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बरसात की शाम

31 जुलाई 2024

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बरसती शाम का आलम, दिल में उतर आया,
भीगी-भीगी राहों में, एक ख्वाब सा छाया।

मिट्टी की सौंधी खुशबू, सांसों में बसी है,
पत्तों पर टप-टप बूंदें, जैसे राग कोई फिजा में घुली है।

चाय की प्याली संग, यादें भी ताज़ा हो जाती हैं,
बारिश की इस शाम में, हर बात खास हो जाती है।

तन्हाई भी मुस्कुराए, ये मौसम का है असर,
बारिश की इस शाम ने, दिल को कर दिया है बेखबर।
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बरसती शाम का आलम, दिल में उतर आया,भीगी-भीगी राहों में, एक ख्वाब सा छाया।मिट्टी की सौंधी खुशबू, सांसों में बसी है,पत्तों पर टप-टप बूंदें, जैसे राग कोई फिजा में घुली है।चाय की प्याली संग, यादें भी ताज़ा

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