भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रीयगान के रचयेता गुरुदेव देश के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रहे। यह पुरस्कार उन्हें उनकी कालजयी कृति 'गीतांजलि' के लिए मिला। गीतांजलि को मूर्तरूप गुरुदेव ने यहीं उत्तराखंड के नैनीताल जिला अंतर्गत रामगढ़ में दिया। यहाँ वह 1903 में अप्रैल माह से अगस्त तक रहे। साहित्य सृजन के लिए वह इस आवास से दो किमी ऊपर चोटी पर आसन जमाया करते। इस तरह हिमालय की गोद में अवस्थित रामगढ़ की यह मनोहारी नयनाभिराम चोटी उनकी लेखन स्थली बन गई। आज यही चोटी 'टैगोर-टॉप' नाम से जानी जाती है। इस स्थल पर वह आवास बनाना चाहते थे। दुर्भाग्य से पुत्री के निधन के कारण उनका यह सपना पूरा न हो पाया। वर्ष 1914 में नोवेल पुरस्कार पाने के बाद वह दूसरी बार रामगढ़ आये और ऑखिरकार यहाँ आवास का उनका सपना पूरा हुआ। इस आवास का नाम उन्होंने रखा 'शांतिनिकेतन'। यही पर उनके मन में सर्वप्रथम 'विश्व-भारती' का विचार आया।
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