स्क्रोफोलोसो-1
औषधिय पौधों के नाम जिन से यहाँ दवा बनाई गई है
COCHLEARIA OFFICINALIS
HYDRASTIS CANADENSIS
MATRICARIA CHAMOMILLA
NASTURTIUM OFFICINALIS
SCROPHULARIA NODOSA
SARSAPARILLA (SMILAX MEDICA)
STRYCHNOS NUX VOMICA (Kuchla)
TUSSILAGO FARFRA
VERONICA OFFICINALIS
इलैक्ट्रो होम्योपैथिक की यह पहली औषधिय है , जो कि संजीवनी औषधी है लगभग नब्बे प्रतिशत रोगों पर यह दवा कार्य करती है । इस दवा का प्रभाव हमारे पाचन तंत्र (अमाश्य) पर होता है, यह हमारे मेटाबोलिजम की क्रिया को ठीक करती है खाने से पहले देने पर हमारे पाचन रस जिसे गैस्ट्रिक जूस कहते है बनाती है इससे हमारा भोजन अच्छी तरह से पच जाता है एंव हमारे पौष्टिक रस उचित मात्रा में हमारे शरीर के उपयोग हेतु तैयार होते है , अमाश्य के ठीक से कार्य न करने से जो भी बीमारीयॉ होती है जैसे खाने का न पचना , गैस बनाना, ऐसिडिटी , अफरा, भूंख न लगना, अपच की वजह से उल्टी हो, अमाश्य के ठीक से कार्य न करने की वजह से कभी कभी कब्ज रहना या फिर दस्त लग जाना आदि जैसे समस्याओं पर यह अच्छा कार्य करती है । खाने से पहले यदि एस-1 लिया जाये तो यह हमारे गैस्ट्रिक जूस का उचित निर्माण करती है एंव हम जो भी खाते है उसे पचाकर उसके पौष्टिक रसों का निर्माण करती है । चूंकि यह दवा कफ प्रकृति के रोगियों की दवा है , परन्तु ऐसा नही है कि यह हर प्रकृति के रोगीयों पर कार्य नही करती रोग स्थिति के अनुसार इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियों के साथ कर उचित परिणाम प्राप्त किये जा सकते है । चूंकि हमारे स्वास्थ्य के लिये हमारे पाचन का उचित होना आवश्यक है यदि पाचन ठीक से नही होगा तो हम जो भी खायेगे पियेगे वह हमारे शरीर को नही लगेगा , कहने का अर्थ है जो भी हम खाते या पीते है वह हमारे रक्त में एमीनो ऐसिड में परिवर्तित हो कर हमारे शरीर की इकाई छोटी से छोटी कोशिकाओं तक जाता है इससे उनका पोषण होता है एंव मृत कोशिकाओं की जगह अन्य जीवित कोशिकाओं का निर्माण होता रहता है । इस लिये सर्वप्रथम हमारे पांचन तंत्र का मजबूत होना हमारे स्वास्थ्य के लिये अति आवश्यक है । यह दवा हमारे अमाश्य को शक्तिशाली या बल प्रदान करती है ,इसलिये हमारे शरीर का पोषण करती है , एंव रक्त की कमी तथा हमारे पाचन रसों को स्वाभाविक रूप से नियंत्रित करती है , एंव महामारीयों से सुरक्षित रखती है । डॉ0 सिन्हा सहाब ने लिखा है कि यदि खाने से पहले प्रतिदिन इसका प्रयोग किया जाये तो यह दवा जहॉ हमे महामारीयों से बचाती है वही पाचन सम्बधित समस्याओं को ठीक करती है ,शीत से सम्बधित होने वाले रोगों , छूत की बीमारीयों से हमारी सुरक्षा करती है , एंव आयु को बढा सकती है, इतना ही नही यह वृद्ध प्राणीयों के लिये तो अमृत के समान है उनकी बढती उम्र की कई समस्याओं जैसे पाचन से सम्बन्धित समस्याये या फिर याददास्त की कमी ,कमजोरी होना जैसी कई समस्याओं पर यह रामबाण की तरह से कार्य करती है । पाचन तंत्र के रोगों के अतरिक्त इस दवा का प्रभाव शरीर के समस्त रस से सम्बन्धित रोगों में किया जा सकता है , रस से तात्पर्य हमारे शरीर में बहने वाला वह तरल जो रक्त को छोड कर सम्पूर्ण शरीर में नियमित प्रभावित होते रहता है वह चाहे भोजन के पश्चात बनने वाले तरल रस हो या हार्मोन्स ,या अन्य केमिकल परिवर्तन सभी रस की श्रेणी में आते है , इस दवा का प्रयोग जब कभी किसी दवा के अधिक सेवन से कोई समस्या उत्पन्न हो गई हो तो यह उसे भी दूर कर देती है । यह दवा नशे के दुष्प्रभावों को भी ठीक करतीहै साथ ही यह नशा छुडाने में भी अपनी अहम भूमिका का निर्वाह करती है । किसी भी बीमारी के बाद आई कमजोरी को दूर करती है । शरीर में जमा विजातीय, एंव टाक्सीन पदार्थो को मल मूत्र व पसीने के माध्यम से बाहर निकाल देती है । इसीलिये इसका प्रयोग टॉक्सीन व विजातीय पदार्थ जिसमें पथरी जैसे विजातीय तत्वों को भी यह अपनी सहायक औषधियों के साथ प्रयोग करने पर बाहर निकालने में सहायक है । इस दवा का प्रयोग बबासीर व भंगदर जैसे रोगों में इसलिये किया जाता है क्योकि बबासीर व भगदर होने का एक मुख्य कारण कब्ज है । कब्ज की वहज से हमारे ऐनस पर जो प्रभाव होता है उससे वहा की वेन फूलने लगती है जो बाद में जा कर बबासीर व भगदर जैसे बीमारीयॉ उत्पन्न करती है । कब्ज को दूर करने के लिये एस लॉस ,वाई ई के साथ या अन्य सहायक औषधियों के साथ इसका प्रयोग कर उचित परिणाम प्राप्त किये जा सकते है । जैसाकि हमने पहले ही कहॉ है कि इस दवा का प्रयोग लभभग नब्बे प्रतिशत रोगों में किया जाता है । इस लिये इसका प्रभाव हमारे शरीर के समस्त आवश्यक अंगों पर एंव बीमारीयों पर होता है । इस दवा का प्रयोग अन्य रोगों पर उस समूह की दवाओं के साथ कर अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते है । जैसे श्वसनतंत्र के रोग जिसमें सर्दी ,खॉसी , निमोनिया,कफ का बनना, कफ का जमा होना, नीद न आने पर दिमाकी समस्याये जिसमें याददास्त का कम होना , चक्कर, बेहोशी ,मिर्गी, स्त्रीयों में अनियमित मासिकधर्म का होना , पुरूषो में र्स्पम काउन्ट का कम होना, आंखों के रोग , ऑखों की रोशनी का कम होते जाने पर एस-12 के साथ इसका प्रयोग करना चाहिये । गले की समस्या यह दवा भूंख को बढाती है ,दॉतो के र्दद में , नर्व सिस्टम की समस्याओं में एफ समूह की दवाओं के साथ इसका प्रयोग कर अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते है , हार्टफेल्योर या हिदयगति के मन्द या बन्द होने हाथ पैरों के ठंडे पडने पर यह अत्यन्त लाभाकारी है, इस दवा का प्रभाव त्वचा ,नेत्र, नासिका, मुख , छोटी बडी आंत ,फेफडे, लीवर, स्वरयत्रं, किडनी , मूत्राश्य, श्लैष्मिक कला ,ग्रिन्थयों की सूजन को दूर करती है , वात संस्थान के रोगों में अपनी सहायक दवाओं के साथ प्रयोग करने में मदद पहुचाती है ।यह दवा पारा, आसैनिक जैसे विशैले पदार्थो एंव सर्फ बिच्छू जैसे विशैले जीव जन्तुओं के काटने पर प्रयोग की जाती है चूंकि इस औषधी का प्रभाव हमारे शरीर से विजातीय तत्व एंव विष को शरीर से बाहर निकालना है । लकवा ,शरीर में पानी भर जाना , फील पांव, किडनी के रोगों में , त्वचा रोग , खुजली, मस्से, माईग्रेन, सिरर्दद
डायल्युशन का प्रयोग:- प्रथम डायल्युशन शरीर के टॉक्सीन बाहर निकालती है । लकवा, मिर्गी ,बेहोशी, दौरे का पडना,
दूसरा डायल्युशन :- इसका दूसरा डायल्यूशन का प्रयोग फाईलेरिया, किडनी की समस्या,एल्बूमिन,प्रटीन , बातरोग,जोडों के र्ददों में ,मॉसपेशियों के रोग,
तीसरा डायल्युशन:- पुरानी बीमारीयों में, सूजन,शरीर में पानी भरना,
उच्च डायल्युशन:- खुजली, मस्से, मानसिक रोग, नीद का न आना,सिरर्दद, माईग्रेन आदि पर
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल
बी0 एच0 एम0 एस0, एम0 डी0 (ई0)
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