यादों के पन्नों से
गुज़र रही है जिन्दगी कुछ ऐसे,
मानों हाथ से रेत फिसल रही हो जैसे।
जब भी मिलते हैं कुछ पल फुर्सत के,
याद आते हैं वो लम्हे दोस्ती के।
सोचा था अपना एक आशियांं होगा,
प्यार मोहब्बत से सजा एक जहां होगा।
करेंगे साथ मिलकर तय सभी रास्ते,
कदमों में खुशियां बिखरेंगी हमारे वास्ते।
पर किस्मत को कहाँ ये मंजूर था,
मिलना हमारा खुदा को नामंजूर था।
छूट गया हाथों से वो हाथ,
साथ जिसके तय करने थे फासले हजा़र।
जो हम चाहें वो कहाँ मिलता है,
खुदा को जो मंजूर हो वही यहाँ होता है।
आज भी जब खुलती है दिल की किताब,
आँखें भर आती हैं मानो बेहिसाब।
पल जो गुज़ारे थे साथ में तुम्हारे,
रहते हैं संग वो दुआओं में हमारे।
हो ना सके एक दूजे के हम,
पर फिर भी इसका नहीं है गम।
प्यार तो खुदा का खूबसूरत तोहफा है,
जिसको मिलता है वो खुशनसीब होता है।
मिलना और बिछडऩा तो नसीबों का खेल है,
सच्चा प्यार तो दो आत्माऔं का मेल है।
ना मिल सके इस जीवन में तो क्या,
फलक तक जहां और भी हैं।
रहोगे तुम सदा दुआओं में मेरी,
आती रहेगी खुशबू हवा में वफाओं की मेरी।
मिलती रहेंं खुशियाँ तुम्हें दोनों जहां की,
यही दुआ है मेरी रहो तुम जहाँ भी।
गुज़र रही है जि़न्दगी कुछ ऐसे,
मानो हाथ से रेत फिसल रही हो जैसे।
स्वरचित
आस्था सिंघल