देर से आई रश्मि से ,जब मां ने देरी का कारण पूछा और फोन क्यों नहीं किया पूछने पर, रश्मि ने तेज आवाज में एक लाइन का उत्तर पकड़ा दिया, ऑफिस की छुट्टी के बाद दोस्तों के साथ शॉपिंग और मूवी के लिए गई थी।
मेरे को ज्यादा पूछताछ करना पसंद नहीं, मैं अब बडी हो चुकी हूं ,अच्छे बुरे की पहचान है मुझे ।
मां बेटा खाना ,ही बोल पाई थी ,कि उससे पहले रश्मि के कमरे का दरवाजा बंद हो चुका था ।
दो घंटे से बेचैन होकर बुरे बुरे ख्यालों का लबादा ओढ घर के आंगन में टहल रही थी मनोरमा।
बेटी की चिंता के कारण ,थकान होने पर भी मनोरमा को नींद नहीं आ रही थी।
सुबह देर से उठी रश्मि को नाश्ते में आलू परांठे अॉइली नजर आए ,तो दही खाकर ही ब्रेकफास्ट करने की औपचारिकता पूरी कर ली ।
ऑफिस की कैंटीन में सुपर ब्रेकफास्ट मिलता है और दोस्तों के साथ नाश्ता करने का अपना मजा ही कुछ और होता है, ऐसा कहते हुए, ऑफिस के लिए रश्मि निकल ली। बेटी के इस तरीके के निष्ठुर व्यवहार को देखकर मनोरमा की नींद आंखों से जा चुकी थी ,पर अब उसने अपनी बेटी को लेकर उडी नींद के विषय में गंभीरता से सोचना शुरु कर दिया।
लाड प्यार अब बेमानी लगने लगा ।बेटी की निष्ठुरता भरे लोह जैसे जज़्बात को काटने के लिए मोम की तरह पिघल ना मनोरमा ने सहसा ही छोड़ दिया।
लोहे की तरह अचानक अपने व्यवहार को कठोर बना लिया ।सोच लिया मनोरमा ने बेटी तो हाथ से निकल चुकी है ,अब कठोरता का चाबुक चलाकर सुधारने के लिए ,एक बाजी और खेल ली जाए।
रोज की तरह देर से आई ,रश्मि के लिए दरवाजा घर में काम करने वाली मुनिया ने खोला ,और वापस दरवाजा बंद कर ,अपने कमरे में चली गई ।
आज मां को ना देख कर, मन में खुशी हुई चलो ,आज उटपटांग सवालों से मुक्ति तो मिली ।
अच्छा खासा मूड ऑफ हो जाता है, ऊलजलूल सवालों से पता नहीं क्या बीमारी होती है लोगों को ,दूसरे की जिंदगी में ताक झांक करने की ।
पर मन के किसी कोने में पड़ी बेचैनी, बेचैन कर रही थी। आखिर मां आज इंतजार करती क्यों ना मिली, खैर छोड़ो मन को समझाती हुई रश्मि सो गई ।
अपने अंदाज में देर से उठकर जल्दी-जल्दी ऑफिस जाने को तैयार हुई रश्मि ,फोन पर किसी से बात करती हुई खाने की मेज पर आई ,पर यह क्या आज मां के हाथों बनाया नाश्ता मेज पर न दिखाई दिया,
हां मेज पर चाय पी कर ,रखा गया एक खाली कप और दो चार बिस्कुट प्लेट में रखे दिखाई दिए। अपने काम में मगन मुनिया से रश्मि ने पूछा आज मां ने नाश्ता नहीं बनाया ।
मुनिया ने अपना काम रोक कर कहा ,जी दीदी !मेम साहब से मैंने भी पूछा ,तो मैम साहब ने कहा कि आपकी ऑफिस की कैंटीन का ब्रेकफास्ट आपको ज्यादा पसंद है ,और आज मैम साहब का मूड भी ठीक ना था ,वह एक आध बिस्कुट के साथ चाय पीकर आराम कर रही है ।
यह सुनकर रश्मि की भुनभुनाहट शुरू ,ऐसा भी होता है घर से भी कोई भूखा निकलता है ,कहती हुई ऑफिस के लिए निकल ली।
बेटी को भूखा भेजते हुए, मनोरमा का मन तो बहुत दुखी हो रहा था ,पर बेटी की जिंदगी है ,आगे दूसरे परिवार में सब की अपेक्षाएं उस पर टिकेंगीं ,अपनी ही अपेक्षाओं को पूरी करवाने के चक्कर में सबसे उपेक्षित हो जाएगी ।
बेटी की शादी करने से पहले, मुझे उसको लोगों की परवाह करना सिखाना पड़ेगा, जो बेटी अपनी मां के जज्बातों की कदर नहीं करती ,भविष्य में अपने ससुराल वालों की कदर क्या करेगी ?
मुझे कठोर बनना ही पड़ेगा ,अच्छी तनख्वाह के भरोसे चार नौकरों से काम करा लेगी ,पर नौकरों को भी इंसानियत और परवाह चाहिए होती है ,
अपनी मंहगी ,पुरानी चीजें देने से नौकर प्रसन्न नहीं होते, जितना आपके द्वारा उनकी परवाह करने से होते हैं ।
सुबह की बेरुखी ने रश्मि को दिनभर बेचैन रखा ।
शाम को सीधे ऑफिस से घर आ गई ,पर मां को अपने कमरे में किताबों में खोया हुआ पाया ।
अब घर की खामोशी ,खामोशी को चीरती सी लगी रश्मि को ।मुनिया से कहकर एक कप चाय बनवाई ,मुनिया ने केवल चाय बनाकर ही दे दी ,खाने के लिए कुछ पूछने पर मुनिया ने बताया मैमसाहब ने लड्डू मठरी बनाए है, पर आपको ऑइली खाना पसंद नहीं है ।
रश्मि अजीब सी छटपटाहट लेकर सोचने लगी हर समय मेरी पसंद के लिए, कुछ कुछ करके खपने वाली मां इतनी बेरुखी कैसे हो गई ।
यह सोच कर रश्मि गुस्सा आने पर भी अजीब सी छटपटाहट लिए चुप एकदम चुप रही ।
मनोरमा को याद आ रहा था, कि दो दिन बाद ,रश्मि ने अपने जन्मदिन पर कुछ मित्रों को घर बुला रक्खा है ,और एक महीने पहले ही बता दिया था ,कि बाहर से खाना मंगवा लिया जाएगा, और हां जरूरी नहीं है ,कि व्यवहारिकता दिखाने के लिए सब की आवभगत करने लग जाओ ।
बहुत बुरा लगा था ,पर बेटी है ,नादान है ,यह सोचकर बात भूल गई थी ,पर अब ऐसी बातें यादों में आकर ठुकठुुक करती रहती ।
रात को खाना बनाने से पहले मनोरमा ने मुनिया को रश्मि के कमरे में भेजा ,मुनिया ने भी बाहर से ही पूछा ,दीदी मेम साहब खाने में टिंडे की सब्जी और रोटी बना रही हैं, आपको यह खाना है ,तो आपके लिए भी बनालें ,नहीं तो आप अपने लिए बाहर से खाना मंगवा लेना ।
इस तरीके की बेरूखी बातें रश्मि ने कभी ना सुनी थी ,अभी तक तो यह नहीं खाना है, तो और कुछ बना देती हूँ यही मां से सुनती आ रही थी ।
अपनी मनमर्जी से अपेक्षाओं को पूरा करवाने बाली रश्मि के लिए ऐसी उपेक्षा।
ऐसा क्यों सोच सोच कर परेशान रश्मि ने सुबह से आज कुछ नहीं खाया था,रोज तो वह मां के हाथ के खाने में ,कुछ न कुछ मीन मेख निकाल कर बाहर कुछ ना कुछ खा लेती थी, पर आज ब्रेकफास्ट में मां की बेरुखी के कारण दिनभर रश्मि का काम में मन नहीं लगा ।
रश्मि ने मुनिया से कह तो दिया भूख नहीं है ,पर गुस्से में भूख बढ ही जाती है ,पानी पीकर प्यास ही बुझती है ।
मनोरमा को बहुत मुश्किल हो रहा था कठोर होना पर रश्मि के निष्ठुर होते जा रहे व्यवहार पर अंकुश लगाने के लिए यह रास्ता जरूरी हो गया था ।
मां ने अपना और मुनिया का ही खाना बनाया ,
मां खाना खाकर अपने कमरे में चली गई ,रश्मि को उस समय खाने की मेज पर, अपने बुलाए जाने का इंतजार था कि बेटा रश्मि आ जा खाना खाले, पर इंतजार इंतज़ार ही रह गया ।
गुस्से में बढी भूख ,रश्मि के कदमों को रसोई की तरफ ले गई, और नाश्ते के लिए बने लड्डू मठरी आज रश्मि को अॉयली नहीं लग रहे थे ।
रश्मि के मन की बेचैनी ने मां के बदले व्यवहार के कारण खोजने शुरू कर दिए ।रश्मि को याद आने लगा ,उसने हमेशा अपने इंतजार में मां को घर के बाहर खड़ा पाया ,मेरी मनचाही चीजों को दिलाने के लिए ,अपनी इच्छाओं को दबाते देखा है ,उसने मां को ।
रश्मि को तो मां की एक भी पसंद पता ही नहीं ,ना खाने की ना पहनने की ।
मेरी फिक्र में ही मां ,पापा भैया से दूर मेरे पास रह रही है ,पर मैंने मां के लाड प्यार को बंदिशें समझ रखा है ।कुछ अंदाजा सा होने लगा है रश्मि को ,अपने रूखे व्यवहार का परिणाम ही है यह सब।
दो दिन से मां का रूखापन बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है रश्मि को, रात भर सोचती रही कैसे मैं मां को मनाऊं,महसूस होने लगा रश्मि को,बहुत दिन हो गए मुझे ,मां से ठीक से बातचीत करे ।
सोचते-सोचते व्याकुल रश्मि और भी व्याकुल हो गई ।
मां की तबीयत तो खराब नहीं ,कहीं कोई और प्रॉब्लम तो नहीं ।मां ऐसी कभी नहीं थी।
ऐसे जाने कितने अन्नत विचार आकर रश्मि को परेशान करने लगे ।
सुबह होने का इंतजार करें बिना ,रश्मि की बढ़ीधड़कन ,मां के पास जाकर ही सामान्य हुई ,मां भी नींद ना आने पर करवट बदल रही थी ।
रश्मि की आहट पाकर ,मां एक तरफ करवट लेकर लेट गई ।
मां बारह बज गए ,आज मेरा जन्मदिन है ।
कल मेरी सहेलियां आएंगी ,उनके लिए आप अपनी पसंद से मेरी पसंद वाला खाना बना लेना,हां मेवेे वाली खीर खाकर ही मैं सुबह ऑफिस जाऊंगी ,और हॉफ डे लेकर, घर आकर तुम्हारे साथ शॉपिंग के लिए चलूंगीं ।
हां तुम्हारी पसंद का गुलाबी सूट तुम्हारी अलमारी से ले रही हूं ,सुबह वही पहन कर जाऊंगी ।
यह सब सुन रही ,मनोरमा की आंखें निरंतर बहते आंसुओं से धुंधली हो चुकी थी ,दिल के बोझ को हटा सा महसूस करने लगी थी।
मनोरमा को बेटी का जन्मदिन हमेशा याद रहता है ,पर आज तो एक समझदार बेटी का जन्मदिन मनाना है उसको,।
आज मनोरमा ने बहुत जल्दी उठ ,मंदी आंच पर खीर बनाने के लिए रक्ख दी ,खीर की खुशबू पूरे घर में फैलने लगी ।
रश्मि ने जल्दी से उठ कर भगवान के आगे हाथ जोड़, मां का आशीर्वाद लेने के लिए ,मां के आगे अपना सर झुका दिया,
मनोरमा को अपनी लाडो गुलाबी सूट में ,एक कली की तरह खिल कर अपनी सुगंध बिखेर कर घर को महकाने वाली ,बहुत प्यारी लग रही थी।