पीपली
पीपली नाम कुछ अजीब सा सुनने में लगता है ,पर कब पीपली अपनी संतो दादी की प्यारी सी बटुआ बन गई ,दादी को ही पता ना चला ।
अपने कलेजे से लगा कर रखती दादी संतो पीपली को ।मजाल क्या पीपली के बारे में कोई कुछ कह दे संतो के सामने,दादी की आंखें ही काफी होती ।आप पीपली की प्रशंसा ही कर सकते हैं दादी संतों के सामने।
दादी संतो कोअपने बेटे की जोड़ी के लिए गोरी और सुंदर बहू ही चाहिए थी ,जिससे सब यही कहे संतों के तो भाग खुल गए, इतनी सुंदर बहू मिली साक्षात लक्ष्मी का अवतार। और किस्मत से संतो को अपनी रिश्तेदारी में ही अपनी पसंद की ,बेटे के जोड़ की लड़की मिल गई ।
सुंदर लड़की को देख खुद ही जा पहुंची ,मीना के घर बेटे के लिए रिश्ता मांगने ,अभी 12वीं में पढ़ रही थी अपने मां-बाप की बड़ी बिटिया होने के कारण घर के सभी कामों में निपुण रही मीना ।
सरकारी नौकरी वाले लड़के को देखकर मीना के मां-बापू ने भी खुशी-खुशी रिश्ते को हां कह दी ।दादी संतो को बचपन से ही अपनी प्रशंसा सुनने के अलावा दूसरा कोई शौक नहीं रहा ,अपना प्रशंसा सुन जगत् दादी संतों के चेहरे की चमक निखर उठती ।
दादी संतों की अपने बेटे के लिए सुंदर बहू लाने की इच्छा भी भगवान ने पूरी कर दी ।
पैसों से ठीक-ठाक रहीं दीदी की ग्रहस्थी, दादी के चेहरे की चमक और संतोष से कभी भी घर के किसी अभाव को किसी के सामने ना आने देती ।
गांव में सभी के साथ मधुरता का व्यवहार रखती ,सबकी बातें ध्यान से सुनती इसलिए उसका शुरू से नाम ही उनकी सास ने दादी रख दिया और वह जगत् दादी बन गई ,
और सब उनको संतो दादी ,संतो दादी बुलाया करते ।कभी किसी की परेशानी को सुनती तो तसल्ली जरूर देती ,पर अपने आप किसी की मुसीबत के बारे में पूछ कर उसके जख्मों को ना कुरेदती ।
दादी संतो के पास बैठना सब को अच्छा लगता, दादी के घर और मन के दरवाजे हमेशा सबके लिए खुले रहते। अजनबियों को भी अपना बना लेती उनकी सब की सुनने की आदत ।ऐसे तो गांव में कोई अजनबी होता ही नहीं। पर पता नहीं, संतों की कौन सी सनक जाट उठी, यह दादी को भी ना पता चला ।
अपनी लाडली बहू मीना को चेतावनी दे डाली ,सुन ले मेरी बात ध्यान से बहू मीना ,अगर छोरी हुई तो मंदिर के पीपल के पेड़ के नीचे रख अाऊंगी। बहू मीना भी हंसकर कहती सच्ची में ,नन्ही सी जान को पीपल के पेड़ के नीचे रख कर आओगी ।दादी संतो कहती, मेरी बात पर यकीन नहीं है अगर छोरी हुई तो देख लेना ,मेरी पक्की बात ।
आखिर दादी के घर पोती ही आ धमकी।
दादी संतो की बात याद कर मीना ने भी कुछ मन में ठान लिया, मां इसको तो आप अपनी लाडली पोती ही बनाओगी ।
जब आप पराओं को अपना बना लेती हो ,यह तो छोटी सी आपकी ही पोती है ।दादी संतो, दादी बनने पर खुश तो हुई पर पोती को देखना मतलब ही नहीं ।
दादी की बेरुखी देख, मीना बोली ठीक है मां छोरी को रख आओ, पीपल के नीचे ।मीना भी जानती थी कि नरम दिल वाली संतों मां ने कह तो दी इतनी बड़ी बात पर वचन ना निभा पाएगीं। बहू मीना की बात सुन,संतो दादी ने चौंककर पूछा सच्ची में रख आऊं, फिर मत उलहाना देना,।
हां मांजी अब यह छोरी जो किस्मत में लिखा कर लाई है, सो हो ,हमें क्या लेना देना। बहु मीना की बात सुन चल पड़ी दादी संतो सच में पोती को पीपल के पेड़ के नीचे रखने। दादी की गोद में पोती देख मंदिर में औरतें बोलने लगीं, संतो के घर लक्ष्मी आई है ,बधाई हो पर दादी संतो अपनी पोती को पीपल के पेड़ के नीचे रखकर वापस हो ली तभी पोती के रोने की आवाज से दादीे संतो के पैर तो रुके ,पर चाह नहीं ।तभी पास में पूजा कर रही गांव की जगत् चाची बोली पडी संतो इसको यहां क्यों पटक दिया रो रही है उठा पोती को।
बच्ची के रोने की आवाज सुनकर दादी संतों की ममता भी जाग उठी ,बोल पड़ी संतो ,टोक दिया ना चाची तूने मैंने मन्नत मांगी थी अपने बेटे की पहली औलाद को इस पेड़ में चढ़ाकर मत्था टिकवा कर ,अपनी गोद में लूंगी ।
अभी मंदिर में दर्शन करके आ रही हूं ,संभाल के पकड़ ले मेरी पोती को अभी लेने आती हूं अपनी पोती को। सारे देवी देवताओं को मत्था टेक कर, मन ही मन माफी मांगी क्या करने जा रही थी मैं, एक नन्ही सी जान को ऐसे ही छोड़ कर जा रही थी ,भूखी प्यासी मर जाती, चीटियां खा जाती ,किस किस को जवाब देती फिरती, क्या जवाब देती अपने पाप की गठरी कितने जन्मों में ढोती ।
दो मिनट से भी कम समय लगा पोती के पास आने में ,और जगत चाची की गोद से लेकर छाती से चिपका लिया ।
मेरी पोती की छठी है कल शाम को आ जाना मेरे लिए घर के काम बहुत है ,जच्चा बच्चा के काम में सहारा देने के लिए कभी कभार आ जाया कर ,काम बटाने।
छाती से चिपकाए पोती को संतो लेकर घर चली आई और बहू को पोती दे और बोली, ले संभाल इसको मीना बोली आप तो ले आए अपनी पोती को।
अरे मैंने तो मन्नत मांगी थी अपने बेटे की पहली औलाद को पीपल के पेड के नीचे चढाऊंगी ,कल मेरी पोती की छठी है बहुत तैयारी करनी है पूरे घर की साफ सफाई करवानी है ।
कल मेरी लाडली पोती की किस्मत लिखी जाएगी।
गली मोहल्ले की औरतों से रतजगे के लिए भी बोलकर आना है ।
बहू मीना की ममता दादी संतों की ममता के आगे टिक भी ना पा रही थी ।
बहू मीना ने बिटिया का नाम मजाक मैं पीपली रख दिया ।
दादी को पहले तो अजीब लगता था ,और वह मीना को डांट देती खबरदार मेरी पोती राधा को किसी उल्टे सीधे नाम से बुलाया ,
पर धीरे-धीरे लाड में लिए जाने वाले नाम से दादी भी बुलाने लगती ।छोटी सी राधा को अरे छोटी सी पीपली क्या कर रही है,दादी बुलाती ।
छोटी सी राधा को दादी हमेशा अपने साथ रखतीं ।अपनी थाली के साथ, छोटी सी थाली में खाना राधा के लिए भी लगवाती और गोद में बैठाकर को खाना खिलातीं ,दादी पोती एक साथ बैठतीं,खाना खाने के लिए ।
मंदिर भी सुबह शाम दोनों दादी पोती चल पडतीं साथ साथ।
कहीं से दादी के लिए कीर्तन का बुलावा आता राधा रानी जाने के लिए पहले तैयार मिलतीं दरवाजे पर ।
दादी संतो बहू को बहू मीना बुलाती ,तो राधा की दादी की ओट लेकर बोलती बहू मीना दादी बुला रही है ।
बहू मीना यहां आना तो मेरे लिए एक गिलास पानी लेते आना ।
मीना की कहती हां पुरखिन लाती हूं ,अभी पानी ।
दादी संतो कह उठतीं मेरी राधा को डांटने की जरूरत नहीं है ,फिर धीरे-धीरे राधा को समझाती तेरी मां है ,नाम से नहीं बुलाते ।
कभी-कभी पुकारे जाने वाले पीपली नाम से राधा को चिढ़ होती ,दादी से शिकायत करती मुझको पीपली क्यों बुलाते हो पीपली क्या होता है ,तो बहू मीना कहती मैं बताऊं आजा मेरे पास मैं तेरे को बताती हूं पीपली क्या होता है ,तब दादी संतो कहती ना ना बेटा ,पीपली तो तेरे को मजाक में कहते हैं मेरी सबसे प्यारी सी सुंदर सी लाडो है ,इसलिए किसी की नजर ना लगे इसलिए तुझे पीपली कहते हैं और यह सुन बहू मीना मन ही मन खुश हो मुस्कुराती ।