मौत एक शाश्वत सत्य है।जिस से मुंह नही फेरा जा सकता ।ऐसा लगता है जैसे जिंदगी एक रेलगाड़ी है जिन का स्टेशन आ गया वो उतर गया।और नये बंदे रेलगाड़ी मे चढ़ गये
हमारी जिंदगी में भी रिश्ते ऐसे ही होते है।जब कोई मर जाता है तो अचानक से ही उसमे अच्छाईयां आ जाती है।जेहन मे कुछ विचार है जो कहानी यह के माध्यम से यहां प्रस्तुत है।
"कमला !चल क्यूं ना रही तू जल्दी से।सेठ श्याम लाल जी राम को प्यारे हो गये। जल्दी नही करेंगी तो सब कुछ ख़त्म हो जाएं गा।"चम्पा कली आंखें मटकाते हुए कह रही थी।
दोनों रूदाली (बड़े बड़े घरों मे खासकर राजस्थान मे रोने के लिए रूदाली को बुलाया जाता है जो अपना आपा पीट पीट कर मरगत मे रंग लगाती है। क्यूंकि बड़े बुजुर्ग का जिन्होंने अपनी जिंदगी के 90-100 बसंत देख लिये हो और घरवालो के लिए बोझ हो(हो सकता है बहुत से लोग इस बात से सहमत नही होंगे) उन को मन से रोने वाला तो कोई होता नही तो उनके मरने पर बड़े बड़े रहीसो के यहां ऐसी रूदालिया बुलायी जाती है ।) झटपट तैयार होने लगी तैयारी क्या बस काले कपड़े , बालों की चोटी खोल ली और आंखों मे आसूंओं के लिए कोई तीखा सा द्रव्य साथ ले लिया।
कमला और चम्पा कली अपनी अपनी पोटली सम्भालती हुए दौड़ी चली जा रही थी सेठ श्याम लाल की हवेली की ओर।
"या बाई सा ! यो मननै थेह कठै ले आयो।यो कंचन सो महल इता फूथरो(सुंदर)।"कमला मुंह बा कर हवेली को देख रही थी । चम्पा ने उसे झिड़कते हुए कहा ।
"जो काम करने वास्ते आयी है वो कर।"
दोनों आंखों मे आंसू लाने वाला द्रव्य डाल कर मुंह पर घूंघट डालकर जोर जोर से छाती पीट पीटकर रोने लगी।
"यययया म्हारो लाला जी,थेह कठै गया।"
दोनों रूदाली का आर्तनाद आने वालो के मन मे करुणा की लहर दौड़ा रहा था।लोग आपस मे कह रहे थे
"श्याम लाल जी इंसान बहुत अच्छे थे।सब के सुख दुःख मे खड़े रहते थे।"
चम्पा उन लोगों को देख रही थी और मन ही मन हंस रही थी क्योंकि जो ये बात कह रहा था उसकी सूदखोरी मे श्याम लाल ने किसी समय घर के बर्तन तक बिकवा दिये थे।
घर के लोग भी कर्म काण्ड करने मे बहुत समय लगा रहे थे बेशक घर मे किसी को जरूरत नहीं थी श्याम लाल जी की लेकिन मरने के बाद तो खानदान की इज्जत का सवाल हो गये थे श्याम लाल जी। चंदन की लकड़ी,देसी घी के पीपे चिता जलाने के लिए। इक्कीस ब्राह्मण मंत्र जप के लिए। फूलों का यान पार्थिव शरीर शमशान घाट ले जाने के लिए ,बैंड बाजा आगे बजाने के लिए बुलाए गये। तब जा कर सेठ श्याम लाल जी पंचतत्व में विलीन हुए।आते हुए रूदालियो को ये भर भर कर दान दक्षिणा दी गयी।
रास्ते में ही चम्पा को खबर लगी कि उसका जवान भाई जो एक ही था घर मे कमाने वाला उसका एक्सीडेंट हो गया ओर मौके पर ही मौत हो गयी। चम्पा दहाड़े मारती अपने मायके गयी देखा भाभी सा का बहुत बुरा हाल था ।दो छोटे-छोटे बच्चों को कौन देखें गा घर का सरपरस्त ही चला गया । चम्पा कली छाती पीट पीट कर रो रही है अब की बार कलेजा फटा है उसका ।घरके सारे लोग अर्धविक्षिप्त अवस्था मे पहुंच गये है । चम्पा की भाभी उसके पास आकर बोलती है
"हाय! मै अब कैसे करुगी जिंदगी व्यतीत । बच्चों का कौन सहारा।"
चम्पा कली मन पर पत्थर रखकर अपने भाई का अंतिम संस्कार करवाती है भाभी के पास पैसे भी नहीं है जैसे तैसे अंतिम किरया होती है
बड़े भारी मन से तीसरे दिन ही चम्पा कली भाभी को गांव के ही किसी सेठ के यहां काम पर लगाकर अपने गांव आ रही होती है तो रास्ते मे क्या देखती है भीखू का बैल मर गया रात को ,जमादार बैल को दरवाजे से उठाने के लिए ज्यादा पैसा मांग रहा है किसी तरह ले दे कर सौ रुपए में बात पक्की होती है । जमादार ट्राली मे बैल को लादता है और चल पड़ा है अपने सफ़र पर ....गाना बज रहा है ट्राली पर
"तम्मा तम्मा लोगे , तम्मा तम्मा लोगे तम्मा.......