उनसे मिलने की ख्वाहिश में हर रोज़ मरते रहे,
वो ना आए पर हम इंतज़ार करते रहे।
भले झूठा ही था मेरे यार का वादा,
पर हम तो सच मानकर एतबार करते रहे।
कितनी आसानी से भुला दिया उसने हमें,
और हम आज तक भूलने की नाकाम कोशिश करते रहे।
वादे तोड़ने का हुनर नहीं आता हमें,
और वो हर वादे को कांच की तरह तोड़ते रहे।
बस गए यूं हमसे वो दूर जाकर कहीं,
और हम हैं कि उन्हें दिल में बसाते चले गए।
तोड़ दी हर कसम जो ली थी हमारे साथ,
और हम उन कसमों को ही ज़िन्दगी समझते चले गए।
झूठा था उसका हर वादा मगर,
क्यों हम उसे सच समझते चले गए।
आया ना मुड़कर वो मिलने कभी,
और हम यूं ही इंतज़ार करते चले गए।।
🙏
आस्था सिंघल