बूढ़ा बरगद
कोर्ट के बाहर एक विशाल बरगद का पेड़ था। लगभग सत्तर-अस्सी साल पुराना। उसकी छांव में ना जाने कितने पथिक अपनी थकान दूर करते थे। कुछ बीस बरस पहले उसके इर्द-गिर्द चबूतरा बना दिया गया था।
चबूतरा बनने से उसकी शान और अधिक बढ़ गई थी। हर समय पथिक उसकी ठंडी छांव में आराम करते नज़र आते थे। फिर वहां एक छोले-भटूरे वाले ने अपना ठेला लगा लिया। देखते ही देखते उसकी ज़ोरदार बिक्री होने लगी। वो गरीब हर रोज़ उस पेड़ को लाखों दुआएं देता था। क्योंकि उसके हिसाब से उसकी आमदनी उस बरगद के पेड़ की वजह से ही हो रही थी।
बरगद का पेड़ और वो छोले भटूरे वाला उस जगह का पहचान चिह्न बन गया था। किसी को भी किसी से मिलना होता था तो यही कहता,"कोर्ट के बाहर जो बरगद का पेड़ है जिसके आगे एक छोले-भटूरे वाला खड़ा होता है वहीं मिलेंगे।"
पर देखते ही देखते वहां छोले-भटूरे वाले के अलावा आइस्क्रीम वाला, गोल-गप्पे वाला, पाव-भाजी वाला भी खड़ा होने लगा। इसका असर छोले-भटूरे वाले की आमदनी पर होने लगा। साथ ही अब वहां ज़रुरत से ज़्यादा भीड़ रहने लगी।
कोर्ट में आने जाने वालों को बहुत परेशानी उठानी पड़ती थी। जब किसी बड़े मुजरिम को अदालत में पेश करना होता था तो भी बहुत भारी दिक्कत का सामना करना पड़ता था। अब बरगद के उस बूढ़े पेड़ की शीतल हवा के नीचे राहगीर और अपनों का कोर्ट से बाहर आने का इंतज़ार करने वाले लोगों के लिए कोई जगह ही नहीं रह गई थी।
काफी बार वहां बढ़ रही भीड़ को लेकर वकीलों ने पुलिस को कम्पलेन भी की। पर पुलिस तो पहले ही उन ठेले वालों से पैसे ऐंठ चुकी थी। इसलिए वो कोई कार्रवाई नहीं करती थी।
आए दिन वहां ठेले वालों के झगड़े होते रहते थे। सब उस पेड़ पर अपना एकछत्र अधिकार का दावा करते थे। इन सब झगड़ों से परेशान होकर कोर्ट प्रशासन ने उस पेड़ को ही काटने की अनुमति मांग ली। क्योंकि मामला अपराधियों की सुरक्षा का था इसलिए सरकार ने इसकी अनुमति दे दी।
वो दिन आ गया जब उस बूढ़े बरगद के पेड़ को जड़ समेत काटा जाने लगा। सभी ठेले वालों ने भरसक प्रयास किया किन्तु प्रशासन ने उनकी एक ना सुनी। उन सब के खिलाफ पहले से ही बहुत से झगड़ों के केस दर्ज़ थे। इसलिए उनकी सुनवाई होती भी तो कैसे।
देखते ही देखते वो बूढ़ा बरगद का पेड़ जो कितने सालों से वहां आने जाने वाले पथिकों को छांव देता था, जड़ समेत काट दिया गया। कुछ खुदगर्ज लोगों के लालच की बलि चढ़ा बूढ़ा बरगद का पेड़। हालांकि नुकसान उन लालची लोगों का भी हुआ। किन्तु वो कुछ समय पश्चात कहीं और अपना ठेला लगाते नज़र आएंगे।
अब वो जगह ख़ाली हो गई थी। वहां ना कोई चहल-पहल थी ना ही राहगीरों के लिए आराम से बैठने की जगह। जिस जगह कभी घने पेड़ की छांव थी आज वहां कोई परिंदा भी दिखाई नहीं देता था।
लालच ने एक हरे-भरे वृक्ष को जड़ से उखाड़ दिया। लालची उखड़ कर फिर से कहीं और बस जाएंगे पर बरगद का वो पेड़ दोबारा नहीं बसाया जाएगा।
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लेखिका
©आस्था सिंघल