लिंफैटिको-1 Linfatico-1(Lymphmittel-1)
क्र0
औषधिय पौधों के नाम
उपयोग मात्रये
1
ECHINACEA ANGUSTIFOLIA
10
2
ERYTHRAEA CENTURIUM
10
3
FUCUS VESICULOSIS
10
4
HUMULUS LUPULUS
20
5
MENYANTHUS TRIFOLIATA
20
6
OXALIS ACETOCELLA
20
7
PULMONARIA OFFICINALIS
10
8
SIMARUBA AMARA
10
यह औषधिय एस और ए वर्ग के बीच की औषधिय, अत: रक्त एंव रस दोनों के कार्यो में आई खराबी व असमानता को दूर करती है एंव उन्हे अपनी स्वाभाविक अवस्था में लाती है ,अत: हम कह सकते है कि यह रक्त एंव रस को शुद्ध करती है, तथा वात पित एंव कफ की अवस्था को समान करती है , भोजन पचकर जब रस बन जाता है तब इस औषधीय का कार्य आरम्भ होता है, रक्त और रस(लिम्फ) हमारे शरीर में निरंतर प्रभावित होता रहता है । जैसे रक्त या रस के संगठन उसके कार्यो में या उनकी बनावट, संरचना आदि में कोई खराबी आ जाये या कम अधिक बनने लगे जिससे शारीरिक क्रियाओं में असमानता आने लगती है और व्यक्ति बीमार होने लगता है, रस व रक्त का सही होना व उचित रूप से काम करना हमारे स्वस्थ्य के लिये अति आवश्यक है, प्राय: अधिकाश बीमारीयॉ इन्ही दोनों के बिगडने से होती है । विव्दवान चिकित्सकों का अभिमत है कि यह रोग के ठीक होने के बाद शक्तिवद्धक का कार्य करती है । यह रक्त रस दोनो पर तो कार्य करती ही है परन्तु यह रक्त शोधक भी है ,
हर्मोंस :- लिम्फ की वजह से हर्मोंस का सिकरेशन उचित तरीके से नही होता, इससे हर्मोनलस इन बैलेंस होने लगता है जिसकी वजह से थाईराईड ग्लैड , प्रभावित होती है हर्मोस का सही तरीके से कार्य न करने के कारण बच्चों का शारीरिक विकाश नही हो पाता, उनका बजन नही बढता ,लम्बाई नही बढती , बच्चों की इस समस्या के लिये इस औषधीय के साथ इसकी सहायक औषधियों के प्रयोग जैसे सी-4 एस-1 या अन्य निर्देशित औषधियों के साथ प्रयोग करने से अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते है , हार्मोनल इन बेलेंस की वजह से महिलाओं में चहरे पर बाल निकलने लगते है । हार्मोस का सही ढंग से कार्य न करने के कारण जो भी बीमारीयॉ होती है जैसे बच्चें का विकास न मोटापा ,स्त्रीयों या बच्चीयों में स्त्री सुलभ अंगों का विकास न होना , कई प्रकार की मानसिक अवस्थाये ,या मानसिक विकिृतियॉ जो हार्मोस की वजह से हो उसमें इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियों के साथ करने से अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते है ।
इस औषधिय का प्रभाव रक्त के आर बी सी एंव डब्लू बी सी पर होने से अधिकाश रोग इस औषधिय की सीमा में आ जाते है , इस औषधिय का प्रभाव विशेषरूप से शैल्श्मिक कलॉ अर्थात म्युकस मैम्बरेन पर होता है ,अत: ग्रन्थी ग्लैन्ड पर होन से यह पुरूषों के नामर्दी रोग में अपनी सहायक औषधिये वेन और आर ई के साथ प्रयोग की जाती है ।
इस औषधिय का प्राकृतिक गुण अम्ल नाशक है , इसलिये यह पाचन क्रिया पर अपना प्रभाव रखती है , एंव अमाशय के कायों का उचित कार्य न करने की वजह से भोजन का ठीक से न पचना, अपच , खटटी डकारे, आदि में अपनी सहायक औषधियों के साथ उपयोगी है, चूंकि हमारा लीवर खाना पचाने का कार्य करता है, यदि लीवर ठीक से कार्य न करे तो हमारा खाना नही पचेगा एंव दुषित पर्दाथ शरीर से बाहर नही निकल पायेगे , शरीर में दूषित पदार्थो के कारण शरीर में टयूमर, सिस्ट, गांठे आदि बनने लगते है । लिम्फ के अशुद्धी की वजह से थाईराईड की समस्या उत्पन्न होने लगती है , जिससे बजन बढने लगता है , यदि लिम्फ सही तरीके से काम करता है तो बजन अपने आप घटने लगता है , लिम्फ के सही तरीके से काम न करने के कारण कई प्रकार की समस्याये उत्पन्न होने लगती है इसकी वजह से महिलाओं में बांझपन , पुरूषों में नमर्दी , या र्स्पम काउन्ट कम या कमजोर होना या न बनना, इंपोटेन्सी की समस्या, आदि समस्याये उत्पन्न होने लगती है । इसके साथ ही महिलाओं में माहवारी की समस्या , या प्रदर में दुर्धन्ध का आना ,लिकोरिया, यूटीआई की समस्या, आदि उत्पन्न होने लगती है ।
लिम्फ के सही तरीके से कार्य न करने के कारण हार्मोस प्रभावित होते है इससे बुजुर्गो में प्रोस्टेट का बढना या सुकड जाना बार बार पेशाब होना या पेशाब का रूक जाना आदि समस्याये होती है ऐसी अवस्था में इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियों जैसे वेन-1 , सी-17 या अन्य के साथ करने पर बहुत ही अच्छे परिणाम मिलते है । इस औषधिय का प्रभाव समस्त लसिका संस्थान एंव कोषा विशेष संस्थान पर है । यह लिम्फ को तैयार करती है एंव उसे उचित स्थान तक पहुंचाती है । भोजन पच कर जब रस बन जाता है तब इस दवा का कार्य प्रारम्भ होता है । उन रोगों में जो रस को सोखने वाले और लसिका वाहिनी और मूत्र संस्थान से सम्बन्ध रखते हो ,श्लैष्मिक कलाओं (म्युकस मैम्बरैन) ,गृन्थियों ,ग्लैन्ड पर इसका विशेष प्रभाव होता है, यह रस और रक्त दोनों के लिये बलवद्धर्क एंव रक्त शोधक की तरह कार्य करता है । छाती की पीडा, श्वास कष्ट , नजला, दमा , ग्रन्थियों की सूजन या उसका कडा हो जाना ,त्वचा पर जीवित वस्तु का रेंगता हुआ सा प्रतीत होना , सूखी खुजली, दॉतो का नासूर , घेघा ,गठिया, पागलपन के दौरे , बबासीर चाहे खूनी हो या बादी इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियों के साथ करने पर बहुत ही अच्छे परिणाम मिलते है । हाथ पैरो में अधिक पसीना आना , मांसपेशियों की कमजोरी ,बच्चों में कम्पन्न रोग , व सूखे रोगों में ,यह दवा एस ग्रुप और ए ग्रुप के बीच की औषधिय है अत: यह रक्त एंव रस (लिम्फ) दोनों को शुद्ध करती है और दोनों के कार्यो में आई असमानता को दूर करती है , जैसा कि पहले ही कहॉ गया है कि यह औषधिय बलवद्धर्क, बच्चों के शारीरिक विकाश में सहयोग करती है इसके साथ ही यह स्मरण शक्ति को भी बढाती है । बुखार किसी भी प्रकार का हो चाहे ठण्ड दे कर आये या अंतर देकर आने वाला बुखार जिसे पारी से आने वाला बुखार भी कहते है इसमें भी यह औषधिय अपनी सहायक औषधियों वाई ई एंव वर के साथ प्रयोग करने से अच्छे परिणाम देती है । यह दवा एस ग्रुप ऐव ए ग्रुप के बीच की औषधिय है इसीलिये यह रक्त एंव रस दोनो को शुद्ध करती है उनके कार्यो की असमानता को ठीक करती है इसीलिये यह बात, पित, कफ की अवस्था को समान करती है ।
डायल्युश्न का प्रयोग:- पहला डायल्युशन का प्रयोग ग्लैडस के कम काम करने पर उसे उत्तेजित करता है एंव उसके कार्यो की गति का बढा देता है, फोडा, फंसी, को फोडता है, शरीर के किसी भी अंग त्वचा के नीचे गांठ , गुमड हो तो उसे निकाने में मदद करता है शरीर से दूषित पदाथों को निकालने में, पसीना रूक गया हो तो उसे निकालती है गठिया रोग , बात रोग , जोडों में र्दद , याददास्त की कमी ,आदि में
दूसरा डायल्युश्न :- ब्रेन की सूजन , माहवारी ,टयूमर एंव रक्त के बढे हुऐ प्रवाह को कम करती है , कमर र्दद , जीर्ण गठिया रोग , नंपुसकता , एंव जीर्ण रोगों में ।
तीसरा डायल्युश्न:- ग्लेंडस का ज्यादा सिकरेशन हो रहा हो जिसकी वजह से प्रोस्टेट की कोई भी समस्या हो , गर्भाश्य में रक्त का जमाव होना ,ल्युकोरिया, ल्युकोर्डमा ,हाथों का पसीजना , स्त्रीयों में हार्मोनल खराबी की वहज से चहरे पर बालों का निकलना आदि में यह डब्लू बी सी के कणों को बढाता है ।
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल
बी0 एच0 एम0 एस0 , एम0 डी0 (ई0)
जन जागरण चैरीटेबिल हॉस्पिटल
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