दीनदयाल जी रोज़ सुबह नित्य कर्म से निवृत्त होकर अपने बगीचे में बैठकर चाय की चुस्की लेते हुए नियमित रूप से अखबार पढ़ते थे। दुनिया और देश में क्या चल रहा है यह जानना उन्हें बहुत ही पसंद आता था।
और हर छोटी-बड़ी खबर का बहुत बारीकी से विश्लेषण करते थे। अपने पोते सोनू को भी खेल समाचार का विस्तृत वर्णन सुनाते थे।
एक दिन उन्होंने खेल जगत के पन्ने पर एक फोटो देखी और चौंक गये। कुछ पल के लिए वो उसे देखते रहे और फिर खुशी से उछलते हुए पहुंच गए अपने बेटे के पास।
"सुभाष, देख पहचाना इन्हें?" उन्होंने अखबार का वो पन्ना अपने बेटे को दिखाते हुए कहा।
उनके बेटे सुभाष ने बहुत गौर से वो तस्वीर देखी और कुछ याद करते हुए बोला,"हां बाबा, ये तो आपके मित्र दयाशंकर हैं। ये कौन है.... इनके साथ?"
"बिल्कुल सही पहचाना! दया ही है। और इसके साथ उसका पोता है, जिसका चयन अंडर नाइनटीन वर्ल्ड कप के लिए हुआ है। कितना खुश दिख रहै है। पोते ने सिर गर्व से ऊंचा जो कर दिया।" दीनदयाल जी खुशी से चहकते हुए बोले।
"बहुत बढ़िया बाबा! आप उन्हें बधाई ज़रूर दीजिएगा।" सुभाष ने कहा।
"हां, वो तो दे ही दूंगा। सुभाष... तूने भी वक़्त पे शादी की होती तो हमारा सोनू भी आज इतना बड़ा होता। उसकी तस्वीर भी अखबार में छपती। कितना फक्र महसूस होता।" दीनदयाल जी कुछ मायूस होकर बोले।
"बाबा, मैंने सही उम्र पर शादी की है। और रही बात सोनू की तो एक दिन वो भी अपने दादाजी का नाम रोशन करेगा।" सुभाष ये बोल ऑफिस के लिए निकल गया।
दीनदयाल जी मायूस हो धीरे से बोले,"तब तक मैं कहां ज़िंदा रहूंगा।"
नन्हा सोनू कमरे से उनकी सारी बातें सुन रहा था। वो भी मायूस हो गया। सोच में पड़ गया कि ऐसा क्या करे जिससे दादाजी खुश हो जाएं।
पर अभी वो केवल दस साल का है। अभी कैसे उसकी तस्वीर अखबार में छप सकती है। तभी उसकी नज़र अख़बार के रंग-तरंग पृष्ठ पर गयी। उसे देख वो खुशी से झूम उठा। पर इसमें अपनी तस्वीर लाने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। ये सोच उसने दृढ़ संकल्प कर लिया।
दिन रात सोनू ने खूब मेहनत की। एक हफ्ते बाद उसने अपनी मेहनत चुपचाप अपनी मां को दिखाई और उसके पीछे की उसकी मंशा भी बताई। मां उसकी इस सोच से बेहद प्रसन्न हुई और उसकी पूरी मदद की।
आखिरकार परिणाम का दिन आ ही गया।सोनू सुबह उत्सुकता से उठा और दौड़ कर दरवाज़े पर पड़ा अखबार उठाया। तेज़ धड़कनों से उसने रंग-तरंग वाला पृष्ठ खोला।
उसकी आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ कि जो वो चाहता था वो उसके सामने था।
वो दौड़ कर दादाजी के कमरे में गया और बोला,
"दादू उठो, देखो अखबार की सुर्खियां पढ़ो।"
"अरे!आज ऐसा क्या हुआ? क्यों शोर मचा रहा है?" उसके दादाजी ने उठते हुए पूछा।
"आप देखो तो सही। पीछे वाले पेज से पढ़ना!" उत्साहित सोनू ने कहा।
दीनदयाल जी ने उससे अखबार लिए और पिछले पृष्ठ से पढ़ना शुरू किया। जब उन्होंने पिछले पृष्ठ की खबर पढ़ कर पृष्ठ पलटा तो वो हैरान रह गए। रंग- तरंग के बाल पृष्ठ पर एक सुंदर सी पर्यावरण की तस्वीर बनी थी। और उसके नीचे लिखा था प्रथम पुरस्कार सोनू यादव। साथ में सोनू की अपने दादाजी के साथ भेजी एक तस्वीर छपी थी।
ये देखते ही दीनदयाल जी की आंखों में आंसू आ गये। सोनू ने उनके आंसू पोंछते हुए कहा, "मैंने आपकी इच्छा पूरी कर दी दादा जी। आपकी तस्वीर मेरे साथ अखबार की सुर्खियों में आ गई। अब तो आप खुश हैं ना?"
दीनदयाल जी ने सोनू को अपने हृदय से लगा लिया। उनके पोते ने उनके जीते जी उनका सपना पूरा कर दिया। आज अखबार की सुर्खियों में उनकी तस्वीर उनके पोते के साथ छप चुकी थी।
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आस्था सिंघल