जिसकी एक मुस्कुराहट से,
दिल की हर तमन्ना पूरी हो जाती थी,
जिसके एक बार पुकारने पर
मैं दौड़ी चली जाती थी,
क्यों आज मुझे कहना पड़ता है,
था वो कोई अजनबी।
जिसके लिए समाज की
हर सोच से लड़ जाती थी,
जिसके लिए आंखें सदा
सुनहरे सपनों से भर जाती थी,
क्यों आज मुझे कहना पड़ता है,
था वो कोई अजनबी।
जिसके साथ भविष्य की
सारी तस्वीरें सजा डाली थीं,
जिसके अपनत्व के लिए,
अपनों से भिड़ जाती थी,
क्यों आज मुझे कहना पड़ता है,
था वो कोई अजनबी।
जिसकी नज़रों के मिलते ही
दिल में धड़कन लौट आती थी,
जिसकी सांसों की खुशबू से
दिल की बगिया महक जाती थी,
क्यों आज मुझे कहना पड़ता है,
था वो कोई अजनबी।
उसके ना होने का एहसास
दिल को हज़ार ज़ख्म दे जाता है,
उसकी कदमों की आहत सुनने को
कान आज भी तरस जाते हैं,
फिर भी,
क्यों आज मुझे कहना पड़ता है
था वो कोई अजनबी।।
🙏
आस्था सिंघल
(स्वरचित)