shabd-logo

गुरुजी

24 जनवरी 2022

87 बार देखा गया 87

बहुत दिन पहले की बात है। लालू और मैं छोटे-छोटे थे। हमारी उम्र होगी करीब 10-11 साल। हम अपने गांव की पाठशाला में साथ-साथ पढ़ते थे। लालू बहुत शरारती था। उसे दूसरे को परेशान करने और डराने में मजा आता था। एक बार तो उसने अपनी मां को भी डरा दिया था। उसने यह किया कि एक रबड़ का साँप ले आया। वह सांप उसने मां को दिखाया। सांप देखकर मां बहुत डर गईं। वे घबराकर दौड़ीं । दौड़ने में बेचारी मां के पांव में मोच आ गई। मोच की वजह से उन्हें सात दिनों तक लंगड़ाकर चलना पड़ा।
वे लालू की शौतानियों से बहुत तंग आ गई थीं। उन्होंने एक दिन लालू के पिताजी से कहा, ‘‘इसके लिए मास्टर रख दें। जब रोजाना शाम तक पढ़ने बैठेगा, तब इसे पता चलेगा। सारी शैतानी भूल जाएगा।’’
पिताजी बोले, ‘‘नहीं। जब मैं छोटा था, तब मेरे लिए मास्टर नहीं रखा गया था। मैं तो अपने आप पढ़ा। खूब मेहनत की। पढ़-लिखकर आज वकील हूं। मेरी इच्छा है कि लालू भी अपने आप खूब पढ़े-लिखे। अच्छा आदमी बने। हां, इतना कर सकता हूं कि जिस साल वह अपनी कक्षा में प्रथम नहीं आएगा, उस साल हम उसके लिए घर पर पढ़ाने वाला मास्टर रख देंगे।’’
सुनकर लालू ने चैन की सांस ली। लेकिन उसे मां पर बहुत गुस्सा आया। लालू मास्टर को पुलिस जैसा मानता था। जो बात-बात पर पिटाई करता है। जो मनमर्जी नहीं करने देता।
लालू के पिता धनी गृहस्थ थे। कई साल हुए, उन्होंने अपना पुराना मकान गिराकर पुन: नया तिमंजिला मकान बनवाया था। मकान बन जाने के बाद से लाल की माँ की इच्छा रही थी कि गरुजी इस मकान में आकर जूठा गिरा दें, लेकिन वे काफी बूढ़े थे। वे फरीदपुर से इतनी दूर इसके लिए आने को राजी नहीं होते थे। बहुत दिनों बाद इस बार मौका मिल गया। गुरुदेव सूर्यग्रहण के उपलक्ष्य में काशी आए थे। वहाँ से उन्होंने नंदरानी को लिख भेजा कि यहाँ से वापस लौटते समय आशीर्वाद देने आएँगे। लालू की माँ की खुशी की सीमा नहीं रही। वे गुरुजी के स्वागत की जोर-शोर से तैयारी करने लगीं। उनकी बहुत दिनों की मनोकामना पूरी होने जा रही थी। इस नए मकान में उनके चरणों की धूलि मिलेगी और घर पवित्र हो जाएगा।नीचे के बड़े कमरे से सारा सामान हटाया गया। निवाड़ का पलंग गुरुवर के सोने के लिए बनवाया गया। इसी कमरे में उनके लिए पूजा की जगह बनाई गई; क्योंकि उन्हें तिमंजिले पर स्थित पूजाघर में आने-जाने में तकलीफ होगी।
बहुत दिनों बाद गुरुदेव स्मृतिरत्न वहाँ आ गए, लेकिन बड़े कुसमय आए। आसमान बादलों से घिरा हुआ था। बाहर मूसलधार बारिश हो रही थी और तेज हवा के झोंके चल रहे थे।
इधर लालू की माँ को तरह-तरह के पकवान बनाने, फल-फूल सजाने आदि काम के कारण जरा भी साँस लेने का मौका नहीं मिल रहा था। गुरुदेव के लिए पलंग पर बिस्तर बिछाकर मसहरी लगा दी गई। थके-माँदे गुरुदेव भोजन करने के बाद पलंग पर जाकर सो गए। इसके बाद नौकरों-चाकरों को छुट्टी दे दी गई। मुलायम बिस्तर पर आराम पाने के कारण गुरुदेव ने मन-ही-मन नंदरानी को आशीर्वाद दिया।
आधी रात को अचानक उनकी नींद खुल गई। छत से पानी मसहरी को तर करता हुआ उनकी तोंद पर गिर रहा था। अरे बाप रे! कितना ठंडा पानी है, वे चौंककर उठ बैठे और तोंद पर गिरे पानी को पोंछ डाला। फिर बोल उठे, 'नंदरानी ने मकान को नया जरूर बनवाया है, लेकिन पछाड़ की कड़ी धूप के कारण छत फट गई है।'
निवाड़ वाला पलंग भारी नहीं था। मसहरी सहित उसे खींचकर गुरुदेव दूसरी ओर ले गए और फिर सो गए, लेकिन अभी आधा मिनट से अधिक नहीं हुआ होगा कि पुन: दो-चार बूंद आ गिरी। फिर दूसरी ओर ले गए और फिर पहले की तरह पानी गिरा। अब तक बिस्तर काफी भीग चुका था। इतना भीग गया था कि बिस्तर सोने लायक नहीं रह गया। गुरुदेव अब सोचने लगे कि क्या किया जाए? बूढे आदमी थे। अनजान जगह में दरवाजा खोलकर बाहर जाने से डर लगता ही है और फिर भीतर रहना भी खतरे से खाली नहीं था। जब छत इस बुरी तरह फट गई है, पता नहीं कब सिर पर गिर पड़े। डरते-डरते वे बाहर निकल आए।
बाहर बरामदे में एक लालटेन जल रही थी। कहीं भी कोई दिखाई नहीं दे रहा था। चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था। पानी जोर से बरस रहा था और वैसे ही तेज हवा चल रही थी। कैसे कोई वहाँ खड़ा रहे ! घर के नौकर-चाकर भी कहीं नहीं दिखाई दे रहे थे। पता नहीं, वे सब किस कमरे में सोते हैं? स्मृतिरत्न को इसका ज्ञान नहीं था। दो-तीन बार उन्होंने आवाज भी दी, लेकिन प्रत्युत्तर में किसी ओर से कोई जवाब नहीं आया।
एक ओर एक बेंच पड़ी थी। इस बेंच पर लालू के पिता के गरीब मुवक्किल बैठते हैं। लाचारी में गुरुदेव उसी पर बैठ गए। मन-ही-मन में उन्होंने यह महसूस किया कि इससे उनकी मर्यादा पर ठेस पहुँची है, लेकिन इस समय इसके अलावा और कोई चारा भी नहीं था। हवा में ठंडक रहने के कारण सर्दी भी लग रही थी। गुरुदेव ने धोती का एक हिस्सा खोलकर सिर पर डाल लिया और दोनों पैर आपस में सटाकर, उकईं बैठकर यथासाध्य आराम पाने की कोशिश करने लगे। मन बड़ा दुःखी हो गया। उधर नींद के कारण आँखें झंपी जा रही थीं। गरिष्ठ भोजन करने के कारण कई बार खट्टी डकारें भी आईं। इसी तरह नाना प्रकार की चिंताएँ उन्हें सताने लगीं।
ठीक इसी समय एक नया उपद्रव प्रारंभ हुआ। पछाँह के बड़े-बड़े मच्छर कानों के पास गुनगुनाने लगे। ढपती हुई आँखों को उधर ध्यान ही नहीं देना चाहिए, परंतु मन शंकित हो उठा। पता नहीं, इनकी संख्या कितनी है! दो मिनट बाद ही गुरुदेव को मालूम हो गया कि इनकी संख्या अनगिनत है। इस सेना की उपेक्षा करनेवाला संसार में कोई बहादुर नहीं था। इनके काटने से जैसी जलन होती थी, वैसी ही खुजलाहट। स्मृतिरत्न ने तुरंत उस स्थान को छोड़ने में ही कल्याण समझा। वे वहाँ से कुछ दूर हट गए, मगर मच्छरों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। कमरे के अंदर पानी ने जैसा हाल कर रखा था, उसी प्रकार बाहर मच्छरों का दल भी परेशान कर रहा था। बराबर मच्छरों को भगाने के लिए अंगोछा फटकारते रहने पर भी उनके आक्रमण को रोका नहीं जा सका। थोड़ी देर बाद वे इधर-उधर दौड़ने लगे। इस सर्दी में भी वे पसीने से लथपथ हो गए।
एक बार उनके जी में आया कि जोरों से चीख उठे, परंतु ऐसा करना बचपना होगा, समझकर चुप लगा गए। कल्पना में उन्होंने देखा कि नंदरानी मुलायम बिस्तर पर मच्छरदानी लगाकर आराम से सो रही है। घर के सभी लोग भी अपनी-अपनी जगह पर सोए हुए हैं, लेकिन उनकी दौड़-धूप में जान फँसी हुई है। तभी किसी घड़ी ने टन-टन कर चार बजने की सूचना दी। वह परेशान होकर बोले, 'काटो कमबख्तो, खूब काटो! अब मैं तुम्हें भगाने से रहा।'
इतना कहने के बाद भी वे अपनी पीठ मच्छरों के हमले से बचाने के लिए दीवार से सटाकर बैठ गए, फिर बोले, 'अगर सवेरे तक जीवित रहा तो इस अभागे देश में फिर कभी नहीं रहने का! पहली गाड़ी से घर चल दूँगा। क्यों यहाँ आने का मन नहीं करता था, अब समझ गया।' यही सब सोचते-सोचते उन्हें नींद आ गई और रात भर की थकान के कारण वे बड़े बेखबर सो गए।
इधर नंदरानी काफी सुबह उठ गईं, क्योंकि गुरुदेव की सेवा में काम करना था। रात में गुरुदेव ने केवल जलपान मात्र किया था। यद्यपि यह जलपान तगड़ा था, लेकिन नंदरानी मन-ही-मन सोचती रही कि अपनी पसंद की चीज वह नहीं थी। आज उस घाटे को पूरा करने की इच्छा उनके मन में हुई।
नीचे उतरने पर उन्होंने देखा, गुरुदेवजी के कमरे का दरवाजा खुला हुआ है। गुरुदेव मेरे पहले ही उठ गए, जानकर वे बेहद लज्जित हुई। कमरे के भीतर झाँककर देखा तो वे नदारद थे। यह क्या हुआ? दक्षिण की चारपाई उत्तर की ओर कैसे चली आई। उनका झोला खिड़की के पास बाहर पहुँच गया था। पूजा के सामान और आसन आदि दूर बिखरे पड़े थे। बात कुछ समझ में नहीं आ रही थी। बाहर आकर वे नौकरों को बुलाने लगीं। नौकरों में कोई भी तब तक नहीं जागा था। उन्होंने सोचा, जब यह हालत है तो गुरुजी कहाँ गए?
अचानक नंदरानी की नजर एक ओर उठी-अरे यह क्या है ? एक कोने में अँधेरे में आदमी की तरह न जाने कौन बैठा है। हिम्मत करके वे आगे बढ़ आईं तो देखा, अरे ये तो गुरुदेव हैं।
आशंका से चिल्ला उठी, 'गुरुजी।'
नींद टूटने पर स्मृतिरत्न ने आँखें खोलकर देखा, फिर धीरे-धीरे सीधे बैठ गए!
नंदरानी चिंता और भय के कारण अवरुद्ध कंठ से पूछ बैठी, 'गुरुजी, आप यहाँ क्यों बैठे हैं?'
स्मृतिरत्न उठ खड़े हुए और बोले, 'बेटी! रात भर मेरे दु:खों की सीमा ही नहीं रही।'
'क्यों गुरुदेव?'
'तुमने नया मकान बनवाया तो जरूर है, मगर बेटी, ऊपर की सारी छत चटक गई है। रात भर पानी की बूंदें टप-टप मेरे ऊपर गिरती रहीं। कहीं छत न गिर जाए इसलिए डरकर बाहर भाग आया, लेकिन यहाँ भी बचाव नहीं कर सका। टिड्डियों की तरह मच्छरों ने मेरा आधा खून पी लिया।'
बहुत दिनों से मनाने और आराधना करने पर गुरुजी यहाँ आए थे और यहाँ उनकी हालत देखकर नंदरानी की आँखें गीली हो गई, बोलीं,
'मगर गुरुदेव! यह मकान तो तिमंजिला है। बरसात का पानी तीन-तीन छतों को पार करके कैसे गिर सकता है ?'
कहते-कहते अचानक नंदरानी रुक गईं। उन्हें यह समझते देर न लगी कि कहीं इस कांड के पीछे लालू का हाथ न हो। वे दौड़ी हुई कमरे के अंदर आईं तो देखा बिस्तर काफी भीगा हुआ है और मसहरी के ऊपर एक बरफ का टुकड़ा कपड़े में बँधा पाया, अभी तक वह पूरा नहीं गल पाया था। पागलों की तरह दौड़कर वह बाहर आईं। नौकरों में जिसे सामने देखा, उसे चिल्लाकर कहने लगी, 'पाजी ललुआ कहाँ गया? काम-काज जहन्नुम में जाए! वह शैतान जहाँ मिले उसे मारते-मारते पकड़ लाओ।'
लालू के पिता उस समय नीचे उतर रहे थे। पत्नी का चीखनाचिल्लाना देखकर वे हैरान रह गए। उन्होंने पूछा, 'आखिर हुआ क्या? यह क्या कह रही हो?'
नंदरानी ने रोते हुए कहा, 'या तो ललुआ को घर से निकाल दो, नहीं तो मैं आज गंगा में डूबकर अपने पापों का प्रायश्चित्त करूंगी।'
'मगर किया क्या है उसने?'
'बिना अपराध ही गुरुदेव की कैसी गति बना दी है उसने। आओ, आकर अपनी आँखों से उसकी करनी देख जाओ।'
सभी अंदर आ गए। नंदरानी ने सब दिखाया और सुनाया, फिर पति से बोली, 'अब तुम्हीं बताओ कि इस शैतान लड़के को लेकर कैसे इस घर में रह सकते हैं?'
गुरुदेव की समझ में सारी बात आ गई। अपनी बेवकूफी पर वे खिलखिलाकर हँस पड़े। लल्लू के पिता दूसरी ओर मुँह फेरकर खड़े हो गए।
एक नौकर ने आकर उन्हें बताया, 'लल्लू बाबू कोठी में नहीं हैं।'
दूसरे ने आकर बताया कि वह मौसी के यहाँ मिठाई खा रहे हैं। मौसी ने उन्हें आने नहीं दिया।
मौसी से मतलब है, नंदरानी की छोटी बहिन। उसके पति भी वकील थे। वे दूसरे मोहल्ले में रहते थे। इसके बाद पंद्रह दिनों तक लालू ने इस मकान में पैर नहीं रखा। 

14
रचनाएँ
शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की प्रसिद्ध कहानियाँ
0.0
शरत चंद्र चट्टोपाध्याय यथार्थवाद को लेकर साहित्य क्षेत्र में उतरे थे। यह लगभग बंगला साहित्य में नई चीज़ थी। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने लोकप्रिय उपन्यासों एवं कहानियों में सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया था, पिटी-पिटाई लीक से हटकर सोचने को बाध्य किया था।उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से इस षड्यन्त्र के अन्तर्गत पनप रही तथाकथित सामाजिक 'आम सहमति' पर रचनात्मक हस्तक्षेप किया, जिसके चलते वह लाखों करोड़ों पाठकों के चहेते शब्दकार बने। नारी और अन्य शोषित समाजों के धूसर जीवन का उन्होंने चित्रण ही नहीं किया, बल्कि उनके आम जीवन में आच्छादित इन्दधनुषी रंगों की छटा भी बिखेरी।
1

सती

24 जनवरी 2022
2
0
0

एक हरीश पबना एक संभ्रांत, भला वकील है, केवल वकालत के हिसाब से ही नहीं, मनुष्यता के हिसाब से भी। अपने देश के सब प्रकार के शुभ अनुष्ठानों के साथ वह थोड़ा-बहुत संबंधित रहता है। शहर का कोई भी काम उसे अलग

2

बालकों का चोर

24 जनवरी 2022
1
0
0

उन दिनों चारों ओर यह खबर फैल गई कि रूपनारायण-नद के ऊपर रेल का पुल बनेगा, परंतु पुल का काम रुका पड़ा है, इसका कारण यह है कि पुल की देवी तीन बच्चों की बलि चाहती है, बलिदान दिए बिना पुल नहीं बन सकता। तत्

3

देवधर की स्मृतियाँ

24 जनवरी 2022
1
0
0

डॉक्टरों के आदेशानुसार दवा के बदलाव के लिए देवधर को जाना पड़ा। चलते वक्त कविगुरु की एक कविता बार-बार स्मरण होने लगी- “औषुधे डाक्टरे व्याधिर चेये आधि हल बड़ करले जखन अस्थी जर जर तखन बलले हावा बदल क

4

अभागी का स्वर्ग

24 जनवरी 2022
0
0
0

एक सात दिनों तक ज्वरग्रस्त रहने के बाद ठाकुरदास मुखर्जी की वृद्धा पत्नी की मृत्यु हो गई। मुखोपाध्याय महाशय अपने धान के व्यापार से काफी समृद्ध थे। उन्हें चार पुत्र, चार पुत्रियां और पुत्र-पुत्रियों के

5

अनुपमा का प्रेम

24 जनवरी 2022
0
0
0

ग्यारह वर्ष की आयु से ही अनुपमा उपन्यास पढ़-पढ़कर मष्तिष्क को एकदम बिगाड़ बैठी थी। वह समझती थी, मनुष्य के हृदय में जितना प्रेम, जितनी माधुरी, जितनी शोभा, जितना सौंदर्य, जितनी तृष्णा है, सब छान-बीनकर,

6

मन्दिर

24 जनवरी 2022
0
0
0

नदी किनारे एक गाँव में कुम्हारों के दो घर थे। उनका काम था नदी से मिट्टी उठाकर लाना और साँचे में ढाल के उसके खिलौने बनाना और हाट में ले जाकर उन्हें बेच आना। बहुत दिनों से उनके यहाँ यही काम होता था और इ

7

बाल्य-स्मृति

24 जनवरी 2022
0
0
0

अन्नप्राशन के समय जब मेरा नामकरण हुआ था तब मैं ठीक मैं नहीं बन सका था या फिर बाबा का ज्योतिषशास्त्र में विशेष दख़ल न था। किसी भी कारण से हो, मेरा नाम 'सुकुमार' रखा गया। बहुत दिन न लगे, दो ही चार साल मे

8

हरिचरण

24 जनवरी 2022
0
0
0

बहुत पहले की बात है। लगभग दस-बारह वर्ष हो गए होंगे। दुर्गादास बाबू तब तक वकील नहीं बने थे। दुर्गादास बंद्योपाध्याय को शायद तुम ठीक से पहचानते नहीं हो, मैं जानता हूं उन्हें। आइए, उनसे परिचय करा देता हू

9

विलासी

24 जनवरी 2022
0
0
0

पक्का दो कोस रास्ता पैदल चलकर स्कूल में पढ़ने जाया करता हूँ। मैं अकेला नहीं हूँ, दस-बारह जने हैं। जिनके घर देहात में हैं, उनके लड़कों को अस्सी प्रतिशत इसी प्रकार विद्या-लाभ करना पड़ता है। अत: लाभ के अ

10

भला बुरा

24 जनवरी 2022
0
0
0

अविनाश घोषाल कुछ वर्ष और नौकरी कर सकते थे, लेकिन संभव नहीं हुआ। खबर आई कि इस बार भी उन्हें धत्ता बतलाकर कोई जूनियर मुंसिफ सब-जज बन गया। दूसरी बार की तरह इस बार भी अविनाश खामोश रहे। फर्क केवल इतना ही थ

11

राजू का साहस

24 जनवरी 2022
0
0
0

उन दिनों मैं स्कूल में पढ़ता था। राजू स्कूल छोड़ देने के पश्चात् जन-सेवा में लगा रहता था। कब किस पर कैसी मुसीबत आयी, उससे उसे मुक्त करना, किसी बीमार की सेवा-टहल, कौन कहाँ मर गया, उसका दाह-संस्कार इत्य

12

अँधेरे में उजाला

24 जनवरी 2022
0
0
0

1. बहुत दिनों की बात है। सत्येंद्र चौधरी जमींदार का लड़का बी.ए. पास करके घर लौटा, तो उसकी माँ बोली, 'लड़की साक्षात् लक्ष्मी है। बेटा, बात सुन, एक बार देख आ!' सत्येंद्र ने सिर हिलाकर कहा, 'नहीं माँ,

13

गुरुजी

24 जनवरी 2022
0
0
0

बहुत दिन पहले की बात है। लालू और मैं छोटे-छोटे थे। हमारी उम्र होगी करीब 10-11 साल। हम अपने गांव की पाठशाला में साथ-साथ पढ़ते थे। लालू बहुत शरारती था। उसे दूसरे को परेशान करने और डराने में मजा आता था।

14

बलि का बकरा

24 जनवरी 2022
0
0
0

लोग उसे लालू के नाम से पुकारते थे, लेकिन उसका घर का नाम कुछ और भी था। तुम्हें यह पता होगा कि 'लाल' शब्द का अर्थ प्रिय होता है। यह नाम उसका किसने रखा था, यह मैं नहीं जानता; लेकिन देखा ऐसा गया है कि कोई

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए