रेड इलैक्ट्री सिटी (लाल बिजली)
लाल इैक्ट्रीसिटी एक धनात्मक बिजली है अत: इसका प्रयोग शरीर के ऋणात्मक भागों मे व रोगों में किया जाता है, यह कफ प्रकृति वालों के अनुकूल है, परन्तु रोग स्थिति के अनुसार इसका प्रयोग सभी प्रकृति के रोगियों में सफलतापूर्वक किया जा सकता है । इसके प्रयोग से शरीर में उत्तेजना बढ जाती है । एंव रक्त संचालन तीब्र हो जाता है । शरीर में उर्जा बढती है यह शरीर को शक्ति देती है अर्थात बलवद्धक है । धीमें रक्त संचार की वजह से अंगों व शरीर में आई शिथिलता, निश्क्रियता ,शरीर या अंगों का शून्यपन उसका ठण्डापन, यह प्रयेाग से रक्त संचार को तीब्र करती है , रक्त संचालन के व्याधानों की वजह से किसी भी तरह की रूकावट, अंगों की निष्कियता, अंगोंका शून्यपन, ठण्डा होना, झुनझुनी, आदि को यह दूर करती है , मेाटर नर्व एंव सेंसरी नर्व को प्रभावित करती है, यदि शरीर मे पसीना रूक गया हो तो यह पसीना लातीहै । जब कभी बुखार आने पर पसीना न आ रहा हो जिसकी वजह से शरीर का तापमान बढता जा रहा हो तब इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियों के साथ करने पर शरीर से पसीना आ जाता है व बुखार धीरे धीरे उतर कर शरीर का तापक्रम अपने सामान्य अवस्था में आने लगता है ।
शरीर में रक्त संचार की कमी की वजह से शरीर ठण्डा पडने लगा हो उसमें गर्मी का अभाव हो तो इसके प्रयोग से शरीर में गर्मी आने लगती है । यह दवा भूखॅ को बढाने वाली पोषण करने वाली , स्फूर्तिदायक, रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढाने वाली, एक उत्तेजक तथा शरीर को गर्मी देने वाली औषधि है ।
रक्त संचार:- जैसाकि हमने पहले भी कहॉ है यह धीमें रक्त संचार को तेज कर देती है , रक्त संचार के मंद होने की वजह से शरीरके किसी भी स्थान में रक्त न पहुचने के कारण शरीर का ठण्डा पडना, उक्त स्थान पर झुझुनी होना, चेतना शक्ति का लुप्त हो जाना, शून्यपर अंगों का सूख जाना, हाथ पैर व उनकी अंगुंलियों में शून्यपन नाडी गति मंद पड रही हो तब इसके प्रयोग से रक्त संचालन तीब्र होता है एंव उस स्थान पर जहॉ कही रक्त संचार में बाधा हो रही हो जिसकी वजह से मूर्च्छा , शक्ति हीनाता जैसी परेशानीयॉ उत्पन्न हो रही हो तब इसकेप्रयोग से रक्त संचालन तीब्र हो जाता है एंव शरीर में गर्मी उत्पन्न होनेलगती है । परन्तु इसका प्रयोग उस वक्त नही करना चाहिये जब रोगी का रक्त संचार तीब्र हो (हाई ब्लड प्रेशर) ऐसी स्थिति में नीली बिजली का प्रयोग किया जाता है । चूकिं नीली बिजली रक्त संचार को कम करती है एंव रक्त संचालन को धीमा कर रक्त नाडियों को सुकोड देती है । जहां कही रक्त संचार के धीमा होने के कारण मस्तिष्क में रक्तकी सप्लाई बधित (रूक रही हो ) हो रही हो एंव रोगी मृत्यु के नजदीक हो नाडी गति का पता न चल रहा हो जिससे पक्षाघात का भय हो रोगी के ओढ नाखून पीले पड गये हो चहरा नि:तेज हो गया हो एंव रोगी मूच्छा (बेहोशी की अवस्था) जैसी स्थिति में हो ऑखों के पलकों को झपकाने में उसे परेशानी आ रही हो उस स्थिति में इसका प्रयोग एस-1 के साथ करने पर अच्छे परिणाम मिलते है । विद्धान चिकित्सकों का अभिमत है कि इस स्थिति में इस दवा को देकर रोगी को मृत्यु मुंख से निकाला जा सकता है । यह दवा जैसा कि हमने पहले ही बतलाया है कि यह शक्तिवद्धक ,अर्थात कमजोरी को दूर करने वाली शरीर को बल देने वाली है । रक्त संचालन के धीमा होने पर आई सभी प्रकार की बीमारीयों को यह अपनी सहायक औषधियों के साथ प्रयोग करने पर उसे दूर कर देती है । निम्न रक्त चाप में इसका प्रयोग ए-1 के साथ करना चाहिये , रक्त संचालन की वजह से लकवा, फीलपॉव, हाथीपॉव में लाभकारी दवा है । हिद्रय की धडकन रूक रही हो धीमी पड रही हो तब लाल बिजली के लगाने व खिलाने से रक्त धडकन अपनी सामान्य अवस्था में आने लगती है । यह दवा रक्त संचालन को ठीक करती है ,
नर्वस सिस्टम:- इस दवा का प्रभाव मस्तिष्क के सेन्ट्रल नर्व एंव सेंरीब्रोस्पाइनल नर्व सिस्टम पर तथा सेंसरी मोटर नव पर है,मोटर मसल्स अमाश्य के मसल्स फाईबर नर्व पर होता है । यह शरीर के दायी ओर के अवयवों के स्नायु सूत्रों पर प्रभाव डालती है मस्तिष्क नर्व पर प्रभावी होने के कारण यह मानसिक रोगों ,पक्षाघात, पागलपन ,मृगी, हिस्टीरिया आदि में अपनी सहायक औषधियों के साथ प्रयोग की जाती है । मोटर नर्व सेंसरी नर्व के निष्किय हो जाने पर कही भी नर्व में रक्त संचार नही हो रहा हो तो यह ब्लड संचार को तेज कर देतीहै तथा उन अंगों को उत्तेजित करती है तथा उस स्थिान में आई बाधा को ठीक कर देती है । अमाश्य के स्नायु सूत्रों पर प्रभावी होने के कारण यह भूंख की कमी को अपनी सहायक औषधियों एस-5एल-1ए-3 एफ-1 या सी-15 या सी-16 के साथ प्रयोग करने पर इससे आशा अनरूप परिणाम प्राप्त किये जा सकते है । पुराने अतिसार ,दस्त में सी-3एस-3 ए-3 डब्लू ई के साथ प्रयोग करने पर अच्छे परिणाम मिलते है ।
र्दद :- यह दवा पीडा नाशक अर्थात दर्दों को दूर करने वाली , गठिया, जोडों, मॉस पेशियों का र्दद, साईटिका, नशों में सूजन व दर्द, पक्षाघात, कंधों का र्दद, शून्यपन, मॉसपेशियों के चालक पेशियों ग्रथियों के सूत्रों और अस्थि मज्जा पर प्रभावी होने से गठिया, मॉसपेशियों का सूखना, जोडों का कडा होना, रीड की हड्डीयों का टेडा होना , पुरानी से पुरानी चोट आदि की वजह से दर्दो में इसका प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है ।
शारीरिक विकास, लम्बाई का न बढना :- बच्चों के सूखा राग , पिनियल ग्लैन्डस , ग्रोथ हार्मोन्स नही बन रहे हो जिसकी वजह से बच्चों का शारीरिक विकास न हो रहा हो या लम्बाई न बढ रही हो , बच्चेां के मॉस क्षय आदि में इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियों के साथ कर उचित परिणाम प्राप्त किये जा सकते है ।
अन्य रोग :- पक्षाघात की अवस्था में अंग शिथिल हो गया हो , दायी साईड के पक्षाघात में, दायी साईड के अंगों की शिथिलता , यदि इसके प्रयोगसे शरीर में उत्तेजनाव रक्त संचार बढ गया हो या अत्याधिक गर्मी महशूस हो रही हो तो वाई ई (पीली बिजली) के प्रयोग कर इसके एग्रावेशन को शान्त किया जा सकता है । किसी भी अंग के कार्य न करने के कारण मासिकर्धम, कब्ज , पेशाब , पखाने का रूकना आदि में इसका प्रयोग करने पर मासिकधर्म ,कब्ज, पेशाब की समस्या हल हो जाती है । पुरूषों के रोगों में अगर अंग शिथिल पड रहा हो तब इसके लगाने व एस-3 सी-3 आर0 ई0 के अंतरिक प्रयोग से उचित परिणाम प्राप्त किये जा सकते है । बालों का झडना, गंजापन,आदि में बालों की ग्रोथ तक रक्त संचार के न होने के कारण बालों झडते हो वहा पर रूखापन हो तब इसका प्रयोग एपीपी के साथ करना चाहिये एंव उक्त दवा का अंतरिक सेवन भी कर अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते है ।
डायल्युशन प्रयोग- प्रथम डायल्युश्न :- प्रथम डायल्युश्न कमजोरी, पोलियों, अंगों का शिथिल, व निष्क्रिय एंव ठण्डा पडना आदि , शरीर में ठण्ड लग गई हो तो इसके प्रयोग से शरीर में गर्मी उत्तेजना आती है नींद का ज्यादा आना, हिचकी , थाईराईड की वजह से यदि नीद अधिक आती हो, कद बढाने में ,खून की कमी, सूखा रोग आदि में इसकाप्रथम डायल्यूश्न का प्रयोग किया जाता है ।
दूसरा डायल्युशन:- पसीना लाने में, बुखार की वजह से पसीना न आ रहा हो , यह शरीर से पसीना ला कर बुखार को उतार देती है, पेचिस हाथ पैरों के र्दद, गढिया बात, साईटिका, भूंख न लगना , मासिक धर्म की गडबडी आदि में इसका दूसरा डायल्युशन का प्रयोग किया जाता है ।
तीसरा डायल्युशन:- किसी भी तरह का बुखार, पागलपन, याददास्त की कमी आदि में प्रयोग किया जाता है ।
हायर डायल्युशन:- इसका हायर डायल्युशन का प्रयोग पुरानी बीमारीयों में, ब्रेन में क्लाट जमने पर , पक्षाघात आदि में प्रयोग किया जाता है ।
स्पैरिजिक एंसेन्स :- नपुनसंकता, भूंख बढानेमें, बच्चों की वृद्धि, मूर्छा, शारीरिक कमजोरी , या शरीर कमजोर होता जा रहा हो आदि में इसका प्रयोग किया जाता है ।
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल
बी0 एच0 एम0 एस0 , एम0 डी0 (ई0)
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