फेब्रीफ्यूगो-1
फेब्रीफ्यूगों दवा के निर्माण में निम्न वनस्पतियों का प्रयोग एक निश्चित अनुपात में किया गया है ।
क्र0
औषधिय पौधों के नाम
उपयोग मात्रये
1
1. ACONITE NAPILLUS (Vatsnabh)
20
2
1. AESCULUS HIPPOCASTANUM
10
3
1. BERBERIS VULGARIS
10
4
1. CETRARIA ISLANDICA
5
5
1. CINCHONA CALISIYA
25
6
1. CINCHONA SUCCIRUBRA
20
7
1. ERYTHRAEA CENTURIUM
15
8
1. SALIX ALBA
10
9
1. SAMBUCUS NIGRA
5
वैसे तो इस दवा का प्रयोग साधारणत: बुखार व र्दर्दो के लिये बडे ही विश्वास के साथ किया जाता है । इस दवा का प्रभाव हमारे नर्व सिस्टम पर होता है इसका प्रमुख प्रभाव हमारे शरीर की अनैच्छीक या स्वाचलित स्नायु पर है अर्थात ऐसे नर्व जो स्वयम चलते है जिस पर हमारा अधिकार नही होता जैसे हिद्रय का धडकना , रक्त नलिकाओं का रक्त संचालन , पाचन संस्थान के कार्य, पेनक्रियास, अमाश्य, डियुडिनम, हिद्रय, फेफडे, ऑखो के एक्युलो मोटर नर्व, स्लाईवरी गैल्डस ,ग्लोसो फैरिजियल स्नायु, इत्यादी और भी बहुत से अंग है जिन पर हमारा अधिकार नही होता इन्हे अनैच्छिक नर्व कहते है , इसके साथ ही इस दवा का प्रभाव ऐक्छिक नर्व पर भी है ऐक्च्छिक नर्व पर भी है , ऐच्छिक नर्व पर हमारा अधिकार होता है जैसे पेशाब या मल त्याग करना ,बोलना , चलना , ऑखों को बन्द करना या खोलना , आदि इसके साथ इस दवा का प्रभाव सिम्फाईटिक नव , पैरा सिम्फाईटि नव तथा इन दोनो नर्व को नियन्त्रित करने वाली वेगस नर्व पर होने से यह इन दोनो नर्व को संतुलित रखती है । इसका प्रभाव स्पाईनल र्काड के नव तथा मस्तिष्क के ब्रहद एव लधु नर्व पर भी है तथा ये समस्त नर्व हमारे शरीर के संचालन एंव स्वस्थ्यता हेतु नितांत आवश्यक है किसी भी नर्व के कार्य न करने से विभिन्न किस्म की स्नायु संबधित बीमारीयॉ होने लगती है , जैसे पागलपन , मिर्गी के दौर या मिर्गी रोग , स्त्रीयों व युवा बच्चीयों में हिस्टीरिया , तनाव, नीद न आना , बुरे सपने , नीद में चलना , माईग्रेन , चिडचिडापन ,याददास्त की कमी यदि हिद्रय के स्नायु कार्य न करे तो पाचन तंत्र से सम्बधित बीमारीयॉ होने लगती है जैसे खाना न पचना, ऐसिडिटी, खट्ठी डकारे आना, कभी कब्ज तो कभी पतले दस्तो का होना ऐसी स्थिति में इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियों के साथ करना चाहिये । सेन्ट्रल नर्व सिस्टम पर कार्य करने के कारण यह दवा जहॉ दिमाकी बीमारीयों पर कार्य करती है वही इसका प्रभाव हिद्रय के स्नायु पर होने से हिद्रय का रूक रूक कर चलना या धडकन का बढना , ब्लाकेज होना , हिद्रय में जकडन या र्दद होने डब्लू बी सी ,आर बी सी का कम या अधिक होने पर भी इसका प्रयोग ए ग्रुप की औषधियों के साथ करना चाहिये । लकवा , पोलियो, खून की कमी , तंत्रिका तंत्र के या वेन के सेल्स के मृत होने पर, शरीर में कही पर भी सूजन होने पर इस दवा को नही भूलना चाहिये । उपरोक्त स्नायु संस्थान के अतरिक्त गति करने वाले स्नायु, संवेदना वाहक, सेरिर्बो, कार्नियल नर्व, ग्रे मोटर, चालक स्नायु, तथा मस्तिष्क की झील्लीयॉ भी इसके प्रभाव क्षेत्र में आती है कुछ मिला कर यह हमारे सम्पूर्ण स्नायु तंत्र को प्रभावित करती है ।
किसी भी दवा के देने पर यदि उसका प्रभाव न हो तो ऐसी स्थिति में एफ-1 दवा को देने से वही दवा अपना अभिष्ट कार्य करने लगती है ,यह दवा उत्प्रेरक का कार्य भी करती है अर्थात हमारे शरीर के कार्यो को बढा कर उसे सुव्यवस्थित कर देती है अत: इस बात को रेखाकिंत करना चाहिये । पुरूषों व स्त्रीयों के रोगों में इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियों के साथ करना चाहिये । ऐन्टीबायेाटिक दवाओं के दुष्प्रभावों को यह दवा ठीक कर देती है , रक्त संचालन करने वाले नर्व को यह शक्ति प्रदान करती है ।
बुखार व र्दद :- बुखार किसी भी प्रकार का हो, सभी तरह के बुखार जैसे वायरल फीवर, चिकिनगुनिया, डेगू, टायफाईड , मलेरिया, मेनेजाईटिस, यू0टी0आई0 इनफेक्शन , किसी भी तरह के इंफेक्शन की वजह से बुखार आने पर हड्डी तोड बुखार , सर्दी का ज्वर, संक्रामक ज्वर, छूत की बीमारी, ऐसा ज्वर जिसमें शरीर पर लाल लाल चकते निकलते हो , लू लगना, इसका प्रयोग अपनी सहायक औषधियों के साथ करना चाहिये जैसे बुखार में एफ ग्रुप के साथ वर, एस-10 एंव बाई का प्रयोग करना चाहिये इसके प्रयोग से पसीना आकर बुखार उतर जाता है अर्थात हम कह सकते है कि बुखार किसी भी प्रकार का हो चाहे वह सर्दी लगने इंफलामेशन की वजह से हो या किसी डर की वजह से हो एफ दवा के प्रयोग को कदापी नही भूलना चाहिये , ज्वाईडिस में बिलोबिन बढने पर , कैटिनिन के बढने पर इसका प्रयोंग ए ग्रुप की दवाओं के साथ करना चाहिये
र्दद :- बात रोग जोडों में र्दद नशों में र्दद सिर का र्दद माईग्रेन , अनावश्यक तनाओं की वजह से र्दद होने पर इसे माथे पर एफ-1 एंव डब्लू ई को लगान व खिलाने से र्दद ठीक हो जाता है । यह दवा शरीर में जमा विषाक्त तत्वों को पसीने व मल मूत्र से बाहर निकाल देती है पेशाब रूकने पर इसका प्रयोग एस-2 के साथ करना चाहिये । मांसपेशियों में व जोडों में यूरिक ऐसिड के जमा होने से र्दद होता है इस दवा का प्रयोग करने से यूरिक ऐसिड निकल जाता है इससे जोडो व मॉसपेशियों का र्दद ठीक हो जाता है । यदि शरीर में या पेट में पानी भर गया हो तो उसे भी यह दवा निकाल देती है । फेफडों में बलगम जमा हो तो पेटोरेल ग्रुप की दवाओं के साथ इस दवा के प्रयोग करने से बलगम निकल जाता है । नशा करने वालों के शरीर में जो विषाक्त पर्दाथ जमा हो रहे हो तो यह दवा उसे भी निकाल देती है, इसके साथ ही यह दवा नशा छुडाने में भी अपनी अहम भूमिका निभाती है । पथरी को निकालने में यह दवा अपनी अन्य सहायक औषधियों के साथ प्रयोग करने पर यह दवा वहॉ के स्नायुओं को उत्प्रेरित करती जिससे गली हुई पथरी मूत्रमार्ग से निकल जाती है । कमर र्दद, साईटिका का र्दद,त्वचा रोगों में खुजली में सी-3 एस-3 के साथ इसका प्रयोग करना चाहिये
एक्जीमा , ल्युकोडर्मा में, लीवर, पिताश्य, पित्त प्रणाली और स्पलीन की यह विशेष दवा है
डायल्युशन का प्रयोग:- प्रथम डायल्युशन तीब्र मात्रा अर्थात पहला डायल्युशन देने से यह पसीना लाती है एंव इसकी हल्की मात्रा अर्थात उच्च डायल्युशन में देने से यह शरीर में निकलने वाले पसीने केा रोकती है । टाईफाईड, बात रोग , ठंड अधिक लगती हो, ऑतो व लीवर, स्पलीन का कार्य घट गया हो । अफरा व कब्ज सुस्त आलस्य कमजोरी ,
दूसरा डायल्युशन:- पुराने एंव जिद्दी किस्म के बुखार, रक्त की कम्पोजिशन में आई खराबी पर लीवर, गाल ब्लेडर, एंव पेट के रोग ऐसिडिटी, अफरा, कभी दस्त तो कभी कब्ज होना उल्टी, वात रोग , नीद न आना, पागलपन, चिडचिडापन,
तीसरा डायल्युशन:- नजला, खॉसी, जुखाम,
उच्च डायल्युशन:- हिस्टीरिया, पागलप
डॉ0 सत्यम सिंह चन्देल
बी0 एच0 एम0 एस0 , एम0 डी0 (ई0)
जन जागरण चैरीटेबिल हॉस्पिटल
हीरो शो रूम के बाजू बाली गली नर्मदा बाई स्कूल
बण्डा रोग मकरोनिया सागर म0प्र0
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