति महसूस करती ।
अपने लोगों से मिलकर पुराना याद भी करतीं पर, दर्द को भूलने की भी कोशिश करती ।लाहौर की यादें उनकी रग रग में रमी हुई थी, उनके हर किस्से में लाहौर की बातें होती इसलिए सब उनको लाहौर वाली चाई जी कहकर बुलाते ।
अपने सरदार जी के दर्द के आगे चाई जी को अपना दर्द हमेशा छोटा नजर आया ।बंटवारे से पहले, सरदार जी की शादी हो चुकी थी और वहां उनकी तीन बेटियां थी बेटियों और पत्नी को साथ लेकर भागना मुश्किल था उनके लिए ,और उपद्रवियों के हाथ अपनी बेटियों की इज्जत को सौंपना गवारा ना था, उन्होंने घर से निकलने से पहले अपनी तीनों बेटियों और पत्नि की अपनी तलवार से गर्दन काट दी थी ,और जैसे छिपकली की पूछ कटने पर बहुत देर तक फड़कती है, बहुत देर तक पड़ती रहती है उन्होंने अपनी तीनों बेटी और पत्नी के सिर को बहुत देर तक छिपकली की पूंछ की तरह उछलते देखा था ,और सुन्न हुए वहीं देर तक बैठे रहे, तब वहां से किसी ने उनको खींचकर बाहर निकाला था ।
बूढ़े सरदार जी के हाथ में अपने बेटी को सौंपते हुए चाई जी के पिता निश्चिंत हो जाना चाहते थे ।
यहां आकर उनकी चार बेटियां और दो बेटे हुए धीरे-धीरे चाई जी अपनी जिम्मेदारियों को पूरी करती जा रही थी पर हमेशा उनके अंदर अनहोनी होने का खतरा महसूस करतीं ।
बेटियों की शादी करने के बाद और बहू को अपनी गृहस्थी सौंपने के बाद ,सरदार जी शांत हो गए और चाई जी सब बच्चों के होने पर भी अकेली रह गयीं ।और लोगों के घरों खुशी खुशी बारातियों का खाना बनाने में उनको आनंद आता था ,और लोगों को उनके हाथ का खाना इतना पसंद आता कि आंखे मूंदकर लोग अपने बच्चों की शादीयों में रसोई की जिम्मेदारी चाई जी को सौंप देते ।
पर आज भी आपस में किसी को बहस करते देख चाई जी कोई अनहोनी की आशंका से घबराकर बीचबचाव कर बहस को शान्त कराने की जी तोड कोशिशें करती हैं ।