स्क्रोफोलोसोस-10 या (स्क्रोफोलोसोस जियापुन)
स्क्रोफोलोसोस-10, एस-1 एंव एफ-1 से मिलती जुलती औषधिय है, अत: कहॉ जाता है कि जब इन दोनों औषधियों को देने की अवश्यकता हो तब एस-10 को दिया जा सकता है, परन्तु इसमें मिश्रित औषधिय पौधों पर ध्यान से देखे तो आप को यह तो समक्ष में आ जाता है कि इस औषधी में एस-1 एंव एफ-1 के बहुत से पोधों को लिया गया है परन्तु सभी में नही इसलिये हम कह सकते है कि यह एस-1 एंव एफ-1 के मध्य की औषधी है ।
क्र0
औषधिय पौधों के नाम
उपयोग मात्रये
उपयोग मात्रये
उपयोग मात्रये
एस-10
एफ-1
एस-1
1
AESCULUS HIPPOCASTANUM
10
10
---
2
CETRARIA ISLANDICA
10
5
3
CINCONA SUCCIRUBA
10
20
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4
COCHLERIA OFFICINALIS
10
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10
5
HYDRASTIS CANADENSIS
10
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10
6
NASTURTIUM OFFICINALE
10
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7
SUMBUCUS NIGRA
10
5
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8
SMILAX MEDICA
10
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10
9
TUSSILAGO FAREFARA
10
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10
10
VERONICA OFFICINALIS
10
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10
11
BERBERIES VHLGARIS
10
10
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12
SCROFULARIA NODOSA
20
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10
13
SALIX ALBA
20
10
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14
CINCONA CALISAYA
20
25
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15
ERYTHREA CENTAURIUM
20
15
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16
ACONITUM NAPELLUS
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20
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17
CHAMOMILLA
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10
18
NASTURTIUM OFFICINALE
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10
19
NUXVOMICA
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10
20
यह औषधी एस वर्ग की औषधीयों में एस-1 के बाद सबसे बडी औषधी है अत: कहने का अर्थ है इसका कार्य क्षेत्र एस-1 एंव एफ-1 की तरह है चूंकि इसमें एस-1 एंव एफ-1 के पौधे सम्मलित है । जैसाकि एस वर्ग की औषधियॉ शरीरिक अवयवों के कफज अंगों पर कार्य करती है, परन्तु यह औषधी मस्तिष्क से सम्बन्ध रखने वाले वात संस्थान (नर्वस तंत्र) तथा नाडी संस्थान पर कार्य करती है ।
नर्वस सिस्टम:- स्क्रोफोलोसोस सिम्फाईटिक नर्व पर कार्य करती है, इसलिये पागलपन, हिस्टीरिया, मिर्गी, वातज पीडा, मस्तिष्क के रोग, सिर र्दद, आधा शीशी का र्दद आदि रोगों में प्रयोग की जाती है ।
श्वसन तंत्र :- इस औषधिय का प्रभाव श्वसन तंत्र के वातज सूत्रों पर होने से खॉसी, जुखाम, कफ जनित रोगों, बदबूदा सडा हुआ कफ निकलना, दमा रोग, एंव पुरानी से पुरानी खॉसी में पी ग्रुप की औषधियों के साथ में प्रयोग की जाती है ,निमोनिया, टांसिल, गले के रोग, नये पुराने जुखाम में, छींके आना, गले में र्दद, गले के सभी तरह के श्वसनतंत्र के रोगों में अपनी पूरक औषधियों के साथ प्रयोग की जाती है । त्वचा सूत्रों पर प्रभावी होने के कारण यह
बुखार एंव त्वचा रोग:- त्वचा रोगों में, ल्युकोडर्मा, फोडा आदि में, अपनी सहायक औषधियों के साथ प्रयोग की जाती है , त्वचा में पसीना रूक गया हो तो इसके प्रयोग से पसीना आने लगता है, जब कभी बुखार की स्थिति में जब शरीर से पसीना न निकलता हो एंव रोगी का बुखार न उतर रहा हो तो इसके प्रयोग से पसीना आने लगता है एंव शरीर का तापक्रम धीरे धीरे कम होने लगता है इसके साथ बुखार में प्रयोग की जाने वाली अन्य औषधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है जैसे एफ ग्रुप वाई0 ई0 वर ग्रुप जैसे औषधियॉ जो रोग स्थिति पर निर्भर करती है, बुखार किसी भी प्रकार का हो खसरा, चेचक, वायरल फीवर, या हैजा , मलेरिया , सामान्य बुखार, किसी बीमारी की स्थिति में होने वाला बुखार आदि में इसका प्रयोग अपनी सहायक, एंव पूरक औषधियों के साथ कर उचित परिणाम प्राप्त किये जा सकते है ।
पांचन तंत्र :- इस औषधिय का विशेष प्रभाव डाईजेटिव सिस्टम, सोरल फैलेक्सेस या अमाश्य के पाचन अंगों के वात सूत्रों पर होने से यह पाचन से सम्बधित समस्त प्रकार के रोग जैसे भोजन का न पचना, भूंख न लगना , दस्त लगना, पुराने से पुराना दस्त , पेचित, खूनी ऑव, छाती में जलन , खट्ठी डकारे आना, बिना पचा भोजन का दस्तों के माध्यम से निकल जाना, उल्टी, अजीर्ण,पेट में गैस का बनाना आदि में इसका प्रयोग अपनी अन्य सहायक औषधियों के साथ किया जाता है, यह औषधी आंतों को सक्क्षम एंव बलवान बनाती है, यह पाचन रस डायजेस्टिव जूस का निर्माण करती है । एस-1 लसिका वाहनी एंव कफज अवयवों की दवा है , परन्तु एस-10 वात सूत्र तथा उसके समूह की दवा है । यह दवा रक्त को शुद्ध करती है एंव शारीरिक शक्ति को बनाये रखती है । अत: हम कह सकते है कि यह औषधी पाचन से सम्बधित समस्त रोगों में अच्छा कार्य करती है । पाचन तंत्र से सम्बधित कुछ बीमारीयॉ ऐसी भी होती है जिसमें कभी कभी रोगी को कब्ज रहना कभी पानी की तरह से दस्त होना, पेट में र्दद रहना आदि में अपनी सहायक एंव पूरक औषधियों के साथ प्रयोग करने से अच्छे परिणाम मिलते है जैसे कब्ज में एस लास, वाई0ई0 के साथ प्रयोग करने पर आशातीत परिणाम प्राप्त किये जा सकते है । पेट र्दद में एस-10 के साथ डब्लू0ई0 का प्रयोग करने से अच्छे रिजल्ट मिलते है ।
महामारी से बचाव :- यह दवा समस्त प्रकार के महामारीयों से सुरक्षित रखती है ,जापान में जब हैजा फैला था उस समय इसने बहुतों को उक्त महामारी से सुरक्षित रखा था, इसी लिये इस दवा का नाम स्क्रोफोलोसो जियापुन पडा । यह दवा एन्टीबैक्टेरिया प्रोपरिटी होने के कारण यह किसी भी प्रकार के रोगजन्य बैक्टेरिया को खत्म कर देती है रोगजन्य बैक्टेरिया चाहे शरीर के अंतरिक अंगों में हो या फिर रक्त में यह सभी प्रकार के बैक्टेरिया को शरीर से बाहर निकाल देती है । यह दवा एन्टी आक्सीडेन्ट भी है , एव यह दवा हैजा,प्लेग, कैंसर विशूचिका, जैसी महामारी से सुरक्षित रखती है ।
अन्य रोगों में :- प्रजनन तंत्र के रोग, गर्भाश्य का टेडा पड जाना, माहवारी में परेशानी आदि में सी-1 के साथ प्रयोग करने से उचित परिणाम प्राप्त किये जा सकते है । यह स्त्रीयों के गर्भाश्य में अच्छा कार्य करती है । खूनी बबासीर हो या बादी दोनों प्रकार के बबासीर में यह अपनी सहायक औषधियों जैसे खूनी बबासीर में बी0ई0 एंव ए-2 के साथ, एंव बादी बबासीर में जी0ई0 तथा ए-2 के साथ प्रयोग करने से अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते है । नशा करने बाले तम्बाखू, अफीम, पारा, आदि के प्रभावों को कम करती है । यह दवा बलवर्द्धक एंव बैक्टेरिया को मारती है ,प्लेग, विशूचिका, कैंसर के फोडे आदि को सुरक्षित रखती है , बाई रोग, जुखाम, इंफ्ल्युन्जा, टायफाईड, ज्वर , मिर्गी ,सिर में पीडा, आधा शीशी का र्दद , ऐठन,प्लीहा, यकृत का बढ जाना, पेट र्दद किसी भी वजह से हो चाहे वह किडनी की सूजन , पथरी के कारण , गैस बनने की वजह से हो , या अपच के कारण हो, सिर में र्दद, माईग्रेन, कान का र्दद, यह दवा भूंख की कमी ,रक्त की कमी, को दूर करती है , एंव हार्मोनल इन बैलेंस को अपनी सहायक औषधियों के साथ ठीक करती है । यह र्दद नाशक दवा है, धमनियों के र्दद, पित्ताश्य के शूल का र्दद आदि में ।
डायल्युशन का प्रयोग:- प्रथम डायल्युशनका प्रयोग आंतों पर अच्छा कार्य करती है , उल्टी, दस्त, बबासीर , खूनी दस्त, मांसपेशियों के र्दद , सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम पर प्रभावी होने से बेहोशी आदि में प्रयोग की जाती है ।
दूसरा डायल्युशन :- पुराने दस्त , दस्तों में खून आना , त्वचा रोगों में
तीसरा डायल्युशन :- बुखार, टाईफाईड, चिकिनगुनिया, डेगू, तंत्रिका तंत्र के रोग , स्पाईनल कार्ड की समस्याये ,नीद न आना , सिर में र्दद , उल्टी होना । खाने को पचाने के लिये एस-1 खाने से पहले दे एंव खाने के बाद एस-10 देने से खाने आसानी से पच जाता है ,गर्भश्य में गांठ या फोडा आदि में प्राय: तीसरे डायल्युशन का प्रयोग पुराने व नये रोगों में भी किया जा सकता है ।
अनुभव:- एस-10 डब्लू0 ई0 का प्रथम डायल्यूशन हर दस्त के बाद देने से दस्त में आराम मिल जाता है ।
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल
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