तुम बिन
तुम बिन, ज़िन्दगी यूं ही गुज़र रही है
लौट आओ, सांसों की डोर उखड़ रही है।
तुम बिन, ख्वाबों को दिशा मिलती ही नहीं
लौट आओ, ज़िन्दगी बड़ी बेरंग सी लग रही है।
तुम बिन, हंसी होंठों तक आती ही नहीं
लौट आओ, खुशियां भी मुझसे रूठ रही हैं।
तुम बिन, कहने को कुछ होता ही नहीं,
लौट आओ, बातें भी बेमानी सी लग रही हैं।
तुम बिन, रास्ते का सफर कटता ही नहीं,
लौट आओ, ज़िन्दगी अंतिम सफर पर चल रही है।
तुम बिन, मन कभी शांत होता ही नहीं,
लौट आओ, बेचैनी बहुत बढ़ रही है।
तुम बिन, दिल की धड़कन रुकेगी नहीं,
लौट आओ, कि अब मौत दरवाज़े पर खड़ी है।।
🙏
आस्था सिंघल
(मौलिक रचना, स्वरचित)