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मंजरित आम्र वन छाया में

28 अप्रैल 2022

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मंजरित आम्र-वन-छाया में

हम प्रिये, मिले थे प्रथम बार,

ऊपर हरीतिमा नभ गुंजित,

नीचे चन्द्रातप छना स्फार!

तुम मुग्धा थी, अति भाव-प्रवण,

उकसे थे, अँबियों-से उरोज,

चंचल, प्रगल्भ, हँसमुख, उदार,

मैं सलज,--तुम्हें था रहा खोज!

छनती थी ज्योत्स्ना शशि-मुख पर,

मैं करता था मुख-सुधा पान,

कूकी थी कोकिल, हिले मुकुल,

भर गए गन्ध से मुग्ध प्राण!

तुमने अधरों पर धरे अधर,

मैंने कोमल वपु-भरा गोद,

था आत्म-समर्पण सरल, मधुर,

मिल गए सहज मारुतामोद!

मंजरित आम्र-द्रुम के नीचे

हम प्रिये, मिले थे प्रथम बार,

मधु के कर में था प्रणय-बाण,

पिक के उर में पावक-पुकार!

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रचनाएँ
युगांत
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"'युगांत' में 'पल्लव' की कोमलकांत कला का अभाव है। इसमें मैंने जिस नवीन क्षेत्र को अपनाने की चेष्टा की है, मुझे विश्वास है, भविष्य में उस मैं अधिक परिपूर्ण रूप में ग्रहण एवं प्रदान कर सकूँगा।" सुमित्रनंदन पंत छायावादी युग के प्रमुख 4 स्तंभकारों में से एक हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में उच्छवास, पल्लव, मेघनाद वध, बूढ़ा चांद आदि शामिल हैं। उन्हें साहित्य में योगदान के लिए पद्मभूषण व ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
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द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र

28 अप्रैल 2022
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द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र! हे स्रस्त-ध्वस्त! हे शुष्क-शीर्ण! हिम-ताप-पीत, मधुवात-भीत, तुम वीत-राग, जड़, पुराचीन!! निष्प्राण विगत-युग! मृतविहंग! जग-नीड़, शब्द औ' श्वास-हीन, च्युत, अस्त-व्यस्त प

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गा कोकिल, बरसा पावक कण

28 अप्रैल 2022
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गा, कोकिल, बरसा पावक-कण! नष्ट-भ्रष्ट हो जीर्ण-पुरातन, ध्वंस-भ्रंस जग के जड़ बन्धन! पावक-पग धर आवे नूतन, हो पल्लवित नवल मानवपन! गा, कोकिल, भर स्वर में कम्पन! झरें जाति-कुल-वर्ण-पर्ण घन, अन्ध-न

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विद्रुम औ मरकत की छाया

28 अप्रैल 2022
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विद्रुम औ' मरकत की छाया, सोने-चाँदी का सूर्यातप; हिम-परिमल की रेशमी वायु, शत-रत्न-छाय, खग-चित्रित नभ! पतझड़ के कृश, पीले तन पर पल्लवित तरुण लावण्य-लोक; शीतल हरीतिमा की ज्वाला दिशि-दिशि फैली कोम

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जगती के जन पथ, कानन में

28 अप्रैल 2022
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जगती के जन पथ, कानन में तुम गाओ विहग! अनादि गान, चिर शून्य शिशिर-पीड़ित जग में निज अमर स्वरों से भरो प्राण। जल, स्थल, समीर, नभ में मिलकर छेड़ो उर की पावक-पुकार, बहु-शाखाओं की जगती में बरसा जीवन

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वे चहक रहीं कुंजों में

28 अप्रैल 2022
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वे चहक रहीं कुंजों में चंचल सुंदर चिड़ियाँ, उर का सुख बरस रहा स्वर-स्वर पर! पत्रों-पुष्पों से टपक रहा स्वर्णातप प्रातः समीर के मृदु स्पर्शों से कँप-कँप! शत कुसुमों में हँस रहा कुंज उडु-उज्वल, लगत

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वे डूब गए

28 अप्रैल 2022
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वे डूब गए--सब डूब गए दुर्दम, उदग्रशिर अद्रि-शिखर! स्वप्नस्थ हुए स्वर्णातप में लो, स्वर्ण-स्वर्ण अब सब भूधर! पल में कोमल पड़, पिघल उठे सुन्दर बन, जड़, निर्मम प्रस्तर, सब मन्त्र-मुग्ध हो, जड़ित हु

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तारों का नभ

28 अप्रैल 2022
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तारों का नभ! तारों का नभ! सुन्दर, समृद्ध आदर्श सृष्टि! जग के अनादि पथ-दर्शक वे, मानव पर उनकी लगी दृष्टि! वे देव-बाल भू को घेरे भावी भव की कर रहे पुष्टि! सेबों की कलियों-सा प्रभूत वह भावी जग-जीव

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जीवन का फल

28 अप्रैल 2022
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जीवन का फल, जीवन का फल! यह चिर यौवन-श्री से मांसल! इसके रस में आनन्द भरा, इसका सौन्दर्य सदैव हरा; पा दुख-सुख का छाया-प्रकाश परिपक्व हुआ इसका विकास; इसकी मिठास है मधुर प्रेम, औ’ अमर बीज चिर विश्

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बढ़ो अभय, विश्वास-चरण धर

28 अप्रैल 2022
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बढ़ो अभय, विश्वास-चरण धर! सोचो वृथा न भव-भय-कातर! ज्वाला के विश्वास के चरण, जीवन मरण समुद्र संतरण, सुख-दुख की लहरों के शिर पर पग धर, पार करो भव-सागर। बढ़ो, बढ़ो विश्वास-चरण धर! क्या जीवन? क्यों

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गर्जन कर मानव-केशरि!

28 अप्रैल 2022
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गर्जन कर मानव-केशरि! मर्म-स्पृह गर्जन, जग जावे जग में फिर से सोया मानवपन! काँप उठे मानस की अन्ध गुहाओं का तम, अक्षम क्षमताशील बनें जावें दुबिधा, भ्रम! निर्भय जग-जीवन कानन में कर हे विचरण, का

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बाँसों का झुरमुट

28 अप्रैल 2022
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बाँसों का झुरमुट संध्या का झुटपुट हैं चहक रहीं चिड़ियाँ टी-वी-टी--टुट-टुट! वे ढाल ढाल कर उर अपने हैं बरसा रहीं मधुर सपने श्रम-जर्जर विधुर चराचर पर, गा गीत स्नेह-वेदना सने! ये नाप रहे निज घर का

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जग-जीवन में जो चिर महान

28 अप्रैल 2022
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जग-जीवन में जो चिर महान, सौंदर्य-पूर्ण औ सत्‍य-प्राण, मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ! जिसमें मानव-हित हो समान! जिससे जीवन में मिले शक्ति, छूटे भय, संशय, अंध-भक्ति; मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ! मिट जा

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जो दीन-हीन, पीड़ित

28 अप्रैल 2022
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जो दीन-हीन, पीड़ित, निर्बल, मैं हूँ उनका जीवन संबल! जो मोह-छिन्न, जग से विभक्त, वे मुझ में मिलें, बनें सशक्त! जो अहंपूर्ण, वे अन्ध-कूप, जो नम्र, उठे बन कीर्ति-स्तूप! जो छिन्न-भिन्न, जल-कण असार,

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शत बाहु-पद

28 अप्रैल 2022
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शत बाहु-पद, शत नाम-रूप, शत मन, इच्छा, वाणी, विचार, शत राग-द्वेष, शत क्षुधा-काम, यह जग-जीवन का अन्धकार! शत मिथ्या वाद-विवाद, तर्क, शत रूढ़ि-नीति, शत धर्म-द्वार, शिक्षा, संस्कृति, संस्था, समाज, य

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चरखा गीत

3 अगस्त 2022
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भ्रम, भ्रम, भ्रम घूम, घूम, भ्रम भ्रम रे चरखा  कहता : 'मैं जन का परम सखा,  जीवन का सीधा-सा नुसखा श्रम, श्रम, श्रम!'  कहता : 'हे अगणित दरिद्रगण!  जिनके पास न अन्न, धन, वसन,  मैं जीवन उन्नति का सा

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ए मिट्टी के ढेले

28 अप्रैल 2022
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ऐ मिट्टी के ढेले अनजान! तू जड़ अथवा चेतना-प्राण? क्या जड़ता-चेतनता समान, निर्गुण, निसंग, निस्पृह, वितान? कितने तृण, पौधे, मुकुल, सुमन, संसृति के रूप-रंग मोहन, ढीले कर तेरे जड़ बन्धन आए औ’ गए! (

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राष्ट्र गान

3 अगस्त 2022
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जन भारत हे!  भारत हे!  स्वर्ग स्तंभवत् गौरव मस्तक  उन्नत हिमवत् हे,  जन भारत हे,  जाग्रत् भारत हे!  गगन चुंबि विजयी तिरंग ध्वज  इंद्रचापमत् हे,  कोटि कोटि हम श्रम जीवी सुत  संभ्रम युत

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खो गई स्वर्ग की स्वर्ण किरण

28 अप्रैल 2022
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खो गई स्वर्ग की स्वर्ण-किरण छू जग-जीवन का अन्धकार, मानस के सूने-से तम को दिशि-पल के स्वप्नों में सँवार! गुँथ गए अजान तिमिर-प्रकाश दे-दे जग-जीवन को विकास, बहु रूप-रंग-रेखाओं में भर विरह-मिलन का

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चंचल पग दीप-शिखा-से

3 अगस्त 2022
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चंचल पग दीप-शिखा-से धर गृह,मग, वन में आया वसन्त! सुलगा फाल्गुन का सूनापन सौन्दर्य-शिखाओं में अनन्त! सौरभ की शीतल ज्वाला से फैला उर-उर में मधुर दाह आया वसन्त, भर पृथ्वी पर स्वर्गिक सुन्दरता का प

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धोबियों का नृत्य

3 अगस्त 2022
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लो, छन छन, छन छन, छन छन, छन छन, नाच गुजरिया हरती मन! उसके पैरों में घुँघरू कल, नट की कटि में घंटियाँ तरल, वह फिरकी सी फिरती चंचल, नट की कटि खाती सौ सौ बल, लो, छन छन, छन छन, छन छन, छन छ

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सुन्दरता का आलोक

28 अप्रैल 2022
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सुन्दरता का आलोक-श्रोत है फूट पड़ा मेरे मन में, जिससे नव जीवन का प्रभात होगा फिर जग के आँगन में! मेरा स्वर होगा जग का स्वर, मेरे विचार जग के विचार, मेरे मानस का स्वर्ग-लोक उतरेगा भू पर नई बार!

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ग्राम वधू

3 अगस्त 2022
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जाती ग्राम वधू पति के घर! मा से मिल, गोदी पर सिर धर, गा गा बिटिया रोती जी भर, जन जन का मन करुणा कातर, जाती ग्राम वधू पति के घर! भीड़ लग गई लो, स्टेशन पर, सुन यात्री ऊँचा रोदन स्वर झाँक

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नव हे, नव हे

28 अप्रैल 2022
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नव हे, नव हे! नव नव सुषमा से मंडित हो चिर पुराण भव हे! नव हे! नव ऊषा-संध्या अभिनन्दित नव-नव ऋतुमयि भू, शशि-शोभित, विस्मित हो, देखूँ मैं अतुलित जीवन-वैभव हे! नव हे! नव शैशव-यौवन हिल्लोलित जन्

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ग्राम श्री

3 अगस्त 2022
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फैली खेतों में दूर तलक  मखमल की कोमल हरियाली,  लिपटीं जिससे रवि की किरणें  चाँदी की सी उजली जाली!  तिनकों के हरे-हरे तन पर  हिल हरित रुधिर है रहा झलक,  श्यामल भूतल पर झुका हुआ  नभ का चिर निर्मल

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वे आँखें

3 अगस्त 2022
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अंधकार की गुहा सरीखी उन आँखों से डरता है मन, भरा दूर तक उनमें दारुण दैन्‍य दुख का नीरव रोदन! अह, अथाह नैराश्य, विवशता का उनमें भीषण सूनापन, मानव के पाशव पीड़न का देतीं वे निर्मम विज्ञापन!

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बाँधो, छबि के नव बन्धन

28 अप्रैल 2022
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बाँधो, छबि के नव बन्धन बाँधो! नव नव आशाकांक्षाओं में तन-मन-जीवन बाँधो! छबि के नव भाव रूप में, गीत स्वरों में, गंध कुसुम में, स्मित अधरों में, जीवन की तमिस्र-वेणी में निज प्रकाश-कण बाँधो! छबि क

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गाँव के लड़के

3 अगस्त 2022
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मिट्टी से भी मटमैले तन, अधफटे, कुचैले, जीर्ण वसन, ज्यों मिट्टी के हों बने हुए ये गँवई लड़के—भू के धन! कोई खंडित, कोई कुंठित, कृश बाहु, पसलियाँ रेखांकित, टहनी सी टाँगें, बढ़ा पेट, टेढ़े मेढ़

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मंजरित आम्र वन छाया में

28 अप्रैल 2022
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मंजरित आम्र-वन-छाया में हम प्रिये, मिले थे प्रथम बार, ऊपर हरीतिमा नभ गुंजित, नीचे चन्द्रातप छना स्फार! तुम मुग्धा थी, अति भाव-प्रवण, उकसे थे, अँबियों-से उरोज, चंचल, प्रगल्भ, हँसमुख, उदार, मैं स

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वह बुड्ढा

3 अगस्त 2022
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खड़ा द्वार पर, लाठी टेके, वह जीवन का बूढ़ा पंजर, चिमटी उसकी सिकुड़ी चमड़ी हिलते हड्डी के ढाँचे पर। उभरी ढीली नसें जाल सी सूखी ठठरी से हैं लिपटीं, पतझर में ठूँठे तरु से ज्यों सूनी अमरबेल हो चिपट

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वह विजन चाँदनी की घाटी

28 अप्रैल 2022
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वह विजन चाँदनी की घाटी छाई मृदु वन-तरु-गन्ध जहाँ, नीबू-आड़ू के मुकुलों के मद से मलयानिल लदा वहाँ! सौरभ-श्लथ हो जाते तन-मन, बिछते झर-झर मृदु सुमन-शयन, जिन पर छन, कम्पित पत्रों से, लिखती कुछ ज्यो

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नारी

3 अगस्त 2022
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स्वाभाविक नारी जन की लज्जा से वेष्टित, नित कर्म निष्ठ, अंगो की हृष्ट पुष्ट सुन्दर, श्रम से हैं जिसके क्षुधा काम चिर मर्यादित, वह स्वस्थ ग्राम नारी, नर की जीवन सहचर। वह शोभा पात्र नहीं कुसुमादपि

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वह लेटी है तरु छाया में

28 अप्रैल 2022
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छाया? वह लेटी है तरु-छाया में सन्ध्या-विहार को आया मैं। मृदु बाँह मोड़, उपधान किए, ज्यों प्रेम-लालसा पान किए; उभरे उरोज, कुन्तल खोले, एकाकिनि, कोई क्या बोले? वह सुन्दर है, साँवली सही, तरुणी है

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नारी

3 अगस्त 2022
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स्वाभाविक नारी जन की लज्जा से वेष्टित, नित कर्म निष्ठ, अंगो की हृष्ट पुष्ट सुन्दर, श्रम से हैं जिसके क्षुधा काम चिर मर्यादित, वह स्वस्थ ग्राम नारी, नर की जीवन सहचर। वह शोभा पात्र नहीं कुसुमादपि

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कठपुतले

3 अगस्त 2022
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ये जीवित हैं या जीवन्मृत! या किसी काल विष से मूर्छित? ये मनुजाकृति ग्रामिक अगणित! स्थावर, विषण्ण, जड़वत, स्तंभित! किस महारात्रि तम में निद्रित ये प्रेत?—स्वप्नवत् संचालित! किस मोह मंत्र से रे

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गाँव के लड़के

3 अगस्त 2022
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मिट्टी से भी मटमैले तन, अधफटे, कुचैले, जीर्ण वसन, ज्यों मिट्टी के हों बने हुए ये गँवई लड़के—भू के धन! कोई खंडित, कोई कुंठित, कृश बाहु, पसलियाँ रेखांकित, टहनी सी टाँगें, बढ़ा पेट, टेढ़े मेढ़

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दृष्टि

3 अगस्त 2022
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देख रहा हूँ आज विश्व को मैं ग्रामीण नयन से, सोच रहा हूँ जटिल जगत पर, जीवन पर जन मन से। ज्ञान नहीं है, तर्क नहीं है, कला न भाव विवेचन, जन हैं, जग है, क्षुधा, काम, इच्छाएँ जीवन साधन। रूप जगत है, रूप

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युवती

3 अगस्त 2022
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उन्मद यौवन से उभर घटा सी नव असाढ़ की सुन्दर, अति श्याम वरण, श्लथ, मंद चरण, इठलाती आती ग्राम युवति वह गजगति सर्प डगर पर!   सरकाती-पट, खिसकाती-लट, शरमाती झट वह नमित दृष्टि से देख उरोजों के यु

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कवि

3 अगस्त 2022
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यहाँ न पल्लव वन में मर्मर, यहाँ न मधु विहगों में गुंजन, जीवन का संगीत बन रहा यहाँ अतृप्त हृदय का रोदन! यहाँ नहीं शब्दों में बँधती आदर्शों की प्रतिमा जीवित, यहाँ व्यर्थ है चित्र गीत में सुंद

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ग्राम

3 अगस्त 2022
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बृहद् ग्रंथ मानव जीवन का, काल ध्वंस से कवलित, ग्राम आज है पृष्ठ जनों की करुण कथा का जीवित! युग युग का इतिहास सभ्यताओं का इसमें संचित, संस्कृतियों की ह्रास वृद्धि जन शोषण से रेखांकित। हिंस्र वि

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स्वप्न पट

3 अगस्त 2022
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ग्राम नहीं, वे ग्राम आज औ’ नगर न नगर जनाकर, मानव कर से निखिल प्रकृति जग संस्कृत, सार्थक, सुंदर। देश राष्ट्र वे नहीं, जीर्ण जग पतझर त्रास समापन, नील गगन है: हरित धरा: नव युग: नव मानव जीवन।

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