एंजियाटिकोज -2
रक्त संचार की खराबी की वजह से उत्पन्न हिद्रय सम्बन्धित समस्याये, यह दवा हिद्रय के दाहिने भाग पर प्रभावी तथा वेन पर कार्य करती है, वेन या शिराओं का कार्य अशुद्ध रक्त को ह्रिदय तक पुचाना है , वेन मे रूकावट की वजह से वेरीकोज बेन ,या साईटिका ,गाठों का बनना सिस्ट या बबासीर, शरीर में कही भी मॉस या हडडी का बढना आदि में उपयोगी !
इस औषधी के निर्माण में निम्न औषधिय पौधों को निश्चित अनुपात में मिश्रित कर बनाया गया है ।
क्र0
औषधिय पौधों के नाम
उपयोग मात्रये
1
AVENA SATIVA (Jawi, Jai Oats)
30
2
SANGUINARIA CANADENSIS
20
3
HYDRASTIS CANADENSIS
10
4
AESCULUS HIPPOCASTANUM
20
5
HAMAMELIS VIRGINICA
10
6
ACHILLEA MILLIFOLIUM (Rajmari)
10
7
MALVA SILVESTERIS
10
एंजियाटिकोज -2
वेन पर कार्य :- एंजियाटिकोज -2 का प्रभाव हिद्रय के बाये भाग पर है जिस तरह से ए-1 सभी तरह के ब्लड सर्कुलेशन पर कार्य करती है ठीक उसी प्रकार ए-2 वेन पर कार्य करती है अत: वेन में आई किसी भी तरह के अवरोध को यह दवा ठीक करती है बेनस में आये अवरोध जैसे वेन के दबजाने या वहॉ पर रक्त संचार के ठीक से न होने के कारण बेरीकोज वेन डिसीज ,या वेनस में ब्लड सर्कुलेशन के ठीक से न होने के कारण गाठों ,मस्से ,या टयूमर आदि का बनान या साईटिका या उसका र्दद ,वेनस में रक्त के जमने से उस अंग को रक्त की पूर्ति उचित तरीके से नही हो पाती इससे उस जगह की कोशिकाओं एंव टिश्यू को उनका भोजन तथा आक्सीजन की पूर्ति नही हो पाती इससे उस अंग पर रक्त का जमाव होन लगता है या कैंसर का रूप धारण करने लगती है । मलद्वार के बेनस में रक्त के जमने के कारण धीरे धीरे गाठे बनने लगती है जो बादी या खूनी बबासीर की बीमारी का कारण होती है । यदि वेन्स में रक्त संचार उचित रूप से होता रहेगा तो शरीर में अशुद्ध रक्त का जमाव नही होगा इससे गाठे , मस्से ,मुंहासे, सिस्ट टयूमर आदि के बनने की संभावना नही होगी । यदि शरीर के बॉये भाग में लकवा लगा हो तो इस दवा का प्रयोग अवश्य करना चाहिये । शरीर में ब्लड सर्कुलेशन की खराबी की वजह से शरीर में कही भी पानी भरने की स्थिति में भी इसका प्रयोग करना चाहिये । किसी भी तरह की रूकावट ,मोच ,सूजन मॉस पेशियों में र्दद ,जोडों में र्दद आदि पर ए-2 के प्रयोग को कदापी नही भूलना चाहिये । वेन्स से जुडी किसी भी तरह की समस्याये जैसे बेरीकोज वेन्स , साईटिका,शरीर में शून्यपन ,हार्ड से जुडी किसी भी तरह की समस्याओं पर ए-2 के तीसरे डयलूशन का सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है । लो व हाई ब्लड प्रशर में इसका प्रयोग किया जा सकता परन्तु यह डायलूशन याने दवा की पोटेंशी पर निर्भर करता है । हाई ब्लड प्रेशर में ए-2 के तीसरे या इससे उपर के डयलुशन का प्रयोग किया जा सकता है । लो ब्लड प्रेशर में दूसरे डायलुशन का प्रयोग या तीसरे डायलूशन का प्रयोग करना चाहिये ।
महिलाओं की समस्याये:- महिलाओं के यूटरस में गांठे या सिस्ट होना ,मासिकधर्म का समय पर न होना या मासिक में अशुद्ध रक्त का न निकलना , जैसी समस्याओं पर ए-2 का प्रयोग सी-2 के साथ करना चाहिये । मासिकधर्म के रूकने पर ए-2 के पहले डायलूशन का प्रयोग करना चाहिये । किसी भी तरह के धॉवों,गाठों के सडन,फिशूला आदि में ए-2 के दूसरे डायलूशन का प्रयोग करना चाहिये, एम सी की अधिकता या किसी भी अंग से रक्त स्त्राव होने पर इसके तीसरे डायलूशन का प्रयोग करना चाहिये
फेफडो के रोग :- फेफडो के रोग जिसमें खॉसी, बलगम का बनना ,निमोनिया आदि समस्याओं में इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियो जैसे ए-2 के साथ पी-2 का प्रयोग करने से अच्छे परिणाम मिलते है ।
अनुभव:- डॉ0 डीगरा सहाब का अपना अनुभव है उन्हाने बबसीर में ए-2, सी-2, सी-5 तथा खूनी बबासीर में बी0 ई0 के साथ एंव बादी बबासीर में जी0 ई0 के साथ प्रयोग कर बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त किये है ।
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डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल
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