हमारी ज़िन्दगी में हमारा सच्चा साथी हमारा आईना है। क्योंकि ये हमसे कभी झूठ नहीं बोलता। भले ही हमारे अपने हमारा दिल रखने के लिए हमसे झूठ बोल देते हैं पर आईना कभी हमसे झूठ नहीं बोलता।
हमारा असली चेहरा हमें आईना ही दिखाता है। हम कैसे दिखते हैं, कैसे लग रहे हैं, ये सच्चाई केवल आईना ही हमें बतला सकता है।
दुनिया के सामने हम भले ही कितने नक़ाब चढ़ा लें, लेकिन आईने के सामने हमें अपना असली चेहरा नज़र आ ही जाता है। आईना हमें हमारी सच्चाई से रूबरू करा ही देता है।
यदि हमने कोई ग़लत कार्य किया है तो हम भले ही अपने उस अपराध को ज़माने से छिपा लें, लेकिन जब आईने में स्वयं से नज़रें मिलाएंगे, तो हम उस अपराध को छिपा नहीं पाएंगे। वो साफ हमारी आंखों में झलकता नज़र आएगा। आईने से नज़रें चुरा कर कहां जाएंगे।
कहते हैं लोग यूं ही सफलता की सीढ़ियां चढ़ अमीर नहीं बन जाते। बहुत से लोगों से धोखेबाज़ी, हक मारने, रिश्वत देने, और ना जाने कितना नीचे गिरने के बाद, वो करोड़ों-अरबों के मालिक बनते हैं। और उनके द्वारा किए गए अपराध कभी दुनिया के सामने नहीं आते।
पर यकीनन जब वो लोग रोज़ सुबह आईना देखते होंगे तो एक बार को अपने आप से नज़रें अवश्य चुरा लेते होंगे, क्योंकि आईना उन्हें उनका असली चेहरा ज़रुर दिखाता होगा।
सद्कर्म करने वाले व्यक्ति सदैव मुस्कुराते रहते हैं। और आईना भी उन्हें देख मुस्कुरा देता है। आईना केवल चेहरे की खूबसूरती देखने के लिए नहीं होता, अपितु वह हमारे अंदर की सारी बदसूरती को बाहर निकाल हमारे समक्ष रख देता है।
इसलिए ज़रुरत है अपने कर्मों को सुधारने की। क्योंकि दुनिया से भले ही हम लाख छुपाएं पर अपने आईने से कैसे छिपाएंगे।
आस्था सिंघल