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चरखा गीत

3 अगस्त 2022

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भ्रम, भ्रम, भ्रम

घूम, घूम, भ्रम भ्रम रे चरखा 

कहता : 'मैं जन का परम सखा, 

जीवन का सीधा-सा नुसखा

श्रम, श्रम, श्रम!' 

कहता : 'हे अगणित दरिद्रगण! 

जिनके पास न अन्न, धन, वसन, 

मैं जीवन उन्नति का साधन

क्रम, क्रम, क्रम!' 


भ्रम, भ्रम, भ्रम

'धुन रूई, निर्धनता दो धुन, 

कात सूत, जीवन पट लो बुन; 

अकर्मण्य, सिर मत धुन, मत धुन, 

थम, थम, थम!' 

'नग्न गात यदि भारत मा का, 

तो खादी समृद्धि की राका, 

हरो देश की दरिद्रता का 

तम, तम, तम!' 


भ्रम, भ्रम, भ्रम,

कहता चरखा प्रजा तंत्र से : 

'मैं कामद हूँ सभी मंत्र से'; 

कहता हँस आधुनिक यंत्र से : 

‘नम, नम, नम!' 


'सेवक पालक शोषित जन का, 

रक्षक मैं स्वदेश के धन का, 

कातो हे, काटो तन मन का 

भ्रम, भ्रम, भ्रम!'  

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युगांत

40 रचनाएँ
"'युगांत' में 'पल्लव' की कोमलकांत कला का अभाव है। इसमें मैंने जिस नवीन क्षेत्र को अपनाने की चेष्टा की है, मुझे विश्वास है, भविष्य में उस मैं अधिक परिपूर्ण रूप में ग्रहण एवं प्रदान कर सकूँगा।" सुमित्रनंदन पंत छायावादी युग के प्रमुख 4 स्तंभकारों में से एक हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में उच्छवास, पल्लव, मेघनाद वध, बूढ़ा चांद आदि शामिल हैं। उन्हें साहित्य में योगदान के लिए पद्मभूषण व ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
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