shabd-logo

दैनिक प्रतियोगिता

hindi articles, stories and books related to dainik-pratiyogita


कैसी आए अपने  मिलन की बेला  ,जब ख्बाब ही है सिर्फ मेरा खयाली ।

लो आ गई विरह की बेला,अब तो आजा एक बार,मेरे दिलवर,ऑंखें तरस रही है।आ कर एक बार मिल लो,मेरे दिलवर।क्या जिंदगी में तुझ से कभी,मिल भी पाऊँगी या नही,एक बार आ जाओ  मेरे दिलवर,विरह की बेला आ गई।आँखों से

🌹मैं रहती हूं जहां बहुत ही ख़ूबसूरत और हसीन रहता है यहां का समा। 🌹पहाड़ों घाटियों और झरनों से घिरा मोह लेता है यह दिल सबका सदा। 🌹दिखता है यहां से मसूरी का नज़ारा जगमग करता मसूरी का शहर सारा

मैं माण्डवी ,मिथिला के राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज की बड़ी पुत्री मांडवी अप्रतिम सुंदरी व विदुषी थी, बचपन से ही सीता को अपना आदर्श मानने वाली मांडवी गौरी की अनन्य भक्त भी थी,श्रीरामचंद्र के धनुष तोडऩ

कौनसी दौलत थी मेंने तुमसे  माँगी, इक मौहब्बत,  दुसरी वफा ही चाही ।

मेरा नाम राजेश कुमार है मै इस कहानी मे जाती के नाम पर जो सालो से दलितों पे अत्याचार हुआ उसके बा

जीवन मे केवल दो ही सार्थक परिणाम होता है

एक

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए