स्क्रोफोलोसोस-6
निम्न औषधिय पौधों से मिश्रित कर निमिर्त की गई है ।
क्र0
औषधिय पौधों के नाम
उपयोग मात्रये प्रतिशत में
1
COCHLERIA OFFICINALIS
5
2
HYDRASTIS CANADENSIS
15
3
CHAMOMILLA
10
4
NASTURTIUM OFFICINALE
25
5
SCROFULARIA NODOSA
20
6
SMILAX MEDICA
5
7
SOLIDAGO VIRGUARIA
20
8
TUSSILAGO FAREFARA
5
9
VERONICA OFFICINALIS
10
स्क्रोफोलोसोस-6 किडनी की समस्याओं के लिये सर्वोतम दवा है , जैसाकि हम सभी इस बात को अच्छी तरह से जानते है कि किडनी हमारे रक्त को साफ अर्थात रक्त का फिल्टरेशन का कार्य करती रहती है । हमारे शरीर में विषाक्त या दूषित पदार्थ जिसे हम विजातीय पदार्थ भी कहते है, जो हमारे शरीर में चाहे वह भोज्य पदार्थो के माध्यम से हो या अन्य किसी भी कारण से जब रक्त में मिल कर शुद्धीकरण हेतु हमारी किडनी में जाती है किडनी का कार्य है इन विजातीय पदार्थो को रक्त से अलग कर उसे मूत्र मार्ग व्दारा शरीर से बाहर करना होता है, यह कार्य निरंतर चलता रहता है । परन्तु जब कभी किडनी में आई खराबी के कारण रक्त से विषाक्त पदार्थ बाहर नही निकल पाते ऐसी स्थिति में रक्त दूषित हो जाता है एंव जिससे रक्त के कम्पोजिशन में खराबी आने लगती है , यह किडनी के ठीक से कार्य न करने के कारण उसकी संरचना में भौतिक परिवर्तन की वजह से होती है । रक्त को छानने वाले नेफरान में सूजन की वजह से रक्त का फिल्टरेशन नही होने के कारण एल्बूमिन, क्रेटिनिन, कोलिस्ट्रिाल , खनिज तत्व एंव यूरिक ऐसिड की मात्रा बढ जाती है, खनिज तत्व , एंव यूरिक ऐसिड की मात्रा के बढने से जोडों , व मॉस पेशियों में सूजन व र्दद होता है ,इसके प्रभाव से हिद्रय जो शरीर में रक्त संचार का कार्य करता है उसके कार्यो में भी अनावश्यक परेशानीयॉ होने लगती है । इसी खनीज तत्वों के जमाव के कारण किडनी में पथरी बनने लगती है । अत: यह दवा किडनी रोगों की प्रमुख दवा है, जो किडनी को उत्तेजित कर उसके कार्यो को सामान्य अवस्था मे लाने का कार्य करती है । किडनी के बाद इस दवा का कार्य मूत्राश्य पर होता है । जबकि एस-2 का प्रभाव पहले मूत्राश्य पर होता है इसके बाद किडनी पर होता है । शरीर में जमा यूरिक ऐसिड को एस-5 तथा एल ग्रुप की दवाओं के साथ देने से यूरिक ऐसिड पेशाब के माध्यम से निकलती है जिसके तलछट का रंग लाल होता है , यूरिक ऐसिड के निकल जाने के बाद शरीर में खनिज तत्व का शेष भाग जमा रहता है जिसे एस-6 की सहायता से निकाला जा सकता है , इसीलिये विद्धान चिकित्सकों का कहना है कि ऐसी स्थिति में पहले एस-5 एंव एल ग्रुप की दवाओं को देकर यूरिक ऐसिड को निकाल देना चाहिये, इसके बाद शरीर में जमे खनिज तत्वों को निकालने के लिये एस-6 का प्रयोग करना चाहिये यह दवा शरीर में जमे खनिज तत्वों को गलाकर निकाल देती है । यह दवा एस-1 एस-2 और एस-5 की पूरक दवा है । इस दवा का प्रभाव किडनी, मूत्राश्य संस्थान एंव उसकी पेशियों एंव हड्डीयों को जोडने वाले सूत्रों पर भी है
किडनी रोग:- जैसाकि हमने उपर लिखा है कि यह दवा किडनी में आई खराबी की वजह से जो भी रोग उत्पन्न होते है उन सभी में पर कार्य करती है, इसके साथ यह मूत्राश्य के रोगों में भी अपनी सहायक व पूरक औषधियों के साथ प्रयोग की जाती है । किडनी के कार्यो में आई खराबी या नेफ्ररान में सूजन की वजह से रक्त का फिल्टरेशन ठीक तरीके से नही होता जिससे रक्त में विषाक्त तत्व एंव खनिज तत्व मिलने लगते है , एंव दूषित पदार्थ शरीर से बाहर नही निकल पाते, इससे रक्त के काम्पोजिशन में असमानता आने लगती है एंव एल्बुमिन ,कैटिनिन जैसे पदार्थो की मात्रा बड जाती है । शरीर में पानी का जमाव होने लगता है एंव सूजन आने लगती है, पेशाब कम मात्रा में होता है, इसका प्रभाव किडनी मूत्राश्य से जुडे अंगों पर भी होने लगता है , साथ ही दूषित रक्त जिसके कम्पोजिशन में आई खराबी के कारण जब यह हिद्रय में पहुच कर हिद्रय संचालन में व्याधान उत्पन्न करता है क्योकि हिद्रय को सामान्य अवस्था से अधिक कार्य करना पडता है । जैसाकि हम सभी को मालुम है कि एक अंग की खराबी का परिणाम उससे सम्बन्धित अन्य अंगों पर भी होता है ,जैसे हिद्रय ,मूत्राश्य, पाचन तंत्र आदि , किडनी के इस रोग को नेफ्राईटिस भी कहते है । किडनी के उपचार में कभी कभी किडनी व मूत्राश्य को आराम देने की आवश्यकता होती है, ऐसी स्थिति में इसके डी-3 से ऊपर के डायल्युशन का प्रयोग करना चाहिये, परन्तु मूत्र के रूक जाने पर इसके प्रथम या तीब्र डायल्युशन का प्रयोग करना चाहिये । किडनी रोग के प्रमुख कारणों में शक्कर की बीमारी की भी अहम भूमिका हो सकती है ।
रक्त से अशुद्ध या विषाक्त पदार्थो के शरीर से न निकलने के कारण शरीर के जोडों में व अन्य सूत्रों में यूरिक ऐसिड एंव खनिज तत्व जमा होने लगता है जिससे जोडों में सूजन व र्दद होता है, जिसे गठिया, संधिवात, के मांस पेशियों में र्दद व सूजन होने लगती है यही खनिज तत्व जब किडनी एंव मूत्राश्य में जमा होने लगती है तो पथरी बनने लगती है । रक्त संचार का उचित तरीके से न पहुचने के कारण मांसपेशियों में दुर्बलता आ जाती है जिसकी वजह से हाथ पैरों में कम्पन्न होने लगता है, एस-6 किडनी की पथरी की विशेष दवा है जबकि एस-2 मुत्राश्य की पथरी की दवा है पुराने रोगों में पथरी बनने से रोकने के लिये एस-2 का प्रयोग किया जाता है चाहे वह पथरी किडनी में हो या मूत्राश्य में । एस-6 पथरी को घोल कर मूत्र मार्ग से बाहर निकाल देती है पथरी को गलाने व निकालने में इसके साथ इसकी सहायक औषधियों का भी प्रयोग करना चाहिये ।
स्त्री पुरूषों के जननेन्द्रियों:- इस दवा का प्रभाव स्त्री पुरूषों के जननेन्द्रियों पर भी है अत: स्वप्नदोष, नंपुसकता, और शुक्रक्षय ,तथा गर्भाश्य के रोग व रक्त स्त्रावों में इसका प्रयोग पूरक एंव सहायक औषधियों के साथ करना चाहिये । जैसे गर्भाश्य के स्त्रावों पर सी-1 रक्त स्त्रावों पर बी ई के साथ प्रयोग करना चाहिये, पुरूषों के रोग में इसे वेन, एंव आर ई के साथ प्रयोग करना चाहिये । पेशाब में जलन, रूक रूक कर आना, यू0टी0आई0 की समस्यायें, बच्चों का बिस्तर में पेशाब कर देना ,बहुमूत्र, मूत्र में शक्कर आने पर अपनी सहायक औषधियों के साथ इसका प्रयोग करना चाहिये, जैसे सी-17, पेशाब रूकने पर इसकी तीब्र मात्रा अर्थात डायल्युशन 1 एंव 2 का प्रयोग जल्दी जल्दी करना चाहिये,जब तक कि पेशाब चालू न हो जाये । बार बार पेशाब होने पर इसके उच्च से उच्चतम डायल्यूशन जैस डी 6 - 10 या फिर रोग स्थिति के अनुसार और भी उचे डायल्युशन का प्रयोग किया जा सकता है । पेशाब की नशों का फूलना या सूजल ,
अन्य रोग:- शरीर में दूषित तत्वों के जमा की वजह से हमारे सेल्स को उचित मात्रा में पोषण तत्व नही मिल पाते एंव विषाक्त पदार्थ के जमाव से शरीर में सिस्ट बनने लगता है, यह दवा पेशाब लाने वाली , गिल्टीयों की सूजन को दूर करने वाली, बुढापे में शरीर का सूख जाना , इस दवा का प्रयोग हिद्रय और आर्टिस के कडे पड जाने पर, तेजाब से अमाश्य के अंतरिक अंगों के जल जाने पर ,जलेादर या किडनी रोग में शरीर में पानी भर जाना, इस औषधिय का प्राकृतिक गुण पथरी नाशक ,कठमाला नाशक , रक्त शोधक , प्रदाह नाशक ,जबानी में सूखा रोग, पेशाब का रूकना एंव पेशाब का अधिक होना, मूत्राश्य , किडनी के कार्यो को सुचारू करती है ।
डायल्युश:- प्रथम डायल्युशन का प्रयोग ऐसी परस्थितियों में करना चाहिये जैसे पेशाब का रूक जाना शरीर में पानी का एकत्र हो जाना, या फिर किडनी का फंगशन कम हो गया हो अर्थात किडनी का कार्य कम हो गया हो ,जिससे किडनी का फिटरेशन का कार्य व मूत्र से विषाक्त तत्व बाहर न निकल रहे हो चूंकि यह डायल्युशन तीब्र होता है जो किडनी के कार्यो को बढाता है ।
दूसरा डायल्युश्न :- इसका दूसरा डायल्युशन प्रथम डायल्युशन की अपेक्षा कम होता है इसलिये इसका प्रयोग किडनी को नर्मल फगंशन में लाने हेतु किया जाता है या प्रथम डायल्युशन से यदि तीब्रता से कार्य होने की संभावना हो एंव मरीज अधिक कमजोर है तब दूसरे डायल्युशन का प्रयोग उचित है ।
तीसरा डायल्युशन:- तीसरा डायल्युशन का प्रयोग तब करना चाहिये जब किडनी का कार्य तीब्र हो गया हो पेशाब अधिक आ रही हो या रूक रूक कर हो , पुराने रोगों में एंव प्रथम व दूसरे डायल्युश्न से एग्रावेशन हो गया हो या एग्रावेशन होने की संभावना हो तब इसके तीसरे डायल्युशन का प्रयोग किया जाता है ।
उच्च एव उच्च्तम डायल्युश्न :- उच्च अर्थात डी-3 के उपर कें डायल्युशन का प्रयोग किडनी या बढे हुऐ कार्यो का कम करने में किया जाता है उच्चतम डायल्युशन डी30 से लेकर 200 और उससे भी उपर के डायल्युशन का प्रयोग पुराने रोगों में पेशाब के बार बार आने या मधुमेह होने पर पेशाब में शक्कर आने पर, इसकी पूरक औषधिय सी-17 या वेन दवाओं के साथ प्रयोग करना चाहिये ।
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल
बी0 एच0 एम0 एस0 , एम0 डी0 (ई0)
जन जागरण चैरीटेबिल हॉस्पिटल
हीरो शो रूम के बाजू बाली गली नर्मदा बाई स्कूल
बण्डा रोग मकरोनिया सागर म0प्र0
खुलने का समय 10-00 से 4-00 बजे तक
मो0-9300071924 मो0 9926436304
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