shabd-logo

धर्मपुरा (कहानी प्रथम क़िश्त)

5 मार्च 2022

42 बार देखा गया 42
(    **धर्मपुरा**    (कहानी  प्रथम क़िश्त   ) 

दुर्ग ज़िले के धमधा तहसील में एक छोटा सा गांव है धर्मपुरा । इस गांव का नाम धर्मपुरा कैसे पड़ा इसके पीछे एक कहानी है । उस गांव के कई बुजुर्ग बताते हैं कि आज से सौ वर्ष पूर्व यहां के अधिकान्श खेतों व मेढों में बहुत सारे नाग नागिन के जोड़े रहते थे । इन बहुत सारे नाग के जोड़ों में से एक जोड़े का नाग पत्थरों से कुचल कर मारा गया । और उस जोड़े की नागिन पूरी तरह से अकेली पड़ गई । उस नागिन का नाम था धर्मिन । उस नागिन को अपने नाग की मृत्यु के बाद  ज़िन्दगी पूरी तरह से बेमानी लगने लगी थी । वह अधिकान्श समय उदास रहती थी । और बेवजह भी समय गुज़ारने हेतु इधर उधर घूमती रहती थी । उसकी उदासी देख कर वहां के दूसरे जोड़े उस पर बहुत तरस खाते थे । लेकिन उसे ढाढस बंधाने के अलावा वे और कुछ विशेष कर नहीं पाते थे । एक दिन धर्मिन मिट्टी के एक टीले के नीचे आराम कर रही थी तभी एक मादा बाज़ फ़ड़फ़ड़ाते हुए व कराहते हुए ठीक उसके सामने आकर गिरी और बहुत ज्यादा तडफ़ने लगी । उसकी तडफ़ और दर्द देखकर धर्मिन द्रवित हो गई । उसने अपने मन में ठान लिया कि किसी भी तरह से इस मादा बाज़ को मैं मदद पहुंचाऊंगी । उसने सबसे पहले उस मादा बाज़ के सिर पे हाथ फेरकर उसे भरोसा दिलाने का प्रयास किया कि तुम चिंता न करो । मैं तुम्हारे साथ हूं । मैं तुम्हारी रक्षा करने अपना प्राण भी न्योछावर कर दूंगी । साथ ही यहां जितने भी मेरे कुनबे वाले नाग नागिन रहते हैं उन्हें ताकीद कर दूंगी कि तुम मेरी बचपन की सहेली हो , अत: तुम्हें वे किसी भी तरह से नुकसान न  पहुंचाए। मैं उन सबसे उम्र में बड़ी हूं और कभी न कभी मैंने और मेरे पति ने उन सबके हित में बड़ा काम किया है । अत वे सब मुझे मानते हैं और मेरा सम्मान भी करते हैं । मेरे कहने के बाद वे तुम्हें कभी भी नुकसान पहुंचाने की नहीं सोचेंगे बल्कि उल्टे वे तुम्हारी मदद करने को सदा तैयार रहेंगे । फिर धर्मिन पास की झाड़ियों में घुसकर कुछ जड़ी बूटियां तोड़ कर ले आई । इन जड़ी बूटियों को धर्मिन ने उस मादा बाज़ के चोटिल पंखों पर लगा दी । दस मिन्टों बाद उस बाज़ का दर्द कम हुआ तो वह आंखें मूंद कर सो गई । नागिन ने उसके शरीर पर बहुत सारे टूटे पत्ते डालकर उसे ढक दिया । फिर वह आस पास स्थित छोटे मोटे कीड़ों को पकड़ कर उस बाज के खाने का इंतजाम करने लगी । धर्मिन ने अपने इस नयी सहेली का नाम पूर्वी रख दिया । उस समय तक पूर्वी की नींद खुल गई थी । वह धर्मिन की मदद को देखकर रोने लगी और कहने लगी हालाकि हमारी क़ौमों के बीच पैदायशी दुश्मनी है पर आज तुम्हारे द्वारा किये गये मदद को देखकर मैं भाव विभोर हूं । और यह सोच रही हूं कि क्यूं हमारे बीच इतने लंबे समय से दुश्मनी है ? मैं अगर ठीक हो जाऊंगी तो अपनी बिरादरी के लोगों को समझाऊंगी कि हमारे और तुम्हारे बिरादरी के बीच दुश्मनी ग़ैर वाजिब है । तुम्हारे द्वारा मुझे दिये गये मदद का जिक्र करके उन्हें विश्वास दिलाने का प्रयास करूंगी कि हम दोनों क़ौम एक दूसरे के सहयोगी हो सकते हैं इसलिये हमें दुश्मनी को दोस्ती में बदलनी चाहिए । धर्मिन उसकी बातें ध्यान से सुनती रही साथ ही पूर्वी के सर पर हाथ फेरती रही । फिर वह बोली कि पूर्वी तुम दुनिया भर की मत सोचो कि हमारी क़ौम के बीच क्या है ?  मैं तो कभी भी यह नही सोचती । कोई भी शख़्स घायल होकर अगर मेरे सामने आये तो मैं कुछ और नहीं सोचती उस शख़्स की मदद करने के सिवाय । मैं तो उस घायल प्राणी के दर्द को कम करने का भरपूर कोशिश करती हूं । चार पांच दिनों की सेवा सुश्रुषा के बाद घायल बाजिन पूरी तरह ठीक हो गई । इस बीच नागिन धर्मिन और बाजिन पूर्वी के बीच गहरी दोस्ती हो गई ।अब बाजिन उसी गांव के उसी पेड़ की टहनियों में रहने लगी । वैसे भी उसके समूह के बाज़ बाज़िन उसे छोड़ कर कहीं चले गये थे । ये उसे न ही पता था कि उसके समूह के लोग कहाँ हैं ,न ही वह जानना चाहती थी । अब उसके जीवन में एक नये साथी का पदार्पण हो गया था , जिसका नाम था धर्मिन । अब धर्मिन और पूर्वी अपना खाली समय साथ साथ ही बिताने लगे । एक दूजे को अपनी दिनचर्या सुनाते और अपने भोज्य पदार्थों को आपस में बांट कर खाया करती थी । दोनों को एक दूजे का बड़ा सहारा था । इस तरह अब दोनों की ज़िन्दगी बहुत ही ख़ुशी ख़ुशी गुज़रने लगी थी । अब उनका  ऐसा हाल था कि एक दूजे को अगर 4/5 घंटों तक न देख पायें तो दोनों ही बेचैन हो जाती थीं । धर्मिन और उसका कुनबा जिस पेड़ के नीचे रहते थे उसी पेड़ की उपर की डालियों में बाजिन पूर्वी रहने लगी। धर्मिन के कुनबे के अन्य सांप गण उन दोनों की दोस्ती से एक तरफ़ जहां ख़ुश थे वहीं दूसरी तरफ़ वे डरते थे कि कहीं पूर्वी कभी धर्मिन को नुकसान न पहुंचा दे । 

 एक दिन पूर्वी ने धर्मिन से कहा कि चलो आज मैं तुम्हें आसमान की  सैर कराती हूं । तुम खुद देखना कि उपर से हमारी धरती कितनी ख़ूबसूरत दिखती है । साथ ही पहाड़, नदी ,हरी साड़ी पहनी धरती कितनी सुन्दर नज़र आती है । तुम यह नज़ारा देखोगी तो तुम्हारा मन प्रफ़ुल्लित हो जायेगा ।  इसके अलावा मेरी पीठ पर बैठ कर हवा में उड़ने से जो आनंद प्राप्त होगा उसको तो तुम महसूस कर सकती हो । धर्मिन ने तुरंत हामी भर दी । फिर वह पूर्वी की पीठ पर बैठ गई । फिर वे दोनों सैर पे निकल गयीं । शुरुवात में तो धर्मिन को डर लगा कि कहीं नीचे गिर जाऊंगी तो मौत निश्चित है । उसको डरते देख कर पूर्वी ने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा कि तुम अपने शरीर को मेरे शरीर से लपेट लो तो कभी नहीं गिरोगी । ख़ुदा न खास्ता कभी तुम्हारी पकड़ ढीली हुई और तुम गिरने लगोगे तो मैं तुम्हें धरती से टकराने के पूर्व ही पकड़ लूंगी । तुम्हारा ज़रा भी नुकसान नहीं होने दूंगी घबराओ मत । लगभग आधे घंटे तक पूर्वी यूं ही घुमाती रही । कभी साधारण स्पीड से तो कभी तेज़ गति से । कभी वह नाक की सीध पर उपर जाती तो कभी वह नाक की सीध पर तेज़ी से नीचे आती । धर्मिन को एक अजीब सा आनंद आ रहा था । जीवन में इसके पूर्व उसने कभी भी ऐसे आनंद की अनुभूति नहीं की थी । इस तरह पहले सफ़र में वे दोनों आधे घंटे इधर उधर घूमकर वापस अपने ठियां पर आ गये। घर पहुंच कर अपने आज की विशेष अनुभव को अपने कुनबे के अन्य सदस्यों को बांटने लगी । उसकी बातों को सुनकर उसके कुनबे के बाक़ी लोगों का चेहरा ऐसा दमकने लगा मानो वे खुद भी आसमान की सैर करके आये हैं । उनके चेहरे को ध्यान से देखने से लग रहा था कि उनकी भी ख़्वाहिश है कि हम भी इसी तरह आसमान में उड़ें । अब तो धर्मिन लगभग रोज़ ही पूर्वी की पीठ पर बैठ कर आकाश की सैर पर जाने लगी । उसे इस तरह घूमने में बेहद मज़ा आने लगा था । 2 महीने बाद एक दिन धर्मिन को ऐसा महसूस होने लगा कि पूर्वी का पेट कुछ ज्यादा ही फूला है । बातों बातों में पूर्वी ने उसे बताया कि मैं पेट से हूं । इस बात को जानकर कि पूर्वी पेट से है धर्मिन को बेहद ख़ुशी हुई । वह पूर्वी को बधाई देने लगी । साथ ही वह पूर्वी को यह उपदेश देने से परहेज नहीं किया कि ऐसी हालात में ज्यादा घूमना फिरना उचित नहीं । ऐसी स्थिति में ज्यादा से ज्यादा अपने घर में ही आराम करना सही होगा । पूर्वी ने भी स्वीकार किया कि धर्मिन तुम ठीक कह रही हो । अगले दिन पूर्वी ने धर्मिन से कहा कि चलो आज अंतिम बार आसमान की सैर करके आयें । आज के बाद मैं प्रसूति तक पूरी तरह घर में आराम करूंगी । उसके आग्रह को सुनकर धर्मिन ना नुकुर करते हुई पूर्वी की पीठ पर सवार हो गई । पूर्वी आज उन्मुक्त तरीके से उड़ते हुए वहां से 10 किमी दूर ग्राम देवकर पहुंच गई । वहां पहुंचने के बाद उसके पेट में दर्द होने लगा तो वह तुरंत एक बरगद के पेड़ में उतर कर बैठ गई । तब धर्मिन ने पूछ क्या हुआ । जवाब में पूर्वी ने कहा कि लगता है आज ही मेरा प्रसव निश्चित है । पेट में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है । लगता है कि ¾ घंटों में ही अंडे पेट से बाहर आ जायगे । ऐसा हुआ तो मुझे कुछ दिनों तक पूर्ण तरीके से यहीं , इसी पेड़ पर आराम करना होगा और हम कुछ दिनों तक अपने घर व गांव नहीं जा पायेंगे । तब दिलासा देते हुए धर्मिन ने कहा वापसी की चिंता छोड़ो। तुम्हारी सेहत और अंडों की सुरक्षा अभी सबसे महत्वपूर्ण है । हम कुछ दिन यहीं ही रहेंगे । मुझे कुछ भी तकलीफ़ नहीं । वैसे भी इस दुनिया में मेरी फ़िक्र करने वाला  तुम्हारे सिवाय कोई नहीं है । उस गांव में भी कोई नहीं है । हां शुरुवात में उस गांव के पेड़ों की , मेढों की , वहां की हवाओं की , वहां के नज़ारों की याद ज़रूर मन को सतायेगी । ये तो स्वाभाविक है । कोई भी प्राणी जब भी काम धाम , पढाई लिखाई के वास्ते या किसी अन्य काम से अपने गांव या अपने मूल स्थान से दूर जाता है , तो उसे अपने गांव की बहुत याद आती है । पढे लिखे  इंसान लोग शायद इसे होम सिकनेस कहते हैं । एक बात और इंसानों में एक रस्म है  वहां जब भी शादी होती है तो लड़की को अपने मायके को सदा के लिए छोड़कर ससुराल जाना पड़ता है । पता नहीं वे बेचारियां कैसे नई जगह में एडजस्ट हो पाती हैं और कैसे नितांत नये लोगों से सामन्जस्य बना पाती हैं ।
उस रात पूर्वी रात भर दर्द से कराहती और तडफ़ती रही । धर्मिण उसके सिर पर हाथ फ़ेरकर उसे ढाढस बंधाती रही । पूर्वी ने प्रात: के लगभग 4 बजे 3 अंडे दिए और फिर दर्द से बेहाल हो कर सो गई । इसके पूर्व पूर्वी और धर्मिन दोनों ने मिलकर तिनकों और पैरों से एक मुलायम सा नीड़ बना लिया था । जहां पर अंडों को हिफ़ाज़त से रखा जा सके । उन अंडों की सुरक्षा के लिए धर्मिन रात भर अपना फ़न उठा कर जगती रही।

( क्रमशः )
3
रचनाएँ
धर्मपुरा कहानी प्रथम क़िश्त।
0.0
( **धर्मपुरा** (कहानी प्रथम क़िश्त ) दुर्ग ज़िले के धमधा तहसील में एक छोटा सा गांव है धर्मपुरा । इस गांव का नाम धर्मपुरा कैसे पड़ा इसके पीछे एक कहानी है । उस गांव के कई बुजुर्ग बताते हैं कि आज से सौ वर्ष पूर्व यहां के अधिकान्श खेतों व मेढों में बहुत सारे नाग नागिन के जोड़े रहते थे । इन बहुत सारे नाग के जोड़ों में से एक जोड़े का नाग पत्थरों से कुचल कर मारा गया । और उस जोड़े की नागिन पूरी तरह से अकेली पड़ गई । उस नागिन का नाम था धर्मिन । उस नागिन को अपने नाग की मृत्यु के बाद ज़िन्दगी पूरी तरह से बेमानी लगने लगी थी । वह अधिकान्श समय उदास रहती थी । और बेवजह भी समय गुज़ारने हेतु इधर उधर घूमती रहती थी । उसकी उदासी देख कर वहां के दूसरे जोड़े उस पर बहुत तरस खाते थे । लेकिन उसे ढाढस बंधाने के अलावा वे और कुछ विशेष कर नहीं पाते थे । एक दिन धर्मिन मिट्टी के एक टीले के नीचे आराम कर रही थी तभी एक मादा बाज़ फ़ड़फ़ड़ाते हुए व कराहते हुए ठीक उसके सामने आकर गिरी और बहुत ज्यादा तडफ़ने लगी । उसकी तडफ़ और दर्द देखकर धर्मिन द्रवित हो गई । उसने अपने मन में ठान लिया कि किसी भी तरह से इस मादा बाज़ को मैं मदद पहुंचाऊंगी । उसने सबसे पहले उस मादा बाज़ के सिर पे हाथ फेरकर उसे भरोसा दिलाने का कां किया ।
1

धर्मपुरा (कहानी प्रथम क़िश्त)

5 मार्च 2022
2
2
0

( **धर्मपुरा** (कहानी प्रथम क़िश्त ) दुर्ग ज़िले के धमधा तहसील में एक छोटा सा गांव है धर्मपुरा । इस गांव का नाम धर्मपुरा कैसे पड़ा इसके पीछे एक कहानी है ।

2

धर्मपुरा ( कहानी दूसरी क़िश्त )

6 मार्च 2022
2
1
0

( धर्मपुरा ) दूसरी क़िश्त।( अब तक -- पूर्वी बेहोश थी इसलिये धार्मिन रात भर फनउठाकर उन तीन अंडों की रक्षा करने लगी जिसे पूर्वी ने जन्म दिया था) सुबह जब पूर्वी की नींद खुली

3

धर्मपुरा ( कहानी अंतिम क़िश्त )

7 मार्च 2022
0
0
0

( धर्मपुरा ) ( कहानी अंतिम क़िश्त)( अब तक --धार्मिन ही बाजिन के बच्चों का देखभाल करती कुछ दिनों बाद तीनों बच्चे आकाश में उड़ने सक्षम हो गए)अगले दस दिनों में तीनों बच्चे सक

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए