खामोशियों की कोई ज़ुबान नहीं होती,
पहुंच ही जाती है दिल की बात उन तक,
भले ही फिर चाहे रोज़ बात नहीं होती।
खामोशियां अक्सर हमें वो कह जाती हैं,
जो हम लफ़्ज़ों में तलाशते रहते हैं।
खामोशियों में बहुत दम होता है,
जवाब देने का सिलसिला जो कम होता है।
खामोशियां कभी बेवजह नहीं होती
हर दर्द की कोई ज़ुबान नहीं होती।
अक्सर खामोशियां उलझने छुपा लेती हैं,
यूं भी शोर में मुश्किलें आसान नहीं होती।
खामोशियां ही बेहतर हैं जीने के लिए,
मजबूर कर देते हैं शब्दों के तीर मरने के लिए।
आस्था सिंघल